गीता जयंती। गीता जयंती वह दिन है जब भगवान श्री कृष्ण ने गीता ज्ञान को अर्जुन को समझाया था. ये मोक्षदा एकादशी पर देखा जा रहा है। इस वर्ष गीता जयंती 1 दिसंबर को मनाई जा रही है। इस दिन भगवान कृष्ण के साथ श्रीहरि की पूजा-अर्चना भी की जाती है।
महर्षि वेदव्यास ने लिखा था गीता ज्ञान
भगवद गीता को महर्षि वेदव्यास ने लिखा था और यह करीब 5000 साल पहले महाभारत के हिस्से के रूप में लिखी गई थी। गीता का उपदेश कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दिया था, और व्यास जी ने इस संवाद को संजय की दिव्य दृष्टि से सुनकर संकलित किया। यह महाभारत महाकाव्य का एक भाग है, जिसमें 700 संस्कृत श्लोक हैं। वेदव्यास ने न केवल महाभारत, बल्कि भगवद गीता को भी एक आध्यात्मिक कार्य के रूप में लिखा, जिसका उद्देश्य लोगों को ज्ञान देना था। कुछ परंपराओं के अनुसार, वेदव्यास ने यह ज्ञान भगवान गणेश को सुनाया और उन्होंने इसे लिखा था, क्योंकि उस समय लेखन कला का व्यापक प्रचलन नहीं था।

ये है 18 मुख्य बाते
भगवद गीता की 18 ज्ञान की बातें जीवन के कई पहलुओं को छूती हैं, जैसे कि कर्म का महत्व, आत्मा की अमरता, क्रोध और मोह से बचना, और आनंद व शांति की प्राप्ति। इन बातों में यह भी शामिल है कि परिवर्तन संसार का नियम है, जो हुआ सो अच्छे के लिए हुआ, और कर्म के फलों से नहीं, बल्कि कर्म करने में अपना अधिकार समझो। इसके अतिरिक्त, ये बातें बताती हैं कि मन और बुद्धि पर हमेशा विश्वास नहीं करना चाहिए, बल्कि सतसंगति और पवित्र जीवन का पालन करना चाहिए।
- परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है- जिस तरह मनुष्य वस्त्र बदलता है, उसी तरह आत्मा शरीर बदलती है। कोई भी चीज हमेशा के लिए नहीं रहती।
- आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है- आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही कभी मरती है। शरीर की मृत्यु होती है, आत्मा की नहीं।
- कर्म का फल भोगना ही पड़ता है- कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ेगा, चाहे वह शुभ हो या अशुभ।
- कर्म ही पूजा है- कर्म में कुशलता ही योग है। कर्म करना निष्क्रिय रहने से बेहतर है।
- क्रोध से बुद्धि नष्ट होती है- क्रोध से भ्रम और भ्रम से बुद्धि का नाश होता है। इसलिए, कभी भी अधिक क्रोध नहीं करना चाहिए।
- मोह और लोभ से बचें- मोह और ममता पाप के माता-पिता हैं। जितना अधिक लगाव होगा, उतना ही दुख होगा।
- अपने विश्वासों के अनुसार बनें- व्यक्ति जैसा विश्वास करता है, वह वैसा ही बनता है। इसलिए, सही विश्वास रखना महत्वपूर्ण है।
- सत्संगति से सद्गुण आते हैं- धैर्य, सदाचार और स्नेह जैसे गुण सत्संगति के बिना नहीं आते।
- आपकी पहचान आपकी सोच से बनती है- जो आप सोचते हैं, वही आपकी पहचान बनती है। सोच का दूरदर्शी होना सफलता के लिए जरूरी है।
- आंतरिक आनंद ही सच्चा सुख है- सच्ची खुशी कहीं बाहर नहीं, बल्कि मनुष्य के भीतर ही है।
- सभी प्राणियों में ईश्वर का वास है- ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में स्थित है।
- अपनी बुद्धि पर हमेशा विश्वास न करें- मन और बुद्धि धोखा दे सकते हैं। इसलिए, उन पर आंखें मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए।
- पवित्र जीवन का महत्व- यदि पति-पत्नी पवित्र जीवन बिताएं, तो भगवान पुत्र के रूप में उनके घर आने की इच्छा रखते हैं।
- दूसरों का जरूरतमंद न बनें- किसी के जरूरतमंद होने से उसका लाभ उठाने लगते हैं और गुलामी करनी पड़ती है, जिससे दुख आता है।
- सभी भेदभावों को मिटाएं- अपना और पराया जैसे भेद मिटा दें। तब आपको लगेगा कि सब कुछ आपका है।
- जुआ, मदिरापान और परस्त्रीगमन से बचें- ये कलियुग के वास हैं। ये जीवन को नष्ट करते हैं।
- अपनी गलतियों से सीखें- हार-जीत जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन जो अपनी गलतियों से सीखता है, वही सफल होता है।
- जो मुझे जैसा मानता है, मैं भी वैसा ही बन जाता हूँ- जो मुझे जैसा याद करता है, मैं भी उसका वैसा ही साथ देता हूँ।
एमपी में तीन दिवसीय गीता महोत्सव
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, 1 दिसंबर, सोमवार को गीता जयंती के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का शुभारंभ करेंगे। इस अवसर पर मध्यप्रदेश के 313 विकासखंड, 55 जिला मुख्यालय और 10 संभागों में आचार्यों की सन्निधि में 3 लाख से अधिक गीताभक्तों द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता के 15वें अध्याय का सामूहिक सस्वर पाठ किया जायेगा। गीता जयंती पर उज्जैन, भोपाल एवं इंदौर में विशेष आयोजन किये गये है। इंदौर के राजवाड़ा स्थित गोपाल मंदिर में मध्यप्रदेश के पहले गीता भवन का लोकार्पण हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की उपस्थिति में होगा। इस अवसर पर मध्यप्रदेश में 16 से 28 नवंबर 2025 तक आयोजित हुई श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञान प्रतियोगिता के विजेताओं के नामों की घोषणा भी की जायेगी।
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