Geeta Jayanti 2025 : गीता जयंती पर जानें श्रीकृष्ण उपदेश गीता के प्रथम श्लोक का मर्म

Geeta Jayanti 2025 : गीता जयंती पर जानें श्रीकृष्ण उपदेश गीता के प्रथम श्लोक का मर्म-सनातन धर्म की परंपरा में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अत्यंत पावन मानी जाती है। यह तिथि मोक्षदा एकादशी व्रत और गीता जयंती-दोनों का संगम है। मान्यता है कि इसी दिन कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन, कर्तव्य, धर्म और आत्मज्ञान का दिव्य उपदेश दिया था, जो बाद में श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में संकलित हुआ। आज 21वीं सदी में भी गीता के श्लोक मनुष्य को सही राह दिखाने,कठिन परिस्थितियों में निर्णय लेने और जीवन को संतुलित करने के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं। Geeta Jayanti 2025 पर जानें श्रीमद्भगवद् गीता के जन्म का महत्व,श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए उपदेश, गीता का प्रथम श्लोक, धर्म-कर्म का संदेश और जीवन में इसकी प्रासंगिकता।

गीता जयंती का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व-श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का ऐसा पवित्र ग्रंथ है जिसमें धर्म, भक्ति, ज्ञान और कर्मयोग का सार समाहित है। इसमें दिए गए उपदेश आज भी जीवन के हर क्षेत्र में प्रासंगिक हैं।

  • गीता जीवन के संघर्षों में मनुष्य को मानसिक शक्ति प्रदान करती है।
  • यह धर्म के मार्ग पर चलते हुए कठिन परिस्थितियों का सामना करने की प्रेरणा देती है।
  • गीता का संदेश बताता है कि व्यक्ति को फल की चिंता किए बिना कर्म करते रहना चाहिए।
    यही कारण है कि गीता को जीवन का सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक ग्रंथ कहा गया है।

गीता के प्रथम श्लोक का गहरा मर्म

“धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥”

गीता के प्रथम श्लोक के शुरुआती दो शब्द-धर्मक्षेत्रे और कुरुक्षेत्रे-संपूर्ण गीता का सार प्रस्तुत करते हैं।

  • धर्मक्षेत्रे – हर कर्म, हर निर्णय और हर परिस्थिति में धर्म का अनुसरण करना।
  • कुरुक्षेत्रे – जीवन स्वयं एक रणभूमि है, जिसमें चुनौतियों और संघर्षों के बीच मनुष्य को धर्म के मार्ग पर अडिग रहना चाहिए। गीता सिखाती है कि धर्म ही मनुष्य का रक्षक, मित्र और पथप्रदर्शक है। इसलिए किसी भी परिस्थिति में धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए।

गीता से मिले श्रीकृष्ण के अनमोल संदेश

कर्म का अधिकार, फल की चिंता नहीं जैसे – “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
मनुष्य केवल कर्म करने का अधिकारी है, उसके फल का नहीं। अर्थात – कर्तव्य को निष्ठा से निभाना ही सच्चा धर्म है।

धर्म की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत”
जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है और धर्म संकट में पड़ता है, तब भगवान स्वयं अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं।

जीवन संघर्ष है, लेकिन सही राह धर्म ही है-गीता बताती है कि कठिन समय में भी मनुष्य को अपना संयम, धैर्य और विवेक बनाए रखना चाहिए और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धर्म का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

ज्ञान, भक्ति और कर्म योग का संतुलन-गीता किसी एक मार्ग की नहीं, बल्कि तीनों मार्गों के संतुलित जीवन की बात करती है
कर्मयोग – कर्म को पूजा मानकर करना
ज्ञानयोग – आत्मा और परमात्मा का ज्ञान
भक्तियोग – ईश्वर में पूर्ण समर्पण,इन तीनों के मिलन से ही जीवन पूर्णता पाता है।

निष्कर्ष – गीता जयंती केवल एक धार्मिक पर्व भर नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाला दिवस है। श्रीकृष्ण का गीता ज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना महाभारत काल में था। यह हमें सिखाता है कि जीवन संघर्षों से भरा अवश्य है, पर सही मार्ग सदैव धर्म का अनुसरण, निस्वार्थ कर्म और ईश्वर में विश्वास ही है। गीता का हर श्लोक मानव जीवन को प्रकाश देने वाला दीपक है, जो अंधकार में भी सही रास्ता दिखाता है।

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