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फिल्म ‘पेइंग गेस्ट’ जिसने बेरोज़गार नौजवानों को किया आकर्षित, जानिए पूरी कहानी और उससे जुड़े किस्से

Full story of the film Paying Guest and stories related to it

Full story of the film Paying Guest and stories related to it

न्याजिया बेगम

“ओ निगाहें मस्ताना””चांद फिर निकला”
“चुपके चुपके रुकते रुकते””छोड़ दो आँचल ज़माना क्या कहेगा”
“माना जनाब नें पुकारा नहीं””हाय हाय हाय ये निगाहें”
ये वो गीत हैं जो क़रीब क़रीब हर संगीत प्रेमी के दिल की धड़कनों में बसते हैं पर आज हम आपके लिए लाए हैं इन गीतों को अपनी कहानी में पिरोने वाली फिल्म पेइंग गेस्ट जो रुपहले पर्दे पर आई सन 1957 को , निर्माता हैं सशधर मुखर्जी और निर्देशक , सुबोध मुखर्जी ।
जिसमें नायक रमेश के रूप में देव आनंद का बार बार किराया न दे पाने पर मकान से बाहर निकाला जाना कई बेरोज़गार नौजवानों को अपनी ओर आकर्षित करता है , क्योंकि रमेश एक नाक़ाबिल वकील हैं जो हर घर का किराया न दे पाने के कारण निकाला जाता है और एक दिन ऐसे ही बोरिया बिस्तर लिए नए मकान की तलाश में निकला तो पता चला कि एक मकान तो खाली है पर मकान मालिक किसी बुजु़र्ग को घर किराए पर देंगे क्योंकि उनके घर में जवान बेटी है फिर क्या था रमेश साहब बूढ़े का वेश बनाकर वहां जाते हैं और उस घर के किरायेदार बनने में कामयाब हो जाते हैं
और उन्हें मकान मालिक की लड़की शान्ति यानी अभिनेत्री नूतन से प्यार भी हो जाता है ,इस प्यार के नाम गीत था .
छोड़ दो आंचल ज़माना क्या कहेगा ….
अब बात करते हैं कहानी में अहम भूमिका निभाने वाले दूसरे किरदार की तो वो हैं शान्ति की सहेली चंचल यानी सह अभिनेत्री शुभा खोटे ,जिनके लिए उस वक्त पैसों से बढ़कर और कुछ नहीं था और इनके इन विचारों से, कॉलेज डिबेट कॉम्पटीशन ” शादी को कामयाब बनाने के लिए मोहब्बत ज़रूरी है या दौलत” ,विषय के ज़रिए फिल्म हमें शुरू में ही अवगत करा देती है और जिसमें शादी की कमियाबी के लिए मोहब्बत को ज़रूरी बता कर शांति न केवल ये कॉम्पटीशन जीत लेती है बल्कि चोरी छुपे उसे देख रहे नौ जवान रमेश का भी दिल जीत लेती है,अभिनेत्री नूतन को चाहने वाले ये बात जानते ही हैं कि वो गाती भी बहुत अच्छा थी,फिल्म छबीली में उन्होंने ऐ मेरे हमसफर “”गाया था और इस फिल्म का ये कॉम्पटीशन से भरा गीत भी गाया है जिसमें वो बहस के बीच गाती हुई नज़र आती हैं ,
अब कहानी में आगे बढ़ते हैं जब रमेश सामने आकर शांति से इज़हार ए मोहब्बत करता है तो वो उसकी मोहब्बत को ठुकरा के चल देती है जिस पर गाना है” माना जनाब ने पुकारा नहीं….”,
दूसरी तरफ चंचल अपने ख्यालात के साथ पैसों की ख़ातिर अपने पिता की उम्र के एक मशहूर वकील दयाल सेठ यानी गजानन जागीरदार से शादी कर लेती है और सहेली होने के साथ ही शादी के बाद चंचल ,शान्ति की पड़ोसी भी बन जाती है और अपनी शादी से नाख़ुश चंचल शान्ति और रमेश के प्रेम से जलने लगती है और इस प्यार का इज़हार करता नग़्मा है ,”ओ निगाहे मस्ताना हो हो देख समा है सुहाना ….”.।
फिर शान्ति का शराबी और ग़ुंडा, जीजा प्रकाश, शान्ति के पिता को धमकी देता है कि उसे किराए से मिले पैसे भेजें नहीं तो वो ख़ुद उनके घर रहने के लिए चला आयेगा।
पर जब रमेश किराया ही नहीं देता तो शांति के पिता प्रकाश को कहां से पैसे देते इसलिए शान्ति चुपके से अपने घर ख़र्च के पैसों में से पैसे निकाल कर रमेश को ये कहकर देती है कि रमेश इनसे किराया चुका दे और जब रमेश शान्ति के पिता को वो पैसे देता है तो शान्ति के पिता वो पैसे अपने दामाद को भेजने के लिए निकल पड़ते हैं,
लेकिन शान्ति उन्हें ये कहकर रोक लेती है कि वो ख़ुद ये पैसे अपने जीजा को मनी ऑर्डर कर देगी। लेकिन शान्ति पैसे नहीं भेजती और प्रकाश अपने परिवार के साथ आ धमकता है। शान्ति के पिता बीमार रहते हैं और एक दिन प्रकाश से झगड़े के दौरान अपनी जान गवाँ देते हैं।
इसी बीच शान्ति की बड़ी बहन की भी तबियत ख़राब हो जाती है और शान्ति अपने जीजा को अपने कंगन देकर दवा लेने भेजती है लेकिन प्रकाश सारा पैसा शराब में उड़ाकर ख़ाली हाथ घर आ जाता है। चंचल ,शान्ति को कोई नौकरी तलाशने को कहती है और शान्ति को एक थिएटर में नौकरी मिल जाती है जहां शांति गीत गाती है, चुपके चुपके रुकते रुकते …
फिर चंचल को मौका मिल जाता है रमेश पर डोरे डालने का ,प्रकाश चंद रुपयों की ख़ातिर रमेश और शान्ति को अलग करने की साज़िश में चंचल का साथी बन जाता है ।
एक दिन दयाल सेठ चंचल को एक पार्टी में चलने के लिए कहते हैं पर चंचल सिर दर्द का बहाना बनाकर उनके साथ नहीं जाती और उनके जाते ही वो अपने और रमेश के लिए फोन से होटल में दो सीटें बुक करती है और दयाल सेठ सुन लेते हैं जिसके बाद
पार्टी में चंचल रमेश को ज़बर्दस्ती शराब पिलाती है ,और रमेश गीत गाता है,
हाय हाय हाय ये निगाहें…,जिसे किशोर कुमार ने बखूबी अंजाम दिया है, फिर जब नशे में धुत रमेश घर आता है तो शांति उस पर नाराज़ होती है जिससे रमेश घर से बाहर निकल जाता है और चंचल उसे सहारा देकर अपने घर ले आती है ये सब देखकर दयाल सेठ अपनी वसीयत से चंचल को बेदखल कर देते हैं इसी बीच प्रकाश चुपके से चंचल के घर में दाख़िल होता है और दयाल की नई वसीयत को चुरा लेता है।
इन सब बातों के बाद रमेश और चंचल एक दूसरे से नहीं मिलते दोनों को लगता है कि उनका प्यार कम हो गया है पर शांति के किरदार में अभिनेत्री नूतन , “चांद फिर निकला …”गीत गाती है और रमेश उसके पास खिंचा चला आता है ।

आगे की कहानी कुछ यूं आगे बढ़ती है कि दयाल, चंचल पर बदचलनी का इल्ज़ाम लगाता है इसके बावजूद वो नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करने का कह के उसे अपने साथ एक झील के किनारे घूमने जाने के लिए मना लेती है इस बीच चंचल ,प्रकाश के साथ दयाल को रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रचती है और दयाल को झील में डुबा देती है पर चूंकि अब प्रकाश भी इस साज़िश में शामिल था इसलिए वो
वसीयत के नाम पर और दयाल के ख़ून के लिये चंचल को ब्लैकमेल करने लगता है और इसी सिलसिले में वो पैसे मांगने उसके घर जाता है और दोनों की बहस होने लगती है ,इस झगड़े की आवाज़ जब शान्ति तक पहुंचती है तो वो बाहर जाकर चंचल के घर की तरफ देखती है तो उसे परछाई में समझ आता है कि कोई किसी औरत का गला दबा रहा है। एक अच्छे पड़ोसी होने के नाते शान्ति पता लगाने चंचल के घर जाती है तो देखती है कि प्रकाश ही चंचल का गला दबाने जा रहा है। शान्ति को देखकर प्रकाश उस पर गोलियां चलाने लगता है लेकिन शान्ति किसी तरह प्रकाश से पिस्तौल छीन लेती है और उस को मारने की धमकी देने लगती है पर इस दौरान एक गोली चलती है और प्रकाश की मौत हो जाती है।
फिर पुलिस आती है और शान्ती इक़बाल ए जुर्म कर लेती है हालांकि चंचल ,प्रकाश की लाश को छुपा देती है और पुलिस को लाश नहीं मिलती ख़ैर अदालत में उसके ख़िलाफ़ मुकद्दमा चलने लगता है।रमेश जी जान लगा देता है कि कोई अच्छा वकील उसका केस ले ले पर सारे नामी वक़ील शान्ति का केस लेने से इन्कार कर देते हैं क्योंकि सबको यक़ीन होता है कि शान्ति को मौत की सज़ा ही होगी लेकिन आखिर में खुद पर यकीन न होते हुए भी रमेश शान्ति का वक़ील बनकर उसकी तरफ़ से पैरवी करता है ,इस बहस ,जिरह और देवानंद की शानदार एक्टिंग को आप पर्दे पर ज़रूर देखिए फिर महसूस कीजिए खूबसूरती और नफासत से अदाकारी के मुख्तलिफ और उम्दा अंदाज़ ए बयां को क्योंकि इस दौर की फिल्मों का लुत्फ ही अलग था , खैर रमेश पुर जो़र कोशिश करने लगता है सबूत इकट्ठे करने की और उसके हांथ लगती है दयाल सेठ की नई वसीयत और खिड़की के दूसरी तरफ से गोली चलने का सुराग जिससे ये साबित हो जाता है कि गोली किसी और ने चलाई है फिर परत दर परत राज़ खुलते हैं तो पता चलता है कि चंचल ने अपने नौकर की मदद से प्रकाश को मारने की साज़िश रची है , पुलिस को लाश भी मिल जाती है,पर चंचल के मुं से इक़बाल ए जुर्म कराने के लिए रमेश, प्रकाश का मुखौटा और रूप धरे अपने दोस्त को चंचल के सामने लाकर खड़ा कर देता है उसे देखकर चंचल इस बात से बेहद डर जाती है कि प्रकाश मरा नहीं ज़िंदा है और अब वो बता देगा कि उस पर गोली चंचल ही ने चलाई है और आखिरकार दहशत में आकर वो कुबूल कर लेती है कि अपने पति और प्रकाश को उसी ने मारा है ,इस तरह रमेश अपने आप को कामयाब वकील साबित करता है और बेकसूर शान्ति को फांसी के फंदे से भी बचा लेता है , ये खूबसूरत कहानी लिखी है ,
सुबोध मुखर्जी ने पटकथा तैयार की है नासिर हुसैन ने ।
मुख्य कलाकारों के अलावा फिल्म में अपनी अदाकारी के जलवे बिखरे बैरिस्टर दयाल के रूप में गजानन जागीरदार ने
सज्जन है – जगत, दुलारी हैं उमा और याकूब हैं प्रकाश। फिल्म के दिलनशीं नग़्मों को लिखा है मजरुह सुल्तानपुरी ने और उन्हें दिलकश मौसिकी की घूमों में पिरोया है।
सचिन देव बर्मन ने इन गीतों को अपनी शीरी आवाज़ से नवाज़ा है, किशोर कुमार , आशा भोसले और लता मंगेशकर ने।
हम उम्मीद करते है कि हमारे अल्फाजों के तरकश में पेइंग गेस्ट फिल्म की ये कहानी आपको पसंद आई होगी और आप भी भी मजबूर हो जायेगे इसे देखने और फिल्म के सितारों के अदाकारी के जलवों में खो जाने के लिए ।

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