New year 2026 : कैलेंडर बदलते ही जीवन में नए उत्साह का संचार होने लगता है। साल 2025 के विदा होने और 2026 के स्वागत की पदचाप अब सोशल मीडिया के गलियारों में साफ़ सुनाई देने लगी है। जहाँ एक दशक पहले तक दिसंबर के अंतिम सप्ताह में डाकघरों और बुक स्टोर्स पर ग्रीटिंग कार्ड खरीदने वालों की लंबी कतारें दिखती थीं, वहीं अब यह उत्साह स्मार्टफोन की स्क्रीन पर ‘स्टेटस’ और ‘रील्स’ के रूप में सिमट गया है।
सोशल मिडिया पर तैयारियों ने ज़ोर पकड़ लिया है| New year 2026
फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप पर नववर्ष की तैयारियों ने ज़ोर पकड़ लिया है। युवाओं के बीच डिजिटल संदेशों का चलन बढ़ा है। अब लोग केवल हैप्पी न्यू ईयर नहीं लिखते, बल्कि अपनी साल भर की यादों का रीकैप वीडियो बनाकर साझा कर रहे हैं। बाज़ारों की रौनक भी अब भौतिक वस्तुओं से ज़्यादा ‘डिजिटल मार्केटिंग’ की ओर झुक गई है। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर नए साल के गिफ्ट हैंपर्स की भरमार है, जिन्हें एक क्लिक पर देश के किसी भी कोने में भेजा जा सकता है।
क्या कारण रहा जो डिजिटल पर निर्भर हुए लोग | New year 2026
लोगों का डिजिटल पर निर्भर होने के कुछ बड़े कारण रहे हैं। पहला तो सोशल मीडिया पर संदेश पलक झपकते ही पहुँच जाता है, जबकि डाक में समय लगता है। एक डिजिटल संदेश मुफ्त है, जबकि प्रिंटेड कार्ड और कुरियर का खर्च बढ़ता जा रहा है।
पर्यावरण जागरूकता: कागज़ की बर्बादी रोकने के लिए भी कई लोग ई-कार्ड्स को प्राथमिकता दे रहे हैं।
यादों में जीवंत है ‘लिखावट का स्पर्श’
भले ही तकनीक ने संवाद को तेज़ कर दिया है, लेकिन पुराने लोग आज भी उन कार्ड्स को याद करते हैं जिनमें अपनों के हाथों की लिखावट होती थी। समाजशास्त्रियों का मानना है कि डिजिटल संदेशों में वह ‘भावनात्मक जुड़ाव’ कम होता जा रहा है जो एक भौतिक कार्ड में होता था। सहेज कर रखे गए वे पुराने कार्ड आज भी किसी संदूक में मिल जाएँ, तो चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं। समय के साथ परिवर्तन अनिवार्य है। आज नववर्ष की खुशियाँ ‘लाइक’ और ‘कमेंट’ के माध्यम से साझा की जा रही हैं। ग्रीटिंग कार्ड भले ही बाज़ारों से ओझल हो रहे हों, लेकिन अपनों को याद करने का जज़्बा आज भी सोशल मीडिया के माध्यम से उतना ही जीवंत है।
