पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में आज आपके लिए प्रस्तुत है, कृषि आश्रित समाज के लौह उपकरण। अब तो परिस्थितियां ही बदल गईं हैं। पर जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि खेती किसानी अकेले किसानों के बलबूते की नही बल्कि उसमें पूरा एक ( कृषि आश्रित समाज) होता था। उनमें कुछ तो खेतों में श्रम करते और कुछ उपयोगी स्वनिर्मित तमाम तरह की वस्तुएं प्रदान कर उनका सहयोग करते थे। ऐसे शिल्पियों में कुछ शिल्पी लौह का कार्य करने वाले भी होते थे जो यह तमाम बस्तुएं प्रदान करते थे। उनकी बनाई बस्तुएं इस प्रकार हैं।
बसूला
यह लोहे का बना एक उपकरण है जो हल हरिस आदि के मरम्मत के काम आता था।इसकी बनावट ऊपर कुल्हाड़ी की तरह ही होती है जिसमें बेट डालने के लिए एक गोल छेंद रहता है। पर धार कुल्हारी से विपरीत अन्दर की ओर हुआ करती है। किसानों के काम से तो यह बिदा ले चुका है फिर भी बढ़ई गिरी के काम में आज भी इसका उपयोग है।
रोखना य निहान
यह लकड़ी में कोल कर छिद्र करने का एक लोह उपकरण है जिसमें गोल एवं चौकोर दोनों तरह के छेंद किये जा सकते हैं। किसानी के काम में इसकी उपयोगिता खटिया, मचिया, पांचा से लेकर मकान के छप्पर बनाने तक थी। किसानी से तो यह अलग हो चुका है पर बढ़ई के कार्य में आज भी इस निहान की उपयोगिता यथावत है ।
कोलउही
यह रोखने के तरह का ही होता है जिसमें ऊपर लकड़ी का बेंट लगा रहता है। परन्तु नीचे इसकी धार को मोंड दिया जाता है जिससे इससे बनने वाले छेंद गोल आएं।
आरी
यह दांतेदार एक हाथ लम्बा एक लौह उपकरण होता है जिसमें लकड़ी का एक बेंट लगा रहता है। इसे किसान घर के छप्पर की लकड़ी काटने खटिया मचिया आदि बनाने में उपयोग करते थे पर अब मात्र काष्ठ शिल्पियों के उपयोग की वस्तु बची है।
इस श्रृंखला में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ।