Suresh Wadkar : आज बात ऐसे पार्श्वगायक की जिनके पिता पहलवान थे और पिता के साथ वो भी अखाड़े में उतरते थे पर गुरु पंडित जियालाल वसंत के कहने पर आप तेरह बरस की उमर में प्रयाग संगीत समिति से “प्रभाकर”करने में जुट गए ,और देखते देखते संगीत में इतने पारंगत हो गए कि जब 20 बरस के हुए तो उन्हें म्यूज़िक टीचर की नौकरी मिल गई ।
कौन हैं ये सिंगर –
ये हैं 7 अगस्त 1955 को कोल्हापुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में सुरेश ईश्वर वाडकर जिनका परिवार उनके पैदा होने के बाद गिरगांव आ गया था पिता ईश्वर वाडकर पहलवान होने के साथ साथ कपड़ा मिलों में काम करते थे और माँ मिल मजदूरों के लिए खाना बनाती थीं। सुरेश भी अखाड़ों में कुश्ती लड़ते थे और अक्सर तलवलकर व्यायामशाला जाते थे पर बचपन से गाने का बहुत शौक था तो पंडित जियालाल वसंत से विधिवत संगीत सीखते लगे।
रविन्द्र जैन ने दिया पहला गाना:-
20 बरस के हुए तो इसी डिग्री की वजह से मुंबई में म्यूज़िक टीचर बन गए फिर अपने हुनर को आज़माते हुए 1976 में सुर-सिंगार प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और मदन मोहन सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक का पुरस्कार जीता,जिसके जज थे कई बड़े संगीतकारों के साथ ,जयदेव और रवींद्र जैन जो उनकी गायकी और आवाज़ से इतना प्रभावित हुए कि रविन्द्र जैन ने अपने संगीत निर्देशन में 1977 को आई फिल्म “पहेली” का गीत “सोना करे झिलमिल झिलमिल वृष्टि पड़े टापुर तुपुर ..” गाने के लिए दे दिया और इस गाने की सफलता के बाद अगले साल ,जयदेव ने उन्हें 1978 में आई फिल्म” गमन “में “सीने में जलन” गाने को दिया जो आज भी उतना ही पुर असर है जितना कल था और उस वक़्त की बात करें तो उनके इन गीतों ने फिल्म जगत के सभी कलाकारों और संगीत प्रेमियों को अपनी मखमली आवाज़ की कशिश से खींच लिया था, अब सब उन्हें बार बार सुनने के ख्वाहिश मंद थे जिसकी बदौलत संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने जल्द ही 1981 में आई फिल्म “क्रोधी” के लिए लता जी के साथ उनका युगल गीत “चल चमेली बाग में” रिकॉर्ड किया, इसके बाद, उन्हें”हम पांच” , “प्यासा सावन “जैसी हिट फिल्मों में गाने का मौका मिला ,अभी उनके गाए कुछ गाने ज़हेन में गूंज ही रहे थे कि राज कपूर ने उन्हें 1982 में प्रदर्शित फिल्म “प्रेम रोग ” में गाने का सुअवसर दे दिया जिसके गाने, ‘ मेरी किस्मत में तू नहीं शायद…’ और ‘मैं हूं प्रेम रोगी…’ ,ने उनकी आवाज़ को मखमली और दिलकश आवाज़ का दर्जा दिल दिया जो आगे चलकर उनके गाए भजनों में भी सबका मन मोहने लगी , इन गीतों के साथ ही आरके बैनर तले गाने का उनका ये सिलसिला भी चल पड़ा जिसमें उस वक़्त फिल्में आईं ,मेंहदी , प्रेम ग्रंथ , बोल राधा बोल और विजय ।ऋषि कपूर के लिए आपकी आवाज़ को खूब पसंद किया गया
उनके बेहद यादगार गीतों को याद करें तो :-
‘ तुम से मिलके…’ ‘ ऐ ज़िन्दगी गले लगा ले…’ ‘ गोरी सपनों में है…’ ‘हाथों की चंद लकीरों का…’ , ‘हुज़ूर इस क़दर भी न…’ , ‘गोरों की न कालों की…’ और ‘लगी आज सावन की फिर वो घड़ी है…’ जैसे गानें हमारे ज़हेन में फौरन दस्तक देते हैं।
कई भाषाओं में गाए गीत :-
सुरेश वाडकर हिंदी और मराठी के अलावा भोजपुरी, उड़िया के साथ कोंकणी फ़िल्मों में भी गीत गाते हैं ।
उन्होंने पहला तमिल गाना 2009 की फिल्म कंडेन कधलाई में गाया था, जो हिंदी ब्लॉकबस्टर” जब वी मेट” का रूपांतरण था ,ये कुछ ग़ज़ल जैसा ही गाना है जिसके बोल हैं “नान मोझी अरिन्धें” ।
शास्त्रीय रागों के अलावा उन्हें ग़ज़लों और भजनों में भी महारत हासिल है जिसकी वजह से उनके गाए फिल्मी गीतों के स्वर इतने मंझे हुए सुनाई देते हैं।
सम्मानों का सिलसिला :-
मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें 2004 में लता मंगेशकर पुरस्कार से नवाज़ा है ,2007 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें महाराष्ट्र प्राइड अवार्ड से सम्मानित किया और वर्ष 2011 में उन्हें को मराठी फिल्म ‘ई एम सिंधुताई सपकल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
सुगम संगीत के लिए उन्हें 2018 का संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिया गया और 2020 में, भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया,इसके अलावा भी कई पुरस्कार उनके नाम हैं।
चाहते हैं ,संगीत सीखने वाले हर छात्र तक पहुंचना:-
वाडकर मुंबई में अजीवसन यानी आचार्य जियालाल वसंत संगीत निकातन संगीत अकादमी के निदेशक हैं,
न्यूयॉर्क में भी म्यूज़िक इंस्टीट्यूट चलाते हैं ,इसके अलावा आप ऐस ओपन यूनिवर्सिटी के तहत SWAMA यानी सुरेश वाडकर अजीवसन संगीत अकादमी ,में ऑनलाइन म्यूज़िक क्लासेज़ के ज़रिए भी संगीत सिखाते हैं
उनके लिए संगीत से बढ़के और संगीत से जुदा कुछ नहीं है इसलिए सुरेश जी ने शादी भी शास्त्रीय गायिका पद्मा जी से की है।