Gajendra Moksh Stotram Story In Hindi: गजेन्द्र मोक्ष स्तुति का वर्णन श्रीमदभगवद गीता के तीसरे अध्याय में हुआ है, इसमें कुल 33 श्लोक हैं। राजा परीक्षित के आग्रह पर शुकदेव जी ने उन्हें यह कथा सुनाई थी। जिसके अनुसार हाथियों के राजा गजेन्द्र को जब ग्राह नाम के जलचर ने सरोवर में जकड़ लिया था, और लंबे संघर्ष के बाद भी गजेन्द्र मुक्त ना हुआ, तब उसने जगतपालक भगवान विष्णु की स्तुति की थी, जिसके बाद भगवान ने उसे ग्राह के चंगुल से मुक्त करवाया था। कहते हैं गजेन्द्र मोक्ष का पाठ करने के बाद मनुष्य सभी तरह की विपत्तियों के चंगुल से मुक्त हो जाता है।
गजेन्द्र मोक्ष की कहानी | Gajendra Moksh Stotram
कहते हैं अत्यंत प्राचीनकाल में, दक्षिण के पाण्ड्य देश में इंद्रद्युम्न नाम का एक राजा था। जो भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था, वह मोक्ष के लिए भगवन की आराधना किया करता था। एक बार महर्षि अगस्त्य उसके यहाँ पधारे, लेकिन प्रभु सेवा में तल्लीन राजा ने देखते हुए महर्षि अगस्त्य की उपेक्षा की, जिससे कारण क्रोधित होकर महर्षि अगस्त्य ने उसे हाथी के समान जड़बुद्धि वाला बताते हुए, उसे अगले जन्म में हाथी होने का श्राप दे दिया। यही हाथी गजेन्द्र नाम से विख्यात हुआ।
हाथियों के राजा थे गजेंद्र | Gajendra Moksh Stotram
पुराणों के अनुसार त्रिकूट पर्वत की तराई में, एक बहुत ही सघन और खूबसूरत वन था। यह स्थल सदैव फल-फूल और हरियाली से भरा रहता था। यहाँ पर वरुण देव का ऋतुमान नाम का एक क्रीड़ा स्थल, अर्थात सरोवर था। यह सरोवर सदैव कमल पुष्पों से आच्छादित रहता था। इसी के निकट के सघन वनों में गजेन्द्र नाम का एक अत्यंत बलशाली हाथियों का राजा अपने कुटुंब के साथ निवास करता था।
गजेन्द्र को ग्राह ने जकड़ा | Gajendra Moksh Stotram
एक बार की बात है राजा गजेंद्र अपने समूह के साथ घूमने निकले, इसी दौरान उन्हें जोर की प्यास लगी। मंद-मंद चलने वाली पवन के साथ, कमल पुष्पों की सुगंध आ रही थी। प्यास की अधिकता से व्याकुल होकर गजेंद्र और उनका समूह उसी सुगंध की दिशा की तरफ बढ़ते हुए, ऋतुमान सरोवर तक जा पहुंचे। वहाँ गजेन्द्र ने शीतल और मीठा जल पिया, तथा थकान उतारने के लिए जलक्रीड़ा करने लगे। तभी उस सरोवर में रहने वाले ग्राह अर्थात मगरमच्छ ने गजेन्द्र का एक पैर अपने मजबूत जबड़े में दबोच लिया।
गजेन्द्र और ग्राह में संघर्ष | Gajendra Moksh Stotram
गजेन्द्र खुद बहुत बलशाली थे, वह मगरमच्छ के चंगुल से छुड़ाने के लिए प्रयास करने लगे। वह कई बार तालाब के किनारे तक आ जाते थे, लेकिन जल का स्वामी मगरमच्छ जल के अंदर अत्यंत ताकतवर था, वह उन्हें बार-बार जल के अंदर खींच ले जाता। हाथी और मगरमच्छ में लगातार 3 दिनों तक संघर्ष होता रहा। अपने स्वामी गजेन्द्र को, कष्ट में देखकर हाथियों का समूह इधर-उधर सरोवर के अंदर-बाहर भागने लगा, और बचाने का प्रयास लगा, लेकिन सब कुछ विफल रहा। अब गजेंद्र बहुत थक गए थे, जिसके कारण वह शिथिल पड़ रहे थे। लेकिन जलचर के स्वामी मगरमच्छ की शक्ति जल में और बढ़ जाती, और वह दुगने वेग से गजेन्द्र को जल के अंदर खींचता था। गज और ग्राह की लड़ाई में सरोवर का स्वच्छ जल गदला हो गया।
गजेन्द्र मुक्ति के लिए करने लगे परमेश्वर की स्तुति | Gajendra Moksh Stotram
जब गजेन्द्र खुद को ग्राह के चंगुल से मुक्त करने में असमर्थ रहे, तब उन्हें अपने पूर्व जन्म के भागवत भक्ति के प्रताप से, स्तुति करने का ज्ञान आ गया। और वह जोर-जोर से पुकार कार भगवान की स्तुति करने लगे। अगर हम गजेन्द्र मोक्ष को पढ़ें, तो ध्यान देंगे इसके पूरे स्त्रोत में किसी भी देवी-देवता का नाम नहीं है, निराकार परम ब्रम्ह परमेश्वर की महिमा का ही गुणगान है।
भगवान विष्णु आए गजेन्द्र की मदद को | Gajendra Moksh Stotram
लेकिन उसकी स्तुति को सुनकर कोई भी देवता उसकी मदद को नहीं आ रहे थे, क्योंकि वह किसी का नाम नहीं ले रहा था। लेकिन जगत को धारण करने वाले भगवान विष्णु, जो समस्त चराचर जगत की आत्मा हैं। वह अपने वाहन गरुड़ में सवार होकर गजेन्द्र की सहायता के लिए चले। जब गजेन्द्र ने देखा की शंख, चक्र, गदा और पदम धारण कर भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर आ रहे हैं, तब उसने सरोवर के कमल पुष्पों को अपने सूंड में ऊपर की तरफ करके उसने कहा- “कृच्छान्नारायण्खिलगुरो भगवान नम्स्ते” अर्थात चराचर जगत के स्वामी, सर्वपूज्य भगवान विष्णु मैं आपको नमस्कार करता हूँ, यह कहते हुए उसने कमल के फूल भगवान पर उछाल दिए।
भगवान विष्णु ने गजेन्द्र को मोक्ष दिया | Gajendra Moksh Stotram
भगवान विष्णु गरुड़ के पीठ से उतरे और मगरमच्छ समेत गजराज को जल से बाहर ले आए, और चक्र से ग्राह का मुहँ फाड़कर गजेन्द्र को मुक्त कर दिया। वास्तविकता में वह ग्राह हूहू नाम का गंधर्व था, जो महर्षि देवल के शाप वश मगरमच्छ बना था, भगवान ने उसका उद्धार कर दिया। जबकि गजेन्द्र की स्तुति से प्रसन्न भगवान विष्णु ने उसे सच्चा ज्ञान देकर मुक्त किया, और उसे अपना पार्षद बनाकर अपने साथ बैकुंठ ले गए।