Site icon SHABD SANCHI

Ganesh Chaturthi – 2025 : गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी , बाप्कोपा को लगाएं तिथि अनुसार विशेष भोग

Ganesh Chaturthi – 2025 : गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी , बाप्कोपा को लगाएं तिथि अनुसार विशेष भोग – गणेश चतुर्थी हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान श्री गणेश के जन्मोत्सव के रूप में सम्पूर्ण भारत में अत्यंत श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है। इस दिन से शुरू होकर दस दिवसीय यह पर्व अनंत चतुर्दशी तक चलता है। भक्त अपने घरों, मंदिरों और पंडालों में भगवान गणपति की स्थापना करते हैं और भक्ति भाव से पूजा-अर्चना करते हैं। गणपति बप्पा मोरया के जयकारों के बीच प्रतिदिन भोग लगाना एक अत्यंत पवित्र और भावनात्मक परंपरा है। यह केवल एक धार्मिक कर्तव्य ही नहीं, बल्कि श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है। भगवान श्री गणेश को विभिन्न प्रकार के भोग अत्यंत प्रिय हैं, जैसे कि मोदक, लड्डू, दूर्वा, गुड़, नारियल आदि। परंतु क्या आप जानते हैं कि गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक प्रतिदिन अलग-अलग भोग अर्पित करने की परंपरा है ? इस लेख में हम आपको तिथि अनुसार प्रतिदिन लगने वाले भोग की संपूर्ण सूची और उनके महत्व के बारे में बताएंगे, जिससे आप इस पावन उत्सव को और भी आध्यात्मिक, भावनात्मक और संकल्पयुक्त बना सकें।

गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक – प्रतिदिन का विशेष भोग – तिथि अनुसार पूर्ण सूची

पहला दिन – गणेश चतुर्थी (शुक्ल पक्ष चतुर्थी) – मोदक – गुड़ और नारियल से बने स्टीम्ड या तले हुए, यह भगवान गणेश का सबसे प्रिय भोग है। मोदक को बुद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

दूसरा दिन – ऋषि पंचमी – तिल के लड्डू और मिश्री , तिल शुद्धता और रक्षा का प्रतीक है। यह भोग ग्रहण कर श्री गणेश शुद्ध विचारों का आशीर्वाद देते हैं।

तीसरा दिन – षष्ठी – दूर्वा घास के साथ गुड़-चने का भोग लगाएं, दूर्वा भगवान गणेश को अति प्रिय है। गुड़-चना बल और ऊर्जा का प्रतीक है।

चौथा दिन – सप्तमी इस दिन नारियल और गुड़ से बनी बर्फी का भोग लगाएं। नारियल में शुद्धता और संकल्प शक्ति निहित है। यह भोग शुभता और विजय का प्रतीक है।

पांचवां दिन – अष्टमी – पांचवें दिन केले के पत्ते पर परोसी गई खीर और फलों का भगवान को भोग लगाएं, क्योंकि दूध और चावल की खीर समर्पण और प्रसन्नता का प्रतीक है। फल श्रद्धा का भाव दर्शाते हैं।

छठवां दिन – नवमी – छठवें दिन साबूदाना खिचड़ी और मूंगफली महत्व है इसे प्रसाद के रूप में दोनों में ही रूप में भक्त भोग अर्पित करते हैं। यह भोग संयम और श्रद्धा को दर्शाता है।

सातवां दिन – दशमी – बेसन के लड्डू और मिश्री पान का भोग इस दिन लगाना चाहिए जो आपसी मिठास और आनंद का प्रतीक तो है ही लेकिन बड़ी बात यह कि गणेशजी को ऊर्जा और आह्लाद देने वाला भोग अर्पित किया जाता है।

आठवां दिन – एकादशी – नारियल पानी, फल, और ड्राई फ्रूट का भोग अर्पित करें इस दिन होने से हल्के और सात्विक भोग चढ़ाए जाते हैं। यह तप और संयम के भाव को प्रकट करता है।

नवमां दिन – द्वादशी – चावल की खीर और ताजे फूलों का भोग चावल की खीर शांति और पूर्णता का प्रतीक है। फूलों के साथ यह भोग भक्त का समर्पण दिखाता है।

दसवां दिन – त्रयोदशी – इस दिन मालपुआ और पंचामृत भोग लगाएं। क्योंकि मीठा स्वाद भगवान को प्रसन्न करता है, और पंचामृत पवित्रता का प्रतीक है।

ग्यारहवां दिन – चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) – चतुर्दशी को मोदक, नारियल, पंचमेवा सहित फल-फूल और छत्तीस प्रकार के भोग और अनंत सूत्र जिसे अनंता भी कहा जाता है,इस दिन विशेष रूप से व्रत कर अनंत सूत्र बांधा जाता है। पूर्ण विधि से गणेश विसर्जन किया जाता है। मोदक और पंचमेवा अर्पण कर भगवान से कृपा की कामना के साथ साथ अगले वर्ष पुनः आने की प्रार्थना भी की जाती है।

महत्वपूर्ण विचार जो भोग अर्पण में ध्यान देने योग्य हैं

सात्विकता बनाए रखें – भोग पूर्णतः शुद्ध, ताजे और सात्विक पदार्थों से तैयार करें।
भाव प्रमुख है – भोग में प्रेम, भक्ति और श्रद्धा का होना सबसे आवश्यक है।
गणेशजी की प्रिय वस्तुएं – दूर्वा, शुद्ध घी, नारियल, मोदक, लाल फूल और सिंदूर हर दिन प्रयोग करें।
भोग के साथ मंत्र जाप करें – भोग अर्पण करते समय “ॐ गं गणपतये नमः” या “श्री गणेशाय नमः” मंत्रों का जाप करें।
परिवार सहित पूजा करें – इससे सामूहिक ऊर्जा और घर में सकारात्मकता बढ़ती है।

विशेष – भोग ,भक्ति और भक्त के मन के भावों के समर्पण का माध्यम और मानवीय व्यवहार में धर्म का संतुलन,गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक प्रतिदिन विशेष भोग अर्पित करने की यह परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि आत्मा और ईश्वर के बीच प्रेम का संवाद है। प्रत्येक दिन का भोग एक विशेष भावनात्मक और आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करता है। यह क्रम न केवल हमारी भक्ति को संगठित करता है, बल्कि हमारी दिनचर्या में शांति, संयम और सकारात्मकता भी भरता है। गणपति,बाप्पा को उनका प्रिय भोग समर्पित कर हम उनके आशीर्वाद से अपने जीवन के विघ्नों को दूर कर सकते हैं। यह उत्सव हमें यह सिखाता है कि जीवन में आनंद, अनुशासन और श्रद्धा का संतुलन आवश्यक है।

Exit mobile version