देश प्रेम की मिसाल बनकर आज भी अपने बेशुमार नग़्मों हर भारतवासी के दिल में बसते हैं गुलशन बावरा

gulshan bavara

न्याजिया बेग़म

Gulshan Bawra Death Anniversary: आज हम जिनकी बात कर रहे हैं उनकी क़लम से निकला गीत, मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, जो देश प्रेम की मिसाल बनकर आज भी हर भारतवासी के दिल में बसता है तो दूसरी तरफ दोस्ती को ईमान बना कर यार को ज़िंदगी मानने वालों को बतौर तोहफा मिला ज़ंजीर फिल्म का गीत यारी है ईमान मेरा यार,वहीं ज़िंदगी का पैगाम लिए गीत उन्होंने हमें दिया, आती रहेंगी बहारें जाती रहेंगी बहारें दिल की नजर से दुनिया को देखो दुनिया सदा ही हंसीं है…। जी हां ऐसे ही जाने कितने बेशुमार नग़्मों का ताना बाना बुना गुलशन बावरा ने और उनके गीतों की लोकप्रियता का अंजाम ये हुआ कि उन्होंने ,मेरे देश की धरती और यारी है ईमान गीतों के लिए 1968 और 1974 का , फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ गीतकार का खिताब अपने नाम किया, उन्होंने अपने 42 साल के करियर में, क़रीब 240 गाने लिखे । पर इन अर्थपूर्ण बेशकी़मती नग़्मों के पीछे शायद कई सबक थे जो उन्हें ज़िंदगी ने ग़मों के सहारे बचपन से पढ़ा दिए थे।

लाहौर से 30 किलोमीटर दूर शेखूपुरा में पैदा हुए गुलशन कुमार मेहता का परिवार विभाजन के दंगों का शिकार हो गया था और गुलशन ने अपने पिता और अपने चचेरे भाई के पिता को अपनी आँखों के सामने मरते हुए देखा था इसके बाद जयपुर में उनकी बड़ी बहन ने उनका और उनके बड़े भाई का पालन-पोषण किया जब दोनो बड़े हुए तो उनके भाई को नौकरी मिल गई और आप दोनों दिल्ली चले गए, जहाँ उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया और कॉलेज के दौरान, कविताएँ लिखना भी शुरू कर दिया फिर उनको क्लर्क के पद पर मुंबई में नौकरी मिल गई पर उनका मन फिल्मों की तरफ खिंचा चला जा रहा था तो उन्होंने फिल्मों में जाने की कुछ कोशिशें की ,कल्याण जी से मिले ,तब कहीं जाकर उन्हें (1959) की फिल्म चंद्रसेना में लता मंगेशकर के गाए गए गीत “मैं क्या जानू कहां लागे ये सावन मतवाला रे” में अपना पहला काम मिला ।

इस दौरान फिल्म वितरक शांतिभाई पटेल भी उनसे मिले और जाने उन्हें ऐसा क्या दिखा कि उन्होंने उनका उपनाम “बावरा” रख दिया और वो तब से हम सबको अपना दीवाना बनाने लगे कभी अपने अभिनय के ज़रिए तो कभी अपने लिखे गीतों से
उनकी अदाकारी से कुछ पंजाबी फिल्में भी सजी और हिंदी फिल्में रहीं :-एक दिन का बादशाह ,उपकार ,परिवार ,विश्वास ,पवित्र पापी ,प्यार की कहानी ,जाने-अनजाने ,जंगल में मंगल ,शहज़ादा(1973).की फिल्म ज़ंजीर में तो आप उन्हें गीत “दीवाने हैं दीवानों को ना” में देख सकते हैं। बतौर नग़्मा निगार उनकी कुछ चुनिंदा फिल्मों का ज़िक्र करें तो लाफंगे ,अगर… अगर, आप के दीवाने ,ये वादा रहा ,अगर तुम ना होते ,बॉक्सर ,बीवी हो तो ऐसी ,इंद्रजीत ,बसेरा और इंग्लिश बाबू देसी मेम हमें याद आती हैं,जो उनके दिलनशीं नग़्मों से संवरी। 7 अगस्त 2009 को 72 साल की उम्र में उनका ये सफर अपनी मंज़िल ए मक़सूद पर आकर खत्म हो गया परअपने चाहने वालों के दिलों में वो हमेशा जावेदा रहेंगे ।

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