Gandhi Jayanti, Mahatma Gandhi: महात्मा गांधी को देश और दुनिया के इतिहास के पन्नों पर लेखकों ने अपनी लेखनी के द्वारा लिखा है. उनके व्यक्तित्व, दर्शन, चरित्र एवं दूरदर्शी सोच के बारे में कई उपन्यासों और इतिहासकारों के द्वारा सुना जाता है. लेकिन महिलाओं की जिंदगी गांधी जी ने कैसे बदली इस पर ज्यादा बात नहीं होती. कैसे महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा देने पर उन्होंने जोर दिया. कैसे देश की आधी आबादी कही जाने वाली महिलाओं को उनके हक से वाकिफ कराया इस पर ज्यादा चर्चा नहीं होती. आज हम आपको गांधी जी की उन शेरनी सेनानियों के बारे में बताएंगे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में न केवल बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. बल्कि अपनी दहाड़ से अंग्रेजों और उनकी हुकुमत की जड़े तक हिला दीं. साथ ही गांधी जी के द्वारा महिलाओं को किस तरह से प्रोत्साहित किया गया यह भी बताएंगे. मशहूर लेखक और संपादक अरविंद मोहन ने गांधी के चंपारण सत्याग्रह पर लिखी पुस्तकों में इन बातों का जिक्र किया है.
महात्मा गांधी ने हमेशा से ही महिलाओं और लड़कियों को समाज में जगह देने पर जोर दिया. आजादी के समय से ही उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं की फेहरिस्त में महिलाओं की भी भागीदारी बनाई थी. गांधी जी ने महिलाओं और लड़कियों से खूब चरखा भी चलवाया. जब विदेश से आई सेनानी मीरा बहन का मन दूसरे कामों की तुलना में गाय पालन में ज्यादा दिखा तो उन्हें वही जिम्मा सौंप दिया. मुंबई के बड़े उद्योगपति परिवार की मिठूबेन पेटिट को आदिवासियों के बीच काम करना पसंद था तो उन्हे वही जिम्मेदारी सौंपी. चंपारण सत्याग्रह में दहाड़ने वाली अवंतिकाबाई गोखले को हर मुश्किल मोर्चे पर लगाया. ऐसे ही तमाम महिला सेनानियों की फौज को गांधी जी ने खुद प्रोत्साहित किया था.
गांधी जी ने सेनानियों को बांटे तूफानी और पगली जैसे कई नाम
गांधी जी के आंदोलन से तैयार महिलाओं में एक से बढ़कर एक महिलावादी सेनानी हुई. कमलादेवी चटोपाध्याय से बड़ा नारीवादी शायद ही कोई हुआ हो. सारी उम्र सिर से पल्लू न हटाने वाली महादेवी वर्मा जैसी लेखिका शायद ही हमारी हिंदी पट्टी में मिले. गांधी जी द्वारा दिए गए काम के लिए जी जान से जुटने वाली मालती देवी ने अपने सीएम पति के सामने प्रदर्शन तक किया. लेकिन क्या आपको पता है ऐसी ही कितनी ही महिलाओं और लड़कियों को गांधी जी ने क्या नाम दे रखा था. ऐसी सेनानियों में किसी को गांधी तूफानी कहते थे तो किसी को इडियट. किसी महिला सेनानी को शेरनी मानते थे तो किसी को पगली कहते थे. गांधी जी की इन खूंखार शेरनियों ने वाकई अंग्रेजो और उनकी हुकूमत को हिलाकर रख दिया था.
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जब महिला सेनानियों ने खुद हटाए पर्दे
बात 1922 की है तब कांग्रेस के अधिवेशन में गिनी चुनी महिलाएं ही आती थी. बैठने का इंतजाम अलग से रहता था उन दिनों महिलाओं और पुरुषों के बीच पर्दा रहता था. अधिवेशन के पहले दिन तो यह पर्दा बार-बार इधर से उधर झूलता रहा और दूसरे दिन महिलाओं ने उसे खुद नोंचकर फेंक दिया कहा कि हमें अब इसकी जरूरत नहीं है. इस घटना के चार से पांच साल बाद आंदोलन में कमाल की तेजी देखी गई. इसके बाद के वर्षों में चंपारण सत्याग्रह, अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन और खेड़ा आंदोलन जैसी कई घटनाओं में महिलाओं का योगदान बढ़ा.
सीएम पति के सामने पत्नी का प्रदर्शन
गांधीवादी मालती देवी का काम और भी तूफानी था. साल 1950 में जब उनके पति उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने तब भी वह आदिवासियों के जुलूस का नेतृत्व करते हुए उनके यहां धावा बोलने पहुंची. लाठी चार्ज और आंसू गैस के बाद गोली चलाने को तैयार पुलिस वाले मुख्यमंत्री की पत्नी को देखकर सकपका गए. मालती देवी को लाखों आदिवासियों के अलावा मशहूर नक्सली नेता नाग भूषण पटनायक भी उन्हें मां मानते थे. मालती देवी हमेशा से सूदखोर महाजन को गलत मानती थीं.
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