Author: Naziya Begum | यूं तो वो पाकिस्तानी गुलूकार और मौसिकार है खासकर सूफियाना कलाम और रूहानी क़व्वाली के लिए मशहूर है पर जब उन्होंने बॉलीवुड के गीत गाए तो वो भी दिलकश अंदाज़ में दिल को छू गए जैसे :- ‘लागी तुझ से मन की लगन ,ओ रे पिया ,तेरे मस्त मस्त दो नैन ,तेरी मेरी ,जग घूमिया ,तुम इतनी खूबसूरत हो और दिल तो बच्चा है जी । बेशक ये गाने आपके दिल के भी क़रीब होंगे जो आज के दौर में भी फिल्म संगीत को एक दिलनशीं मोड़ दे रहें हैं तो फिर हम उन्हें बर्थडे विश करना कैसे भूल सकते हैं जी हां आज है राहत फतह अली खान की यौमे पैदाइश आज के ही दिन फ़ैसलाबाद , पंजाब, पाकिस्तान में क़व्वालों और शास्त्रीय गायकों के पंजाबी परिवार में आप पैदा हुए ,वो फ़ारुख़ फ़तेह अली ख़ान के बेटे ,
फ़तेह अली ख़ान के पोते और क़व्वाली गायक नुसरत फ़तेह अली ख़ान के भतीजे हैं संगीत के ऐसे उस्तादों के घर पैदा होना ही उनकी खुशकिस्मती थी जिसकी बदौलत वो बहुत छोटी उम्र से संगीत का रियाज़ करने लगे थे और हर सबक़ उनके लिए खाने के निवाले जितना ही ज़रूरी होता था , महज़ तीन साल की उम्र से ही वो अक्सर अपने चाचा और पिता के साथ गाने लगे थे और सात साल की उम्र से चाचा नुसरत फ़तेह अली ख़ान से क़व्वाली सीखने लगे थे. इसी शिद्दत का असर था कि नौ साल की उम्र में,अपने दादा की पुण्यतिथि पर,अपनी पहली स्टेज परफार्मेंस दी और जब पंद्रह साल के हुए तब से वे नुसरत फ़तेह अली ख़ान के क़व्वाली ग्रुप का अहम हिस्सा हो गए इस दौरान उन्होंने देश विदेश के दौरे किए और अकेले अपनी शानदार प्रस्तुतियां भी दीं।
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बालीवुड में राहत साहब की गायकी का सफर 2003 में पूजा भट्ट निर्देशित पाप फिल्म के गाने ‘लागी तुझ से मन की लगन’ से शुरु हुआ। इस गाने के बाद से राहत साहब की शोहरत दिन ब दिन बढती गयी , यहां हम आपको ये भी बता दें कि कई विवादों में उनका नाम आया इसके बावजूद बतौर कलाकार उनकी मक़बूलियत का सिलसिला जारी है।
राहत साहब ने हालीवुड की फिल्मों के लिये भी काम किया है। १९९५ में उन्होने उस्ताद नुसरत फतह अली ख़ान और अपने वालिद के साथ मिलकर डेड मैन वाकिंग का संगीत दिया इसके बाद २००२ में उन्होने फ़ोर फ़ेदर्स के साउंड ट्रेक पर काम किया २००६ में आई एपोकैलिप्सो मूवी के साउंड ट्रैक में भी राहत जी ने आवाज़ दी है। वो सूफी कलाम लिखते भी हैं क़व्वाली के अलावा ग़ज़ल भी गाते हैं बतौर प्ले बैक सिंगर वो भारतीय और पाकिस्तानी सिनेमा से जुड़े हैं .
उनके परिवार में क़व्वाली गाने की परंपरा पीढी-दर-पीढी चली आ रही है। राहत के पूरे घर में ही संगीत का माहौल है।
अप्रैल 2012 में, राहत साहब ने , 20,000 से ज़्यादा दर्शकों के सामने ऐसी ज़ोरदार परफॉर्मेंस दी की इस शो ने अधिकतम टिकट-बिक्री का रिकॉर्ड बनाया था , राहत किसी भी नोबेल पुरस्कार समारोह में प्रदर्शन करने वाले पहले पाकिस्तानी हैं, उन्होंने नुसरत फतेह अली खान की सबसे यादगार क़व्वाली “तुम्हें दिल्लगी” ,”मस्त कलंदर” और “आओ परहाओ” को भी अपने बेमिसाल अंदाज़ में पेश किया , राहत पाकिस्तानी संगीत शो कोक स्टूडियो के लगभग हर सीज़न में नज़र आते हैं । वो ऐसे ही गाते रहें ख़ुश ओ ख़ुर्रम रहें आज के दिन की हमारी यही दुआ है ।