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Halshashthi Puja 2025 – हर्षोल्लाष से हलषष्ठी व्रत – पूजा संपन्न

Halshashthi Puja 2025 – आज रीवा शहर में भी हलषष्ठी का त्योहार बड़ी धूमधाम व आस्था से बनाया गया। सर्व विदित है कि हलषष्ठी का व्रत महिलाएं बड़ी श्रद्धा भाव से अपने पुत्रों व संतान की लंबी आयु व जीवन पर्यन्त सुख-समृद्धि यश-कीर्ति, स्वास्थ्य व हर क्षेत्र में सफलता की कामना करते हुए रखतीं हैं। इस अवसर पर प्रमुख रूप से पड़वा वाली भैंस के दूध दही घी का विशेष महत्व है उसी तरह भैंस के गोबर को विगत दो-तीन दिनों से महिलाएं खोजती नज़र आईं । वहीं बाजार में जूना, जरिया,छूला व महुआ के पत्तों और पूजन-सामाग्री की रंगत से जहां हरा-भरा नज़र आया वहीं महुआ की मस्त खुशबू से वातावरण गमकता रहा। इसके अलावा परिवार में भी अपने लिए अपनी माताओं का यह त्याग,तप और आस्था में अटूट विश्वास देख जहां रिश्तों में मजबूती और कसावट देखी गई जिसमें घर-परिवार के पुरुष सदस्यों को भी हलषष्ठी की तैयारियां करते घर से बाहर बाजारों तक मशगूल देखा गया वहीं व्रती महिलाएं की मदद कर उन्होंने तीजत्योहार के महत्व और उद्देश्य को सार्थक बनाते हुए सकारात्मक संदेश दिया।

प्रकृति महत्व का बोलबाला – सुबह से महुवा की दातून कर व्रत की विधि प्रारंभ हुई जिसमें महिलाओं ने महुआ के पानी से ही स्नान किया और लट धोई की परंपरा निभाई। जिसमें घरेलू महिलाएं जहां नदी तालाब में नहाने पहुंचीं तो शहर की कामकाजी महिलाओं ने शॉर्ट कट अपनाया घर में ही वॉशरूम कब को ही तालाब मानकर पूजन परंपरा का निर्वहन किया।

सामाजिक व नैतिक मूल्यों का संरक्षण – सौलह श्रृंगार से सुसज्जित महिलाओं ने परिवार की महिलाओं और मुहल्ला पड़ोस की व्रती महिलाओं संग हरछठ माता को मनाते हुए नया चूल्हा परचा कर जहां सतंजा भूंजा वहीं महुआ उसवाकर पड़वा वाली भैंस के दूध-दही और घी के साथ मौसमी बिना जोत के फल सेव-केला और श्रीफल से पूजन किया और इस तरह पारिवारिक व सामाजिक एकता, सौहार्द सहित अपनों की परवाह का आध्यात्मिक दर्शन कराया।

सच्चाई बयां कर व्रत को किया सार्थक – हलषष्ठी में पौराणिक कथाओं के अनुसार पड़वा वाली भैंस का दूध दही घी अनिवार्य होता है लेकिन इस बार हर एक व्रती महिलाओं को यह उपलब्ध नहीं हो सका। जबकि व्रत का असल महत्व ईमानदारी और सत्यता का भी निर्वहन किया जिसमें महिलाओं ने हरछठ माता के समक्ष इस सच्चाई को बता कर बछड़े वाली गाय के दूध-दही और घी से ही पूजन किया और अपने शिक्षित व जागरूक होने की सार्थक मिसाल देते हुए परिस्थितियों में परिवर्तन को प्रगति का सूत्र बनाते हुए अपनी धर्म संस्कृति को भी संरक्षित किया।

पंडित जी ने किया समस्या समाधान – हलषष्ठी का पूजन करा रहे पुरोहित ने भैंस के दूध-दही और घी न मिलने की समस्या का समाधान करते हुए बताया कि तत्कालीन समय में गाय के दूध-दही और घी की उपयोगिता ज्यादा थी क्योंकि इसकी तासीर ठंडी और भैंस के दूध की गर्म होती थी जिसके चलते घरों, बाज़ार में मिष्ठान हेतु, वैध खानों में औषधीय कार्य में केवल गाय का दूध उपयोग किया जाता था लेकिन जिसके गया का महत्व उपयोगिता के चलते जहां बड़ा था वहीं भैंस को भी पशुधन में शामिल होने इस तरह की कथाएं प्रचलित हुई ताकि लोग सहमत हों और भैंस को भी संरक्षित करें क्योंकि भैंस का दूध जहां गर्म तासीर का होता है वहीं स्वादिष्ट और ताकतवर भी होता है। पुरोहित की बात सुनकर महिलाओं ने प्रसन्नता पूर्वक माता हरछठ के चरणों में बछड़े वाली गाय के दूध-दही और घी को अर्पित कर हर्षोल्लास से पूजन किया।

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