EPISODE 30: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे लकड़ी उपकरण FT. पद्मश्री बाबूलाल दाहिया

Babulal Dahiya

पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में ,आज आपके लिए लेकर आए हैं, कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे लकड़ी के उपकरण. कल हमने ठेगुरा, गढ़हर, बैल गाड़ी -आदि लकड़ी के उपकरणों की जानकारी दी थी। आज उसी श्रंखला में अन्य उपकरणों की जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।

कठौता

प्राचीन समय में जब फूल एवं पीतल के बर्तन नही थे तब लकड़ी, पत्थर एवं मिट्टी के बर्तन ही उपयोग में लाये जाते थे।कठौता उसी समय का लकड़ी का बना एक बर्तन था जो कूँड़े की तरह गोल बनता था। इसका उपयोग पानी भरकर रखने, आटा माड़ने और तरकारी आदि रखने में होता था। किन्तु धातु के बर्तन आ जाने के बाद यह 60 के दशक में ही पूर्णतः समाप्त हो गया था। कठौता प्रायः आम ,बीजा,खम्हार आदि लकड़ी का बनता था। यह मनुष्य के उपयोग में कब से था? कहा नही जा सकता पर गोस्वामी तुलसी दास के इस चौपाई कि–

केवट राम रजायस पावा।
पानि कठउता भर लइ यावा।।

से सिध्य है कि चार सौ साल पहिले तो था ही।

कठौती

यह कठौता की तरह ही उन्ही लकड़ी की बनती थी पर आकार में उससे कुछ छोटी होती थी। इसका उपयोग पानी के साथ -साथ सब्जी रखने में होता था। इसका वर्णन भी पांच सौ वर्ष पहले संत रविदास के समय पर इस कहावत में मिलता है कि-

मन चंगा त कठउती म गंगा।

पर अब पूर्णतः चलन से बाहर है।

खटखटा



यह लकड़ी का एक खोका होता है जिसमें एक छोटी पतली लकड़ी सुतली से बांध कर उसी में लगा दी जाती है और हरहे मवेशियों के गले में बांध दिया जाता है। जंगलों में चरते समय जब वह जानवरों के समूह को छोड़ कहीं दूर भी चला जाए तब भी खटखटे से खटखट की आवाज निकलने के कारण उसकी टोह मिलती रहती है। पर अब चलन से बाहर है।

तिकुआ

यह दो फन की लकड़ी का बनता है जिसके मूल भाग से निकले दोनों सिरों को पतला चोंखा कर के बछड़े के मुँह में बाँधा जाता है। कुछ गाय ऐसी होती हैं जो जल्दी – जल्दी बच्चे जनती हैं जिससे मैदानों में चरते समय उसका पहले वाला बछड़ा दूध पी लेता है। पर जब उसके मुँह में यह तिकुआ बांध दिया जाता है तो दूध पीते समय उसका पतला भाग गाय के पेट मे चुभता है अस्तु वह कूद जाती है और तब वह बछड़ा दूध नही पी पाता।

गोड़इया

यह एक हाथ लम्बी टेंढ़ी सी एक लकड़ी की होती है जिसमें रस्सी बांध कर नया कुँआ की खुदाई करते समय मिट्टी निकाली जाती है। कुँए की जोड़ाई के समय इसी से ईंटा ,गारा एवं पत्थर की टोकनी या बाल्टी आदि भी इसी में फँसा कर नीचे भेजे जाते हैं। गोड़इया धबई चिल्ला आदि किसी मजबूत और बाधिल लकड़ी की बनाई जाती है। आज बस यही तक, कल फिर मिलेंगे इस श्रृंखला की अगली कड़ी में ।

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