Germany Economic Crisis: जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार

Germany Economic Crisis: इन दिनों जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार पड़ रही है . देश की कंपनी को मिलने वाले आर्डर 2009 की मंदी के बाद से सबसे निचले स्तर पर है .

यह भी पढ़े :Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha | देवउठनी एकादशी व्रत कथा

इन दिनों जर्मनी की अर्थव्यवस्था गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है.कच्चे माल, खासकर लिथियम पर बढ़ती निर्भरता और ऑर्डर की कमी से उसकी स्थिति 2009 की मंदी के बाद से सबसे कमजोर हो गई है. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी का विदेशी संसाधनों, खासकर चीन पर निर्भर रहना प्रमुख उद्योगों, जैसे ऑटोमोबाइल निर्माण के लिए खतरे का संकेत है. साथ ही, ऑर्डर की कमी से आर्थिक परेशानी और बढ़ रही है

गौरतलब है कि सोमवार को जर्मनी के प्रमुख उद्योग संघ, फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्रीज ने चेतावनी दी कि जर्मनी की कच्चे माल, खासकर लिथियम के लिए आयात पर निर्भरता बढ़ रही है. बीडीआई ने बताया कि अगर चीन से लिथियम का आयात रुक जाता है, तो इससे जर्मनी की अर्थव्यवस्था को लगभग 115 अरब यूरो (122 अरब डॉलर) का नुकसान हो सकता है, जो औद्योगिक उत्पादन का लगभग 15 फीसदी है.

कच्चे माल पर निर्भरता का संकट

गौरतलब है कि , बीडीआई के अध्यक्ष, सीग्रिड रुस्वुर्म ने इस स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा, “राजनीतिज्ञों को हर संभव प्रयास करना चाहिए ताकि यह स्थिति पैदा ना हो.” उन्होंने कहा कि जर्मनी और यूरोप जरूरी कच्चे माल के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे छूटने के कगार पर हैं. रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी का 50 फीसदी लिथियम आयात चीन से होता है, जो 2014 में केवल 18 प्रतिशत था.

आर्डरों में भारी गिरावट

दिलचस्प बात यह है कि म्यूनिख स्थित इफो इंस्टीट्यूट ने विभिन्न क्षेत्रों में ऑर्डर में भारी गिरावट दर्ज की है. इफो के आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में 41.5 फीसदी जर्मन कंपनियों ने ऑर्डर की कमी दर्ज की है, जो जुलाई में 39.4 फीसदी थी. यह आंकड़ा कोविड-19 महामारी के दौरान किसी भी समय से अधिक है और 2009 के वित्तीय संकट के बाद की सबसे खराब स्थिति है.

ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में बड़ा संकट

आपको बता दे कि जर्मनी का प्रमुख ऑटोमोबाइल और केमिकल सेक्टर भी इस संकट का सामना कर रहा है. दोनों क्षेत्रों में करीब 44 फीसदी व्यवसायों ने ऑर्डर की कमी की बात कही है. व्यापार क्षेत्र की स्थिति भी चिंताजनक है, जिसमें 65.5 फीसदी व्यापारिक कंपनियों और 56.4 फीसदी खुदरा कंपनियों में ऑर्डर की कमी दर्ज की गई है.

सेवा क्षेत्र की स्थिति थोड़ी बेहतर है, जिसमें 32.1 फीसदी कंपनियों ने ऑर्डर कम होने की बात कही है, जो पहले 31.2 फीसदी थी. वोलराबे ने बताया कि भर्ती एजेंसियों पर इसका असर ज्यादा पड़ा है क्योंकि अस्थायी कर्मचारियों की मांग में कमी आई है. इसके विपरीत, कानूनी और टैक्स क्षेत्र के पेशेवर और अकाउटेंट्स स्थिति को लेकर ज्यादा आशावादी हैं, क्योंकि उच्च स्तर की नौकरशाही और नियमों के चलते उनकी मांग बनी हुई है.

यह भी देखें :https://youtu.be/GCOq8XOXNc4?si=d0oKg6fvbdf2Z1ez

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *