Halshashti, Balaram Jayanti Ki Kahani – हलषष्ठी, जिसे “हरछठ” या “ललही छठ” भी कहा जाता है, एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जो भगवान बलराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत, विशेषकर ब्रज क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं तथा हल (कृषि उपकरण) और गाय की पूजा की जाती है।
हल षष्ठी (Hadshasthi) एक हिन्दू पर्व है जो बलराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, और इस दिन कृषक व यदुवंशी परिवार भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म धूमधाम से मनाते हैं। बलराम को “हलधर” भी कहा जाता है क्योंकि वे हल लेकर चलते थे. इस लेख में हम हलषष्ठी और बलराम जन्म से जुड़ी जनश्रुतियों, पौराणिक कथाओं, मान्यताओं और इसके सांस्कृतिक महत्वपक्षों के शामिल किया है।
हलषष्ठी और बलराम जयंती का धार्मिक महत्व
हलषष्ठी का पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार कृषि और संतान की रक्षा से जुड़ा है, इसलिए इसमें हल और गाय की पूजा की जाती है।
बलराम और कृषि संबंधी महत्व
हल किसानों के लिए समृद्धि का प्रतीक है, इसलिए इस दिन किसान हल की पूजा करके अच्छी फसल की कामना करते हैं। जबकि परिवार की माताएं इस व्रत को संतान की दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए रखती हैं, जिसमें हल से जुड़े अनुष्ठान किए जाते हैं।
बलराम जन्म की पौराणिक कथा
बलराम, भगवान कृष्ण के बड़े भाई हैं, जिन्हें “हलधर” या “बलदाऊ” भी कहा जाता है। इनके जन्म से जुड़ी कथा अत्यंत रोचक है।
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देवकी के सातवें गर्भ की रक्षा – कंस के भय से देवकी के सातवें गर्भ को योगमाया ने रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया, जिससे बलराम का जन्म हुआ।
हल और मूसल के अस्त्र – बलराम का प्रमुख अस्त्र हल था, जिसके कारण उन्हें कृषि और शक्ति का देवता माना जाता है।
हलषष्ठी की विशेष परंपराएं – इस दिन विशेष रूप से गाय के दूध से बने व्यंजनों का उपयोग किया जाता है क्योंकि किसान और यदुवंशी समाज का यह प्रमुख व्यवसाय होता है और इस दिन हल से जुड़े अनुष्ठान किए जाते हैं।
छठ पूजा की रस्म – महिलाएं मिट्टी,लकड़ी और धातु के हल और गाय के गोबर से बने उपकरणों की पूजा करती हैं तथा छठ का विशेष प्रसाद बनाती हैं। जबकि अब इसका आधुनिक स्वरुप भी देखा जा रहा है की इस समय में हलषष्ठी का स्वरूप
आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी प्राचीन छटा लिए हुए है यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में इसका प्रचलन कम होती जा रही है।
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सांस्कृतिक जागरूकता-कुछ संस्थाएं इस पर्व को पुनर्जीवित करने के लिए जागरूकता अभियान चला रही हैं। क्योंकि यह युग डिजिटल दुनियां कहि जाती है अतः अब हमारी धर्म संस्कृति का विस्तार और ज़मीनी स्तर पर प्रचार हो सकता है। सोशल मीडिया पर हलषष्ठी से जुड़े पोस्ट्स और वीडियोज़ के माध्यम से युवाओं को इसकी जानकारीदेना इसका बड़ा और सशक्त माध्यम है।
विशेष – हलषष्ठी न सिर्फ एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह भारतीय कृषि संस्कृति और सनातन परंपराओं का प्रतीक भी है। बलराम जन्मोत्सव के साथ जुड़ा यह त्योहार हमें प्रकृति और पशुधन के प्रति सम्मान का संदेश देता है। आज के दौर में ऐसे पर्वों को संजोकर रखना हमारी सांस्कृतिक विरासत को बचाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।