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EPISODE 3: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे प्रस्तर उपकरण FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

Forgotten stone tools of agricultural dependent society

Forgotten stone tools of agricultural dependent society

आज हम आपके लिए लेकर आए हैं पद्म श्री बाबूलाल दहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में तीसरी कड़ी यानी कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे प्रस्तर उपकरण।

पिछले दिन हमने प्रस्तर शिल्पियों द्वारा निर्मित पथरी चौकी खरल कुड़िया आदि अनेक बर्तनों और उपकरणों की जानकारी दी थी। हमें लगभग 14-15 प्रकार की वस्तुएं पत्थर शिल्पी बना कर देता था अस्तु इसी क्रम में आप पत्थर शिल्पी की कुछ अन्य वस्तुओं का भी अवलोकन करें

कांडी

यह पत्थर में बना 4-5 इंच गहरा गोलाकार एक गड्ढा होता था जिसे जमीन के बराबर तक आंगन या घर के किसी कोने में गाड़ दिया जाता था और फिर उसी में डालकर मूसल से चावल धान आदि की कुटाई की जाती थी। पर अब धान की मिलिंग मसीनों से होने के कारण यह पूर्णतः चलन से बाहर है।

ये है ,जेतबा (जेता)

यह चार इन्च मोटा सवा फीट चौड़ा गोल आकार का एक पत्थर का पिसाई एवं घाठ आदि दरने वाला उपकरण होता था जिसमें लकड़ी की मानी में बनी मूठ तथा लोह की कील लगती थी। यह दो भागों में बटा होता था। नीचे का भाग स्थायी रूप से जमीन में स्थिर रहता किन्तु ऊपर वाला भाग घूमता रहता था। इसमें मानी के अगल बगल अनाज डालने के लिए 2 इंच लम्बे चौड़े छिद्र भी होते थे। इसकी मानी को जेतबा के बने खांचे में ठोक कर फिट कर दिया जाता था। और फिर उसकी मूठ को पकड़ कर पिसाई या घाठ की दराई की जाती थी।

चकरिया

यह पत्थर का दाल दलने का एक उपकरण है जिसके दो पाटे होते हैं और दोनों पाटों में एक छेंद होता है जिसमें पड़ी हुई लकड़ी के बीच चकरिया घूमती है। साथ ही ऊपर वाले खण्ड में एक डेढ़ इंच का होल रहता है जिसमें मुठिया लगा दी जाती है। यह अभी भी चलन में है परन्तु दाल मिलों में दलहन अनाजों की दली हुई दाल के प्रचलन से इसमें भी कमी आ गई है।

अंत में बात करते हैं ’चकिया’ की,

यह गोलाकार चपटे पत्थर का बना आटा पीसने का एक यंत्र होता था जिसके दो भाग होते थे। पहले भाग को एक लकड़ी के खूँटे में लोहे की कील के साथ जमीन में स्थायी तौर पर रख कर मिट्टी से छाप दिया जाता था । फिर ऊपर के पाटे को उसी लोहे की कील में फँसा कर पिसाई की जाती थी जिसमें किनारे की ओर एक होल बना कर पकड़ने के लिए मूँठ भी लगा दी जाती थी। आज के लिए बस इतना ही,फिर मिलेंगे इस श्रृंखला के नए अंक में।

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