दमोह। जिस नौकरी के लिए 17 वर्षो से परमलाल कोरी लड़ाई लड़ रहा था। उसमें उसे न्याय तो मिला, लेकिन ज्वांइनिग करने से पहले ही उन्हे मौत का बुलावा आ गया और इस न्याय के जीत की खुशी पल भर में ही मातम में बदल गई। यह मामला एमपी के दमोह जिले का है। मीडिया खबरों के तहत दमोह जिले के मड़ियादो निवासी परमलाल कोरी को एमपी हाईकोर्ट ने न्याय देते हुए उन्हे सरकारी स्कूल में टीर्चर बनाए जाने का आदेश जारी किया था। इस आदेश के बाद नौकरी की उम्मीद पर आखिरी दौर में खरा उतरे परमलाल की खुशियों का ठिकाना नही रहा तो पूरा परिवार खुश था, हो भी क्यों न, 40 वर्ष की आयु से वह नौकरी के लिए लड़ाई लड़ रहा था और 57 की साल की आयु में उसे नौकरी जो मिल रही थी, लेकिन उपर वाले को कुछ और ही मंजूर था। ज्वाइंनिग से 3 दिन पहले हार्टअटैक से परमलाल की मौत हो गई और पूरा परिवार गम में डूब गया।
अनुदेशक के पद पर शुरू की थी नौकरी
जानकारी के तहत परमलाल को साल 1988 में शिवपुरी जिले के केतर स्कूल में अनुदेशक के पद पर नौकरी मिली थी। 3 साल वे इसमें नौकरी किए और इसी बीच केतन विद्यायल बंद कर दिए गए। जिसके बाद कुछ अनुदेशकों और पर्यवेक्षकों को शिक्षा विभाग में गुरूजी बना दिया गया, जबकि कुछ छूट गए। परमलाल कोरी साल 2008 में गुरूजी पात्रता परीक्षा पास हो गया था। वह अनुदेशक पद को आधार बताकर हाईकोर्ट में आवेदन दिया और न्याय की उम्मीद में वह लड़ाई लड़ता रहा। जनवरी 2025 में कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया और टीर्चर की नौकरी दिए जाने का आदेश जारी किया।
मृत प्रमाण पत्र लेकर पहुचा पुत्र
शिक्षा विभाग के जिला समन्वयक ने परमलाल को दस्तावेज सत्यापन के लिए 15 अप्रैल को कार्यालय में उपस्थित होने का एक पत्र जारी किया। शिक्षा विभाग में उस समय सभी की ऑखे नम हो गई जब परमलाल का पुत्र पिता का मृत प्रमाण पत्र लेकर पहुचा। यह देख सभी दंग रह गए।