Geeta Dutt deathanniversary: ज़िंदगी की कश्मकश में उलझी एक महान गायिका जिनके गए बेमिसाल गीत सीखते हैं जिंदगी को गुदगुदाना

Geeta Dutt deathanniversary

न्याजिया बेग़म

Geeta Dutt deathanniversary: जिन्होंने मशहूर गीत “तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले” गाया, वो खुद अपनी तदबीर से तक़दीर न संवार पाईं मोहब्बत को खो देने का ग़म ज़िंदगी भर सताता रहा, ऐसी मोहब्बत जो खिलखिलाती रही तब भी तकलीफ़ दे रही थी और जब मौत की आग़ोश में सो गई तब भी एक नासूर छोड़ गई और ज़िंदगी की कश्मकश में उलझी एक महान गायिका वो सब नहीं कर सकी जो वो करना चाहती थी उनके कुछ और बेमिसाल गीतों को हम याद करें तो- “आज सजन मोहे अंग लगालो” “जाने क्या तूने कही ” मोहम्मद रफी के साथ “हम आप के आँखों में”) “हवा धीरे आना” “वक्त ने किया क्या हसीं सितम” आशा भोंसले के साथ “जानू जानू रे” “ज़रा सामने आ” “बाबूजी धीरे चलना” “ठंडी हवा काली घटा” ” मेरा नाम चिन चिन चू ” “कैसा जादू बलम तूने डारा” “जाता कहाँ है दीवाने” “ना जाओ साइयां छुड़ा के बइयां” “पिया ऐसो जिया में समाये गयो” “ऐ दिल मुझे बता दे'” “मुझे जां नहीं कहो मेरी जां ” “जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी” जैसे गीत हमारे कानों में रस घोलने लगते हैं और गीता दत्त का चेहरा हमारी आंखों के सामने आ जाता है ,

ऐसे शुरू हुआ संगीत का सफ़र

गीता घोष रॉय चौधरी; भारतीय शास्त्रीय और पार्श्व गायिका थीं। उन्हें हिंदी सिनेमा और बंगाली सिनेमा में एक पार्श्व गायिका के रूप में विशेष प्रसिद्धि मिली और उन्होंने गैर-फिल्मी शैली में कई आधुनिक बंगाली गाने भी गाए जो आज भी याद किए जाते हैं।23 नवंबर 1930 को गीता घोष रॉय चौधरी का जन्म इदिलपुर नामक गाँव में एक अमीर ज़मींदार परिवार में हुआ था, जो अब बांग्लादेश के शरियतपुर ज़िले में आता है लेकिन उस समय बंगाल प्रांत, ब्रिटिश भारत के फरीदपुर जिले में था पर उनका परिवार अपनी भूमि और संपत्तियों को पीछे छोड़ते हुए, 1940 के शुरुआती वर्षों में कलकत्ता और असम चला गया। 1942 में, उनके माता-पिता बॉम्बे आ गए तब के. हनुमान प्रसाद ने गीता को अपने संरक्षण में ले लिया, उन्हें प्रशिक्षित किया और गायन के लिए तैयार किया और फिर उन्हें फिल्मों में गाने का मौका भी दिया सबसे पहले 1946 में, उन्हें पौराणिक फिल्म भक्त प्रह्लाद में गाने का मौका मिला, जिसके लिए प्रसाद संगीत निर्देशक थे। उन्हें दो गानों के लिए दो पंक्तियाँ दी गईं, उस समय वो सोलह साल की थी।

इस बकाये से कैरियर पर बुरा असर पड़ा
1947 में, उन्होंने हनुमान प्रसाद की अन्य फिल्मों के लिए गाना गाया। “नैनों की प्याली से होंठों की मदिरा” और
“नेहा लगाके मुख मोड़ गया” फिल्म (रसीली) के लिए “आजा री निंदिया आजा”: स्थापित पार्श्व गायक पारुल घोष के साथ एक लोरी फिल्म (नई मां ) से , इसी तरह , फिल्म बाज़ी के गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान, गीता ,युवा निर्देशक, गुरु दत्त से मिलीं और जाने कौन सी अदा उन्हें भा गई इस आकर्षण की डोर से खिंच कर 26 मई 1953 को दोनों विवाह बंधन में बंध गए। उन्होंने सुधीर दासगुप्ता और अनिल चटर्जी जैसे उल्लेखनीय संगीत निर्देशकों की धुनों पर गाते हुए कई गैर-फिल्मी गाने भी रिकॉर्ड किये। 1957 में, गुरु दत्त ने गीता दत्त के साथ गायिका के रूप में फिल्म गौरी बनानी शुरू की, ये सिनेमास्कोप में भारत की पहली फिल्म होने वाली थी, लेकिन फिल्मांकन के कुछ दिनों में ही इस परियोजना को रोक दिया गया क्योंकि, कहा जाता है कि गुरुदत्त वहीदा रहमान के प्रति आकर्षित हो चुके थे इस बात से दुखी होकर गीता ज़माने को ही नहीं खुद को भी भूल जाने की कोशिश करने लगी जिसका उनके कैरियर पर बुरा असर पड़ा। 1958 में, एसडी बर्मन ने अपनी धुनों में मुख्य गायिका के रूप में उनको चुना पर निराश हुई गीता बर्मन के मानकों को पूरा करने में विफल रही।

इस घटना ने गीता को तोड़ दिया
1964 में, गुरु दत्त गुज़र गए और (उनकी मृत्यु को व्यापक रूप से दो पूर्व प्रयासों के बाद आत्महत्या माना गया)। इस घटना ने गीता को तोड़ दिया, और उन्हें गंभीर नर्वस ब्रेकडाउन का सामना करना पड़ा इसके बाद उन्होंने खुद को संभालने की कोशिश की और एक बंगाली फिल्म, बधू बरन (1967) में एक प्रमुख भूमिका निभाई फिर कनु रॉय के संगीत निर्देशन में अनुभव (1971) की फिल्म में दिलकश गीत गाए, आखरी बार वो 1972 में मिडनाइट के लिए गाईं थीं फिर 1972 को ही 20 जुलाई के दिन 41 साल की उम्र में उन्होंने ज़िंदगी से जद्दोजहद करते हुए आखरी सांस ली । उन्होंने हिंदी फिल्मों में क़रीब 1417 से ज़्यादा गाने गाए इसके अलावा, उन्होंने मराठी, गुजराती, बंगाली, मैथिली, भोजपुरी और पंजाबी समेत कई अन्य भारतीय भाषाओं में गाने गाए और नेपाली सदाबहार फ़िल्म मैतीघर में भी गाने गाए । भारतीय डाक द्वारा 2013 और 2016 में गीता दत्त पर आधारित डाक टिकट जारी किये गये थे ।

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