Ganesh Chaturthi 2025 – भगवान गणेश की पृथ्वी परिक्रमा : बल से बुद्धि की अनोखी जीत की कहानी

Ganesh Chaturthi 2025 – गणेश जी की पृथ्वी परिक्रमा : बल से बुद्धि की अनोखी जीत – भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता संकटमोचक और बुद्धि के देवता माना जाता है। वे किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में सबसे पहले पूजे जाते हैं, यही कारण है कि उन्हें “प्रथम पूज्य” कहा जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उन्हें यह विशेष दर्जा क्यों मिला ? इसके पीछे एक अत्यंत प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक कथा है, गणेश जी की पृथ्वी परिक्रमा की कहानी जो हमें सिखाती है कि सच्ची बुद्धिमानी क्या होती है और माता-पिता का स्थान हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन के गूढ़ संदेशों से भरी एक शिक्षाप्रद कहानी है जो आज के दौर में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थी।

कहानी का आधार
प्राचीन काल की बात है, कैलाश पर्वत पर भगवान शिव, माता पार्वती और उनके दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश  रहते थे, दोनों ही अत्यंत तेजस्वी, पराक्रमी और योग्य थे। एक दिन देवताओं में यह चर्चा उठी कि इन दोनों में से श्रेष्ठ कौन है ? तब शिव और पार्वती ने एक युक्ति निकाली और  एक प्रतियोगिता के रूप में अपने दोनों पुत्रों को बराबर-बराबर काम दिया। प्रतियोगिता में एक निर्धारित समय में जो सबसे पहले ब्रह्माण्ड की परिक्रमा पूरी कर वापस आएगा वहीं बुद्धिमान व सर्व श्रेष्ठ कहलाएगा। कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर चढ़कर निकल पड़े। वह तेज़ गति से तीनों लोकों की यात्रा पर निकल गए। उसी तरह गणेश जी अपने मूषक वाहन पर जानें की सोचने लगे लेकिन गए नहीं उन्होंने कुछ ऐसा किया कि वो न सिर्फ बुद्धि मान कहलाए बल्कि सर्वश्रेष्ठ मान्यता के साथ प्रथम पूज्य हुए। लेकिन सर्वश्रेष्ठ और प्रथम पूज्य बनने के लिए आखिर उन्होंने किया क्या ? आइए जानते हैं।

गणेश जी की बुद्धिमत्ता का परिचय
गणेश जी का वाहन था एक छोटा सा चूहा, जो मोर की तुलना में बहुत धीमा था। ऐसे में गणेश जी जानते थे कि अगर वे भी कार्तिकेय की तरह दौड़ेंगे, तो हार निश्चित है। उन्होंने सोचने का रास्ता चुना। कुछ देर ध्यान और विचार के बाद, गणेश जी ने अपने माता-पिता,शिव और पार्वती के चारों ओर तीन परिक्रमा लगाई और फिर हाथ जोड़कर खड़े हो गए। ऐसा करते हुए सभी ने आश्चर्य से यह देखा, तो उनसे कारण पूछा, भगवान श्री गणेश जी ने भी बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर उपस्थित जनों को उत्तर दिया कि “मेरे लिए मेरे माता-पिता ही तीनों लोकों के समान हैं। उनकी परिक्रमा करना ही मेरे लिए समूचे ब्रह्मांड की परिक्रमा है।” यह सुनकर देवता, ऋषि और स्वयं शिव-पार्वती भी भाव-विभोर हो गए। उन्होंने गणेश जी की बुद्धिमानी और भक्ति को देखकर उन्हें विजेता घोषित किया और “प्रथम पूज्य” का दर्जा दिया। तब से आज तक किसी भी शुभ कार्य, अनुष्ठान में सबसे पहले भगवान गणेश की सर्वप्रथम, सर्वोपरि पूजन किया जाता है

गूढ़ संदेश और शिक्षा – बुद्धि बड़ा या बल
यह कहानी दर्शाती है कि केवल तेज़ी या ताकत से सफलता नहीं मिलती , किसी भी सफल प्रयास के लिए धैर्य, सकारात्मक सोच और समझदारी कहीं अधिक प्रभावी व सफलता का कारक होती है।

माता-पिता के महत्व को अद्भुत उदाहरण
गणेश जी के अनुसार, माता-पिता तीनों लोकों के समान हैं ,यह भारतीय संस्कृति का मूल, मूल्य है। यह कहानी युवाओं को यह सिखाती है कि जीवन की हर दौड़ में माता-पिता के प्रति सम्मान सबसे बड़ी ताकत देता है और सफलता की कुंजी तो है ही,पूंजी भी है।

विनम्रता और श्रद्धा
गणेश जी तेजस्वी और पराक्रमी साहसी तो थे ही,वो प्रखर बुद्धि मान भी थे, वो जानते थे कि इस कार्य में भाई
कार्तिक की जीत होगी लेकिन वो पीछे नहीं हटे और न की अपनी बुद्धि विवेक का अहंकार दिखाया, बल्कि श्रद्धा और विनम्रता के साथ अपने माता-पिता को सर्वोच्च मानते हुए प्रतियोगिता में शामिल हुए और सफलता भी पाई ।

आधुनिक सन्दर्भ में प्रासंगिकता
आज की तेज़ रफ़्तार दुनिया में जहां हर कोई आगे निकलने की होड़ में है, वहां यह कथा एक ठहराव की तरह है। यह हमें सोचने पर मजबूर करती है –
कि क्या हम दौड़ में भागते हुए अपने मूल मूल्यों को भूलते जा रहे हैं ?
क्या – हम सफलता को केवल बाहरी उपलब्धियों से मापते हैं, या अंतरात्मा और संबंधों से भी ?
गणेश जी की कथा आधुनिक जीवन को संतुलन, सम्मान, और स्मार्ट सोच का मंत्र देती है।

इस कहानी की धार्मिक मान्यताओं में स्थान
गणेश जी की यह परिक्रमा कथा केवल एक बार की घटना नहीं है, बल्कि यह उनकी प्रथम पूज्यता का आधार कथा कहलाई और हर शुभ कार्य में “श्री गणेशाय नमः” कहकर शुरुआत करना इस कथा का ही पर्याय है।
यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि धर्म केवल कर्मकांड नहीं, जीवन के व्यवहार में सद्गुण लाने की प्रेरणा भी है।
साथ ही बुद्धि, श्रद्धा और प्रेम ये तीनों जब मिलते हैं, तब ही सच्चा धर्म जन्म लेता है।

विशेष – गणेश जी की पृथ्वी परिक्रमा की कहानी हमें बताती है कि जीवन की हर प्रतियोगिता में जरूरी नहीं कि जो सबसे तेज़ भागे, वही जीते। कभी-कभी ठहरकर सोचने वाले, रिश्तों को समझने वाले और मूल्यों को निभाने वाले लोग ही सच्चे विजेता होते हैं। गणेश जी के इस कार्य ने साबित किया कि बुद्धि, भक्ति और भावनाएं मिलकर ही किसी को महान बनाती हैं।

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