Geeta Hame Kya Sandesh Deti Hai: जीवन मे जब जब संकट आता है तब निर्णय लेना कठिन हो जाता है। मन भ्रमित हो जाता है और हृदय परेशान हो जाते हैं। ऐसे समय केवल एक मात्र ऐसा ग्रंथ है जो हमारी आत्मा को रास्ता दिखाता है और वह है श्रीमद् भागवत गीता। श्रीमद् भागवत गीता जीवन दर्शन (geeta gyan)पर आधारित एक ऐसा धर्म ग्रंथ है जो हमारे लिए हर परिस्थिति में काफी उपयोगी सिद्ध होता है।
गीता के संदेश मनुष्य को किस प्रकार सकारात्मक बना देते हैं?(how to gain positivity from bhagvad geeta)
भगवत गीता के श्लोक में जीवन का हर वह ज्ञान है जो हमें प्रेरणा देता है और मनोवैज्ञानिक रूप से शक्तिशाली बनाता है। भगवत गीता में केवल श्लोक ही नहीं तर्क भी दिए हुए हैं और यह तर्क हमें यह बताते हैं कि हमें किस प्रकार अपने जीवन में आत्मा की शुद्धता और मानसिक संतुलन को बनाए रखना है और आज के इस लेख में हम आपको इसी का विवरण उपलब्ध करवाने वाले हैं जहां हम बताएंगे भागवत गीता में श्री कृष्ण द्वारा बताए गए ऐसे 10 प्रेरणादायक तर्कसंगत संदेश जिससे आपका जीवन भी आसान हो सकता है।
भगवत गीता पर आधारित 10 प्रेरणादायक उपदेश(geeta ke updesh)
1 कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन
अर्थात मनुष्य का अधिकार केवल कर्म तक ही सीमित है फल की चिंता उसके हाथ में नहीं। मनुष्य यदि निष्काम कर्म करता रहे तो उसे फल की चिंता नहीं रहती और प्रत्येक मनुष्य के लिए यही आवश्यक है।
2 न जायते म्रियते वा कदाचन
अर्थात आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है। शरीर नश्वर है परंतु आत्मा शाश्वत है। ऐसे में मनुष्य को मृत्यु के भय तले दबना नहीं चाहिए बल्कि आत्मा की अमरता का बोध करते हुए जीना चाहिए।
3 यो यच्छ्रद्धः स एव सः।
अर्थात मनुष्य जिस प्रकार का विश्वास रखता है वह धीरे-धीरे वैसा बन जाता है। सकारात्मक मनुष्य हमेशा सकारात्मक ही रहता है और आत्मविश्वास से भर जाता है।
4 क्रोधाद्भवति सम्मोहः
क्रोध हमेशा भ्रम को जन्म देता है, भ्रम बुद्धि का नाश करता है और ऐसे में व्यक्ति की हार निश्चित हो जाती है। इसलिए व्यक्ति को हमेशा क्रोध से दूर रहना चाहिए।
5 समत्वं योग उच्यते।
अर्थात् सुख-दुख ,लाभ-हानि ,जय;पराजय सभी में समभाव रखना ही मनुष्य का काम है। मनुष्य को मानसिक संतुलन और आत्मा की शांति के बीच हमेशा सामंजस्य बनाए रखना चाहिए।
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6 योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।
अर्थात योग में स्थिर होकर आसक्ति त्याग कर काम करना चाहिए। कर्म करते समय यदि आसक्ति के साथ कम किया गया तो ऐसे कर्म का कोई मूल नहीं होता।
7 नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि
आत्मा को ना अस्त्र काटता है न शस्त्र भेद सकता है। ना अग्नि जला सकती है ना जल उसे भिगो सकता है ना वायु सूखा सकती है ना उसे किसी प्रकार का कोई कष्ट होता है क्योंकि आत्मा अजर अमर है।
8 जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
अर्थात जो व्यक्ति एक बार जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित होती है मृत्यु के बाद पुनर्जन्म भी निश्चित है और यही जीवन का चक्र है।
9 श्रद्धावान् लभते ज्ञानं…
मतलब जिज्ञासु व्यक्ति को ही ज्ञान की प्राप्ति होती है यदि कोई व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करना चाहता है तो उसे जिज्ञासा और श्रद्धा रखनी होगी।
10 यो मां पश्यति सर्वत्र…
अर्थात जो हर वस्तु में ईश्वर को देखा है उसके लिए ईश्वर अदृश्य नहीं होता ईश्वर सर्वव्यापी है और हर जगह हर कर में मौजूद है।