Ganesh Anant Chaturdashi 2025 – गणेश उत्सव की निर्वाण सामग्री की रि-साइक्लिंग : पर्यावरण संरक्षण हेतु सार्थक कदम

Ganesh Anant Chaturdashi 2025 – गणेश उत्सव की निर्वाण सामग्री की रि-साइक्लिंग,पर्यावरण संरक्षण हेतु सार्थक कदम – गणेश चतुर्थी का दस दिवसीय पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इन दिनों भक्तजन भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन फूल, पत्ते, फल, मिठाई और तरह-तरह की पूजा सामग्री अर्पित करते हैं। लेकिन जब उत्सव समाप्त होता है तो सबसे बड़ी समस्या होती है इन सामग्रियों का निपटान (Disposal)। परंपरा के नाम पर बहुत से लोग इन्हें नदियों और तालाबों में प्रवाहित कर देते हैं, जिससे जल प्रदूषण और पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ता है। आज आवश्यकता है कि हम धार्मिक आस्था को बनाए रखते हुए भी पर्यावरण-हितैषी (Eco-friendly) तरीके अपनाएँ, जिससे न केवल पूजा का सम्मान बना रहे बल्कि धरती भी सुरक्षित रहे।

गणेश चतुर्थी और पूजन सामग्री का महत्व – दस दिनों तक चढ़ाई जाने वाली सामग्री – फूल, दूर्वा, पत्ते, फल, मिठाई, नारियल, हल्दी, सिंदूर, धूप, अगरबत्ती आदि भगवन को चढ़ाई जाती है,धार्मिक दृष्टिकोण से इनका महत्व बहुत होता है इसलिए ये सामग्री चढ़ाई जाती है । परंपरागत रूप से विसर्जन की प्रक्रिया और उसका आध्यात्मिक अर्थ बड़ा अर्थ है लेकिन आज के पर्यावरण को संतुलित करने ये आवश्यक है की हम निर्वाण को रिसाइकिल करें, क्योकि पूजा किहुट सी सामग्री से पर्यावरण प्रदूषण का खतरा होता है जैसे पॉलीथिन ,रेपर , डिस्पोजल जिसे पानी में न विसर्जित कर अपने घर के गार्डन में दाल कर कम्पोस्ट खाद बना सकते है। इससे नदियों/तालाबों में सामग्रियों के फेंके जाने से पानी का दूषित होना भी बच जाएगा,क्योंकि पॉलिथीन, थर्माकोल, पेंट वाली प्रतिमाओं से निकलने वाले हानिकारक रसायन पानी में घुलते है जिससे मछलियों और जलीय जीवों पर बुरा असर पड़ता है।

पूजन सामग्री का पर्यावरण-हितैषी निपटान – कंपोस्ट बनाना-फूल, पत्ते और फल-सब्जियों के अवशेषों को कंपोस्ट पिट या डस्टबिन में डालना।प्रक्रिया सूखी पत्तियां + गीला कचरा मिलाकर ढकना। कुछ ही हफ्तों में खाद बन जाती है जो पौधों और बगीचे के लिए उपयोगी है। मिट्टी में विसर्जन जैविक सामग्री (फूल-पत्ते) को गमले/बगीचे की मिट्टी में दबाना,इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और कोई प्रदूषण नहीं होता।

घर पर Eco-friendly मूर्ति का विसर्जन – शुद्ध मिट्टी, गोबर या शंख-सीप आधारित रंगों से बनी प्रतिमा का प्रयोग करें,बड़े टब या बाल्टी में विसर्जन करना और पानी को पौधों में डालना सही व पर्यावरण अनुकूल होगा। पौधों की बढ़वार में यह पानी उपयोगी साबित होता है। पुनर्चक्रण (Recycling) समुदाय स्तर पर बने कलेक्शन प्वाइंट पर पूजा सामग्री जमा करना। सूखे और गीले कचरे को अलग करके भेजना।कई शहरों में मंदिर समितियां फूलों से अगरबत्ती और इत्र बनाने का कार्य भी करती हैं।

समाज और सरकार की पहलें -अलग-अलग राज्यों/शहरों में नगर निगम द्वारा बनाए गए कलेक्शन सेंटर हैं इनका अनुसरण करें। NGO और पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा फूलों से धूप-अगरबत्ती, जैविक रंग और खाद बनाने की पहल को परम्परागत स्वीकारें । स्कूल-कॉलेज स्तर में इस दौरान पर्यावरण संरक्षण के जागरूकता अभियान चलवाएं।

घर पर छोटे-छोटे प्रयास

  • पॉलिथीन की बजाय कपड़े/पत्ते की थाली का उपयोग।
  • पूजा में ऐसी सामग्री का प्रयोग, जो पूरी तरह प्राकृतिक हो।
  • बच्चों को पर्यावरण के महत्व से जोड़ना।
  • पूजा सामग्री का अलग-अलग डिब्बों में संग्रह और क्रमबद्ध निपटान।

आध्यात्मिक और पर्यावरणीय संतुलन

  • शास्त्रों में भी प्रकृति की रक्षा को पुण्य कार्य माना गया है।
  • “माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या” – पृथ्वी हमारी माँ है, इसकी रक्षा हमारा कर्तव्य है।
  • आस्था और पर्यावरण संरक्षण साथ-साथ चल सकते हैं।

विशेष – Conclusion – गणेश चतुर्थी का पर्व केवल उत्सव मनाने तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह हमें जिम्मेदार नागरिक और प्रकृति-प्रेमी भक्त बनने की सीख भी देता है। पूजा सामग्री का सही निपटान और रीसाइक्लिंग करके हम अपने उत्सव को और अधिक पवित्र बना सकते हैं। जब हम भगवान गणेश से बुद्धि, विवेक और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं, तो उनका आशीर्वाद तभी सार्थक होगा जब हम धरती को भी स्वच्छ और सुरक्षित रखने का संकल्प लें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *