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Happy Birthday Kailash Kher:14 साल की उम्र में छोड़ दिया घर, संघर्ष भरा रहा जीवन

Happy Birthday Kailash Kher:दिल को छू लेने वाली सधी सी आवाज़ और उसमें लोक संगीत और सूफ़ी की मिठास मानो अदभुत है इस गायकी का एहसास
कोई और नहीं अपनी अलग शैली को बनाने वाले कैलाश खेर की हम कर रहे हैं बात ,जो संगीतकार भी हैं और शास्त्रीय संगीतकार कुमार गंधर्व , हृदयनाथ मंगेशकर , भीमसेन जोशी और नुसरत फतेह अली खान से मुतासिर हैं ,
आपने महज़ 12 ,13 साल की उम्र में संगीत गुरु और ज्ञान की तलाश में घर छोड़ दिया था भटकते हुए ऋषिकेश पहुंचे और गंगा नदी के तट पर साधू संतों की संगत में भक्ति में लीन हो, संगीत साधना करने लगे भजनों में डूब गए कई सालों तक शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत का रियाज़ करते रहे ,
1999 वे में जब घर लौटे तो हैंडीक्राफ्ट का बिजनेस शुरू किया जो अच्छे से चल नहीं पाया और कैलाश फिर मायूस हो गए ।
कुछ वक्त बाद सन 2001 में अपने उन दोस्तों के पास मुंबई आए जो पहले से फिल्म संगीत से जुड़े थे जिनके ज़रिए उन्हे कुछ जिंगल्स में काम मिला और धीरे धीरे बड़े ब्रांड के लिए भी गाने लगे इतने संघर्ष के बाद किसी तरह फिल्म मिली अंदाज़ जिसका गाना रब्बा इश्क न होवे लोकप्रियता की हदें पार करने लगा हर किसी की ज़ुबान पर चढ़ गया ,इसके बाद अल्लाह के बंदे हंस दे गीत ने तो मानो सबको नए जोश से भर दिया और वो पहचाने जाने लगे एक सिंगिंग स्टार के रूप में
फिर उन्होंने बॉलीवुड फिल्म मंगल पांडे: द राइजिंग में कई गाने गाए , आपका दूसरा लोकप्रिय गाना बना कॉरपोरेट का “ओ सिकंदर” । उसके बाद आपने बैंड कैलासा में गाना “तेरी दीवानी” और फिल्म सलाम-ए-इश्क: ए ट्रिब्यूट टू लव का गाना “या रब्बा” गाया और आलम ये हुआ कि उन्हें फिल्म बाहुबली 2: द कन्क्लूजन के लिए गाने का मौका मिला इस फिल्म में उनके गाने ” जय जय करा ” और “जल रही है चिता” काफी लोकप्रिय हुए बस तब से लेकर अब तक ये सुरीला सफर मुसलसल जारी है ।
कैलाश खेर को 2017 में भारत सरकार से पद्म श्री पुरस्कार मिला। उन्हें सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक के लिए दो फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिले हैं : एक हिंदी फ़िल्म फ़ना (2006) के लिए और एक तेलुगु फ़िल्म मिर्ची (2013) के लिए।
अब तक कई तरह के गीतों से हमें लुत्फ अंदोज़ करने वाले कैलाश सभी स्वरों में इतनी शिद्दत से गाते हैं की एक रूहानी सुकून मिलता है सुनने वालों को,
7 जुलाई 1973 को दिल्ली के मयूर विहार में एक कश्मीरी परिवार में जन्में कैलाश के पिता मेहर सिंह खेर एक पारंपरिक लोक गायक थे और कैलाश के संगीत की प्रथम पाठशाला भी ।

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