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Ganesh Chaturthi 2025 : गणेश चतुर्थी क्यों वर्जित हैं चंद्र दर्शन ?

Ganesh Chaturthi 2025 : गणेश चतुर्थी क्यों वर्जित हैं चंद्र दर्शन – आस्था, उल्लास और अनुशासन का पर्व में कैसे एक छोटी सी घटना ने रच दी धार्मिक परंपरा, जानिए गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन का रहस्य – गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में जाना जाता है और देशभर में विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश में बड़े पैमाने पर उत्सवों, पूजन और झांकियों के साथ मनाया जाता है। लेकिन इस पूरे उल्लास के बीच एक खास परंपरा है –इस दिन रात्रि में चंद्रमा देखना अशुभ माना जाता है। यह मान्यता केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना से भी जुड़ी हुई है।

क्या है चंद्र दर्शन की मनाही के पीछे की पौराणिक कथा ?
गणेश जी का अपमान और चंद्रमा को श्राप – हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान श्री गणेश अपने वाहन मूषक (चूहा) पर सवार होकर भाद्जारपद की चतुर्थी की रात्रि में बेहद खूबसूरत चंद्रमा की चांदनी देख अद्भुत वातावरण का आनंद लेंने रात्रि भ्रमण पर निकले थे। छोटा सा मूषक और भारी शरीर के कारण गणेश जी का संतुलन बिगड़ा और वो जमीन पर गिर पड़े , इस दृश्य को देखकर चंद्रदेव हंस पड़े। इस तरह अपना उपहास देखकर गणेश जी को क्रोध आ गया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि आप भले ही बेहद खूबसूरत हैं लेकिन “आज के दिन जो भी तुम्हारा दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा और समाज में अपमानित होगा।”…और इस तरह तब से सनातन धर्म में भाद्रपद की चतुर्थी को चंद्रमा देखने की मनाही की परंपरा चली आ रही है।

भगवान कृष्ण पर मिथ्या आरोप का प्रसंग
श्यामंतक रत्न की चोरी का झूठा इल्ज़ाम – पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अनजाने में गणेश चतुर्थी की रात चंद्रमा का दर्शन कर लिया था। इसके बाद उन पर ‘श्यामंतक रत्न’ चोरी का झूठा आरोप लग गया। इस अपमान से व्यथित होकर वे ऋषि नारद के पास गए, जिन्होंने उन्हें श्राप की जानकारी दी और उससे मुक्ति का उपाय बताया।

उपाय के रूप में व्रत और मंत्र जाप – ऋषि नारद के मार्गदर्शन से भगवान कृष्ण ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया और विशिष्ट मंत्रों का जाप किया, जिसके बाद वे मिथ्या दोष से मुक्त हुए।

अगर भूल से हो जाए चंद्र दर्शन, तो ये उपाय करें
भूलवश गणेश चतुर्थी की रात चंद्रमा को देख लें, तो इन उपायों को अपनाएं –
गणेश चतुर्थी का व्रत करें – स्थानीय पंडित-पुरोहितों के अनुसार एक वर्ष तक हर चतुर्थी का व्रत करें और अगले भाद्र पद की चतुर्थी को व्रत करके,गणेश पूजन करें और फिर उद्यापन पूजन करना शुभ माना गया है।
गणेश जी की विधिवत पूजा करें – गणपति मंदिर में पहुंच कर पूजन- असहाय सेवा और दान-पुण्य विशेष फलदाई होता है।
मंत्र का जाप करें – ओम गं-गणपते नमः की 108 मनका की एक माला और इस मंत्र जाप से हर राशि नक्षत्र के लोगों को जपने से खुद के ऊपर और परिवार पर आई हर विपदा पर जाती है – मंत्र इस प्रकार है
सिंहः प्रसेनमवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मरोदिस्तव ह्येषा स्यामंतकः॥
विशेष यह कि ये मंत्र भाद्रपद की चतुर्थी के दौरान चंद्रदर्शन के दोष से मुक्ति के लिए शास्त्रों में वर्णित है।

ग्राम्य परंपराएं – जब बुज़ुर्गों की चेतावनी बनी संस्कृति – ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी गणेश चतुर्थी की रात बुज़ुर्ग लोग सावधानी बरतते हैं। जैसे ही सूरज डूबता है, वे घरों की छावनियों में बैठ जाते हैं और राहगीरों को पत्थर फेंक कर या लट्ठ बजाकर चेताते हैं – “बाहर तो आ गए हो, लेकिन आसमान की ओर मत देखना। ”यह सरल और देसी तरीका सामाजिक सावधानी के साथ-साथ परंपरा को जीवित रखने का सुंदर उदाहरण है।

धार्मिकता विज्ञान और परंपरा के इस मेल में,क्या है गूढ़ संदेश ?
कुछ विद्वानों का मानना है कि प्राचीन समय में ऐसी मान्यताओं का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और सामाजिक चेतना से भी जुड़ा था। रात्रिकालीन भ्रमण से बचाव, चंद्रमा की रोशनी से होने वाली मनोवैज्ञानिक समस्याओं से सुरक्षा और अनुशासित जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिए ऐसी परंपराएं गढ़ी गई होंगी।

विशेष – श्रद्धा और सावधानी का संतुलन
गणेश चतुर्थी केवल भगवान गणेश की पूजा का पर्व नहीं, बल्कि जीवन में संयम, विवेक और चेतना लाने का अवसर भी है। चंद्रमा न देखने की परंपरा हमें यह सिखाती है कि परंपराएं केवल अंधश्रद्धा नहीं, बल्कि समाज और व्यक्ति की भलाई के लिए बनाए गए नियम भी हो सकती हैं। इसलिए इस गणेश चतुर्थी 2025, पूजा-पाठ के साथ इस सांस्कृतिक चेतना को भी समझें और दूसरों को भी इसके पीछे की कथा और कारण बताएं।

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