ट्रंप का नया H-1B वीजा नियम: ₹88 लाख सालाना फीस, 3 लाख भारतीयों पर बरपा सकता है संकट

H-1B Visa New Rule In Hindi: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने H-1B वीजा प्रोग्राम (H-1B Visa Programme) पर कड़ा प्रहार करते हुए एक प्रॉक्लेमेशन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, जिसमें आवेदन शुल्क को सालाना 100,000 डॉलर (USD 100,000) यानी करीब ₹88 लाख कर दिया गया है। यह बदलाव 21 सितंबर 2025 से लागू होगा, जो नए आवेदनों और रिन्यूअल दोनों पर लागू होगा। छह साल के पूरे H-1B पीरियड के लिए कुल खर्च अब ₹5.28 करोड़ तक पहुंच जाएगा, जो पहले के ₹5 लाख से 50 गुना ज्यादा है। व्हाइट हाउस (White House) के स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ (Will Sharf) ने कहा, “यह नियम सुनिश्चित करेगा कि विदेश से आने वाले लोग वाकई उच्च कुशल हों और अमेरिकी कर्मचारियों से प्रतिस्थापित न हो सकें।” लेकिन यह कदम भारतीय आईटी पेशेवरों (Indian IT Professionals) के लिए बड़ा झटका है, जहां 72% H-1B वीजा भारतीयों को मिलते हैं 2024 में अकेले 2,07,000 भारतीयों को यह वीजा मिला था।

ट्रंप ने 19 सितंबर को व्हाइट हाउस में इस प्रॉक्लेमेशन पर साइन किए, जो 12 महीने के लिए प्रभावी होगा और विस्तार की गुंजाइश रखता है। कंपनियों को फीस का प्रमाण देना अनिवार्य होगा, वरना यूएस स्टेट डिपार्टमेंट (US State Department) या डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) द्वारा पिटीशन रद्द कर दी जाएगी। अगर कोई H-1B वीजा होल्डर 21 सितंबर के बाद अमेरिका छोड़ता है, तो वापसी के लिए कंपनी को फिर से ₹88 लाख चुकानी पड़ेगी। कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटिग (Howard Luttig) ने कहा, “सभी कंपनियां ₹88 लाख सालाना देने को तैयार हैं। हमने उनसे बात की है। अगर ट्रेनिंग करनी है, तो अमेरिकी यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट्स को ट्रेन करें। अमेरिकियों को ट्रेन करें। बाहर से लोगों को लाकर नौकरियां न छीनें।”

यह कदम H-1B प्रोग्राम को “सबसे अधिक दुरुपयोग” बताते हुए उठाया गया है, जहां कंपनियां कम वेतन पर विदेशी वर्कर्स लाती हैं। अनुमान है कि इससे अमेरिकी सरकार को 100 बिलियन डॉलर का राजस्व मिलेगा, जो टैक्स कटौती और सरकारी कर्ज चुकाने में लगेगा। लुटिग ने जोड़ा, “पहले यह व्यवस्था अन्यायपूर्ण थी, लेकिन अब हम सिर्फ वाकई सक्षम लोगों को लेंगे।”

H-1B Visa के नए नियम से भारतीयों पर क्या प्रभाव

यह बदलाव सीधे 3 लाख से ज्यादा भारतीय पेशेवरों को प्रभावित करेगा, खासकर आईटी और टेक सेक्टर में। इन्फोसिस (Infosys), टीसीएस (TCS), विप्रो (Wipro), कॉग्निजेंट (Cognizant) और एचसीएल (HCL) जैसी कंपनियां अब मिड-लेवल और एंट्री-लेवल कर्मचारियों को अमेरिका भेजने में हिचकिचाएंगी, क्योंकि ऊंची फीस आउटसोर्सिंग को महंगा बना देगी। 2024 के आंकड़ों के मुताबिक, अमेजन (Amazon), माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) और मेटा (Meta) जैसी अमेरिकी टेक जायंट्स ने सबसे ज्यादा H-1B वीजा लिए थे। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारतीय टैलेंट कनाडा (Canada), ऑस्ट्रेलिया (Australia), यूरोप (Europe) और मिडिल ईस्ट (Middle East) की ओर रुख करेगा। माइक्रोसॉफ्ट, जेपी मॉर्गन (JP Morgan) और अमेजन ने अपने H-1B वीजा होल्डर कर्मचारियों को सलाह दी है कि 21 सितंबर से पहले अमेरिका लौट आएं, ताकि री-एंट्री फीस से बचा जा सके। इंडियन अमेरिकन कम्युनिटी में चिंता है कि यह “अमेरिका फर्स्ट” (America First) नीति का अतिरेक है, जो वैश्विक टैलेंट पूल को नुकसान पहुंचाएगा।

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