Har Chhath Festival Special Songs : हलषष्ठी पर्व में विंध्य क्षेत्र के लोकगीत

Har Chhath Festival Special Songs,Halshasthi Vrat & Folk Songs of the Vindhya Region-भारत के प्रत्येक अंचल की सांस्कृतिक पहचान उसके लोकगीतों और लोक परंपराओं से होती है। विंध्य क्षेत्र, जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्से शामिल हैं ,अपने अनोखे राग-रंग और जीवन से जुड़े गीतों के लिए प्रसिद्ध है।यहां के लोकगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचित सामाजिक, धार्मिक और कृषि जीवन का जीवंत दस्तावेज हैं। विशेष रूप से हलषष्ठी व्रत (जिसे हरछठ भी कहा जाता है) के अवसर पर गाए जाने वाले गीत, और सालभर ऋतुओं के अनुसार गाए जाने वाले लोकगीत, इस क्षेत्र की सांस्कृतिक आत्मा को व्यक्त करते हैं। इन गीतों में खेतों की महक, मौसम का मिजाज, परिवार का अपनापन और देवी-देवताओं के प्रति आस्था, सभी एक साथ गूंजते हैं। उन गीतों के कुछ विशेष प्रकार जो प्रचलित हैं।

ऋतु-परक गीत – मौसम के रंग और राग-Seasonal Songs – Rhythms of the Seasons– बरसात के गीत (Sawan–Monsoon Songs)-सावन के महीने में जब चारों ओर हरियाली छा जाती है, तो गांव-गांव में कजरी और झूला गीत गूंज उठते हैं। इनमें प्रियतम की याद, झूला झूलने की मस्ती और वर्षा की सुंदरता का वर्णन होता है।
उदाहरण बोल – सावन की रिमझिम बरसे रे, पिया घर आवै…कजरी गावत बनवारी, अइह पिया हमार ओ…।

Har Chhath Festival Special Songs -हलषष्ठी व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।

परंपराएं और मान्यताएँ – महिलाएं समूह में बैठकर गीत गाती हैं और थाली/लोटा से ताल देती हैं। इस दिन खेत में हल नहीं जोता जाता।बलराम जी के जन्म का स्मरण किया जाता है।

गीतों के विषय – बलराम जी का जन्म,मातृत्व का आनंद और वात्सल्य,गांव का उत्सव और धार्मिक उल्लास प्रधान गीत गाए जाते हैं जैसे उदाहरण के लिए बोल – …हरछठ के दिन बलराम ललना, जनम लीन अइहां…ना जोतब हम खेत हरछठ के दिनवा, बलराम के जनम दिनवा…।

सांस्कृतिक महत्व-Cultural Significance – ये गीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि मौखिक इतिहास के वाहक हैं। गांव में सामूहिकता और पारिवारिक जुड़ाव को मजबूत करते हैं। धार्मिक आस्था और कृषि जीवन के गहरे संबंध को दर्शाते हैं। अगली पीढ़ी को परंपराओं से जोड़ने का माध्यम हैं।

विशेष – Conclusion – विंध्य क्षेत्र के ऋतु-परक और हलषष्ठी पर्व के गीत उस धरती की पहचान हैं, जहां मौसम का हर बदलाव गीत में बदल जाता है, और त्योहार का हर उत्साह सुर-ताल में बंध जाता है। आज भले ही आधुनिकता की दौड़ तेज हो, लेकिन इन गीतों में रची-बसी लोकधुनें अब भी गांव के आंगनों और चौपालों में जीवन की असली मिठास घोलती हैं।

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