नेपाल में एक बार फिर सत्ता बदलने जा रही है. केपी शर्मा ओली, जो अब तक पुष्प कमल दहल “प्रचंड” की सरकार में सहयोगी थे, प्रधानमंत्री बनेंगे. यह उनका तीसरा कार्यकाल होंगे। नेपाल में पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने नई सरकार बनाने का दवा पेश किया। पुष्प कमल दहल “प्रचंड” के संसद में विश्वास मत हारने के बाद राष्ट्रपति के सामने 166 सांसदों के समर्थन का दावा किया है।
अब तक केपी ओली रहे सरकार का हिस्सा
अब तक केपी ओली पुष्प कमल दहल “प्रचंड” की सरकार को समर्थन दिए थे. उस वक्त नेपाली कांग्रेस ने विपक्ष में रहना तय किया था. लेकिन अब नेपाली कांग्रेस ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (मार्किसिस्ट-लेनिनिस्ट) के साथ सरकार का हिस्सा होगी. बता दें कि नेपाल के निचले सदन की सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस के साथ सत्ता का साझा समझौता करने के बाद केपी शर्मा ओली की पार्टी ने मौजूदा सरकार के गठबंधन से खुद को बाहर कर लिया था.नेपाली संविधान के अनुच्छेद 100 के मुताबिक़, संसद के निचले सदन 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में बहुमत के लिए 138 सीटों की ज़रूरत है.शुक्रवार को सदन की बैठक में 194 सांसद प्रचंड के ख़िलाफ़ थे और 63 सांसद विश्वास मत के पक्ष में खड़े हुए.
भारत पर क्या होगा असर?
एक बार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि भारत और नेपाल के बीच रोटी -बेटी का रिश्ता है. लेकिन नेपाल का रुख धीरे धीरे चीन की तरफ बढ़ रहा है. ऐसे में केपी ओली का फिर सत्ता में आना भारत के पक्ष में नहीं है.”यूएमएल और नेपाली कांग्रेस की निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ मिलकर जो नई सरकार बन रही है, इसका रुख़ भारत की तरफ़ दोस्ताना नहीं रहने वाला, क्योंकि इन दोनों ही पार्टियों की लीडरशिप की भारत के राजनीतिक नेतृत्व से बनी नहीं है. ये तय है कि भारत के साथ इनके संबंध अच्छे नहीं होंगे.” भारत और नेपाल के बीच कालापानी और लिपुलेख विवाद सुर्ख़ियो में रहा . यह विवाद तत्कालीन नेपाली प्रधान मंत्री केपी ओली के समय और अधिक बढ़ गया था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि केपी ओली के सत्ता में दुबारा काबिज होने से भारत को कोई लाभ नहीं है.
चीन की ओर झुकाव
चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत भारत के पड़ोसियों पर अपनी दखल को बढ़ाता जा रहा है. नेपाल के सामने मजबूरी है की वह चीन को नकार नहीं सकता है। लेकिन हॉल के वर्षो में नेपाल और चीन करीब आये है. केपी शर्मा ओली को चीन संमर्थक माना जाता है. उनके कार्यकाल में भारत से विवाद लगातार बढ़ गए थे. भारत के सामने यह बड़ी चुनौती होंगी। ये गठबंधन (सीपीएन-यूएमएल और नेपाली कांग्रेस) की सरकार होगी. नेपाली कांग्रेस का ज़ोर कूटनीतिक रास्तों के ज़रिए समस्या का समाधान ढूंढने पर होता है.
“प्रचंड” को निराशा
इस पूरे घटना क्रम में प्रचंड को निराशा हाथ लगी है क्योंकि उन्होंने अपने गटबंधन को बचाने के तमाम प्रयाश किए। लेकिन वह सफल न हो पाए. प्रचंड की पार्टी सीपीएन-माओवादी सेंटर प्रतिनिधि सभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है.संसदीय चुनावों के बाद, प्रचंड को 10 दिसंबर को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था.इस बीच उन्होंने दो बार यूएमएल और एक बार कांग्रेस के साथ सत्ता में साझेदारी की थी.नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-यूएमएल के नेताओं ने यह सार्वजनिक कर दिया है कि वे बारी-बारी से प्रधानमंत्री होंगे.नेपाली कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और यूएमएल अध्यक्ष केपी शर्मा ओली के बीच हुए समझौते के अनुसार ओली पहले कमान संभालेंगे.