Rio de Janeiro Statue Of Liberty : G20 के 19 वें शिखर सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए नाइजीरिया से विदा लेने के बाद ब्राजील पहुंचे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का उत्साह के साथ स्वागत किया गया। ब्राज़ील के रिओ द जेनेरिओ में 2 दिन के यात्रा में वे 18 और 19 नवंबर को 19 वें G20 देशो के नेताओं के साथ भाग लेंगे।
नरेंद्र मोदी 3 देशों की अपनी इस यात्रा के दूसरे चरण में आ चुके हैं जहा वो ब्राज़ील के रिओ द जेनेरिओ में पहुंचे हैं। ब्राजील अपने फूटबाल और प्रकृतिक सौंदर्य के अलावा एक बेहद सूंदर प्रतिमा के लिए जाना जाता है और वो है रिओ दि जेनेरिओ की ऊंची पहड़ियों में बनी ईसा मसीह की विशालकाय प्रतिमा। इस प्रतिमा में प्रभु ईशु ने आपने दोनों भुजाओं को फैलाया हुआ है जो शांती शांति का संदेश दे रहें हैं। इस विशालकाय प्रतिमा का नाम है “क्राइस्ट द रिडीमर” जिसकी सिर्फ एक झलक पाने के लिए दुनिया भर के कोने -कोने से लोग मीलों का रास्ता तय करके आते हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा आर्ट डेको :
क्राइस्ट द रिडीमर ब्राजील के रिओ द जेनेरिओ में स्थापित एक स्टेचू है जिसे दुनिया का सबसे बड़ा आर्ट डेको स्टेचू माना जाता है। यह प्रतिमा 130 फीट लंबी और 98 फीट चौड़ी है, दोनों तरफ फैलाए हुए भुजाओं की लंबाई 92 फ़ीट है ,इसका वजन 635 मैट्रिक टन है। इसके अलावा मूर्ति के शिर्ष पर छोटी -छोटी किलों को लगाया गया है। ये प्रतिमा तेजुका फेरस नेशनल पार्क कोरकवडो पर्वत की चोटी पर स्तिथ है जहा से पूरा शहर दिखता है। यह दुनिया में सबसे बड़ी मूर्तियों में से एक है। प्रभु ईशू की ये प्रतिमा ब्राजील की एक पहचान बन चुकी है। साल 1922 और 1931 के बीच इस प्रतिमा को बनाया गया था। इस स्मारक के बनने के इतिहास को अगर देखे तो कोरकवडो के चोटी पर एक विशाल प्रतिमा को खड़ा करने का विचार 1850 के दसक के मध्य में सुझाया गया था ,जब कैथोलिक पादरी पेड्रो मारिया बोस ने राजकुमारी इजाबेल से एक विशाल स्मारक को बनाने के लिए फन्ड देने का आग्रह किया था।
राजकुमारी इजाबेल ने इस आग्रह पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और ब्राजील को इंडिपेंडेंस मिलने के बाद साल 1889 में उसे खारिज कर दिया गया। जिसके बाद ब्राजील के कानून में राज्य और चर्च अलग अलग रखने की अनिवार्यता दी गयी थी, जिसका मतलब ये था की धर्म अपनी जगह और लोकतंत्र अपनी जगह ,इस मामले में राष्ट्रीयहित को सबसे पहले रखा गया था। इसके बाद कोरकवडो में प्रतिमा को खड़ा करने का दूसरी बार प्रस्ताव रिओ के कैथोलिक सर्कल द्वारा साल 1921 में लाया गया इस सर्कल ने प्रतिमा के निर्माण के लिए धनराशि और हस्ताक्षर को जुटाने के लिए “सोमाना डु मोनेमेंटो” यानी की मोन्यूमेंट वीक नाम का एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया था जिसमे सबसे ज्यादा दान कैथोलिक समुदाय ने ही दिया था।
ईसा मसीह के प्रतिमा को बनाने वाले चुने गए डिजाइनर ने ईसाई क्रॉस का एक प्रतिनिधित्वा अपने हाथ में पृथ्वी को लिए एक मूर्ति और विश्व के प्रतीक का एक चबूतरा भी शामिल किया था। ऐसे ही आए गए सभी प्रस्ताव और डिजाइनों में से खुली बाहों के साथ क्राइस्ट द रिडीमर की प्रतिमा को चुन लिया गया ,यह प्रतिमा एक शांति का प्रतीक है ऐसा चयन करने वाली कमिटी ने कहा था। इस भव्य प्रतिमा को किसी एक आदमी नहीं बनाया था बल्कि इसके पीछे कई सारे लोगों की मेहनत थी। इसे फ्रांसीसी मूर्तिकार पॉल लैंडोव्स्की और फ्रांसीसी इंजीनियर अल्बर्ट कैकोट के सहयोग से ब्राजील के इंजीनियर हेटर दा सिल्वा कोस्टा द्वारा बनाया गया है। इस प्रतिमा को बनने में 1922 से लेकर 1931 तक यानी पूरे 9 साल का समय लग गया था। यह पूरे 2 लाख 50 हज़ार अमेरिकी डॉलर में बन के तैयार हो गया था। स्मारक को 12 अक्टूबर 1931 में आम जनता के लिए खोल दिया गया था। इस प्रतिमा के उदघाटन की भी अलग कहानी है हुआ यूँ था कि इस स्मारक को शॉर्टवेव रेडियो के इन्वेंटर गुग्लिल्मो मार्कोनी के द्वारा बैटरी से प्रकाशित किया जाना था जिसका रिमोट रोम में मौजूद था लेकिन खराब मौसम की वजह से ये संभव नहीं हो सका था। इसके पश्चात रिओ के स्थानीय लोगों के द्वारा प्रतिमा का उद्घाटन किया गया।
50 साल बाद गुयान जाने वाले पहले प्रधान मंत्री :
रिओ द जेनेरियो में 18 और 19 नवंबर को होने वाले G20 सिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी,चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमरीका के राष्ट्रीय पति जो बाइडेन भी शामिल होंगे। इस सम्मेलन के खतम होने के बाद नरेंद्र मोदी अपनी इस यात्रा के तीसरे चरण को शुरू करेंगे जिसके लिए वो गुयाना रवाना होंगे आपको बता दें की 50 साल बाल मोदी पहले भारत के प्रधान मंत्री होंगे जो गुयाना जाएंगे। पिछले साल G20 का सफल सम्मेलन भारत ने घोषित किया था।