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EPISODE 4: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे प्रस्तर उपकरण FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

Forgotten stone tools of agricultural dependent society

Forgotten stone tools of agricultural dependent society

आज हम लेकर आए हैं पद्म श्री बाबूलाल दहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में चौथी कड़ी यानी कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे प्रस्तर उपकरण की चौथी किस्त।

कल हमने पत्थर शिल्पियों के कांडी, जेता, चकरिया, चकिया आदि बर्तनों की जानकारी मय चित्रों के प्रस्तुत किया था। आज उनके बचे हुए शेष बर्तनों या उपकरणों को भी प्रस्तुत कर रहे हैं।

तो चलिए जानते हैं, छोटी चौकी को

यह लगभग एक इंच मोटे दल की चार इंच चौड़ी गोलाकार बनती थी जिसमें बच्चों की दबाइयों को घोट कर पिलाया जाता था। जब तक बच्चों के लिए आज जैसी बनी बनाई दबाइयों का प्रचलन नही था तब अक्सर उन्हें सर्दी निमोनिया आदि हो जाने पर देसी दबाइयाँ ही दी जाती थीं। ऐसी स्थिति में इसी छोटी चौकी में बांट कर वह दबाइयाँ पिलाई जाती थी।
यदि सीना य पसली में दर्द होता तब बारह सिंघे की सींग को भी इसी में घोट कर गर्म- गर्म दवा का लेपन करते थे। पर अब ये पूर्णतः चलन से बाहर है।

धुरमुट

यह छिद्रदार 9 इंच मोटे और लगभग इतने ही आयतन वाले पत्थर का एक 2 इंच गोल छिद्र दार उपकरण होता था जिसमें लकड़ी का बेंट डाल कर मकान के फर्स की कुटाई की जाती थी। पर लोहे का धुरमुट आजाने से यह चलन से बाहर है।

चकरा

चकरा लगभग 3 फीट ब्यास का एक फीट मोटा होता जिसमें एक बित्ते का चौड़ा छेंद रहता था। प्राचीन समय में जब भट्ठे य फैक्ट्रियों के बने चूना य सीमेंट नही होते थे तब पक्के मकान य खेतों में पुल बनाने वाले किसान इसका उपयोग बज्र लेप बनाने में करते थे। पहले वह चूँन वाला सफेद कंकड़ एकत्र कर उसे इस चकरे में भैंसा नध कर एक गोलाकार गढ़े में गुमाते और जब वह पिसकर चूने जैसा हो जाता तब कत्था, बेल के फल का गूदा और पानी डाल कर उसे भी चकरे में पीसते। इस तरह एक दो दिन भैंसे से चकरे को घुमाने पर वह बज्रलेप जोड़ाई लायक गारा के रूप में बन कर तैयार हो जाता। इस तरह प्राचीन समय के जितने भी पुराने किले आदि बने हैं उनमें इसी चकरे को एक बृत्त में भैसों की जोड़ी द्वारा घुमा एवं पीस कर ही बनाया जाता था।

घिनोची

यह पानी भर कर घड़ा रखने का उपकरण था। घिनोची लकड़ी और पत्थर दोनो की बनती थी। वह जमीन से लगभग 3 फीट ऊँचाई पर होती थी जिससे न तो कुत्ते घड़े का पानी जूठा करें और न ही छोटे बच्चे हाथ बोर कर उसे गंदा कर सकें। घिनोची आंगन के दक्षिण की ओर रखी जाती थी जिससे सूर्य की गति के अनुसार हमेशा उसके ऊपर छाया बनी रहे। पत्थर के अपेक्षा लकड़ी की घिनोची में घड़े में घर्षण कम होता था। इस तरह यह सब मिल कर लगभग 15-16 ऐसे उपकरण थे जो कृषि आश्रित समाज को पत्थर शिल्पियों से मिलते थे। आज के लिए बस इतना ही फिर मिलेंगे इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।

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