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EPISODE 7 : कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मृदा उपकरण य बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

EPISODE : कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मृदा उपकरण य बर्तनFT. पद्मश्री बाबूलाल दहियाEPISODE : कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मृदा उपकरण य बर्तन

EPISODE : कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मृदा उपकरण य बर्तनFT. पद्मश्री बाबूलाल दहियाEPISODE : कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मृदा उपकरण य बर्तन

पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में आज प्रस्तुत है। कल हमने मिट्टी शिल्पियों द्वारा बनाए जाने वाले कुछ बर्तनों को प्रस्तुत किया था। उसी श्रंखला में आज उन्ही द्वारा निर्मित कुछ अन्य बर्तन भी प्रस्तुत हैं।

हड़िया

प्राचीन समय में जब पीतल और कांशे के बर्तन नही थे। व थे भी तो सम्पन्न लोगों तक ही चलन में थे तब गरीबों के घरों में हंड़िया में ही चावल और दलिया आदि पकाई जाती थी। इसकी बनावट दोहनी से कुछ बड़ी परन्तु दल कुछ मोटा होता था जिससे वह जल्दी फूटे नही। हंड़िया का रंग हल्का काला होता था और चावल पकजाने के पश्चात उसके उपयोग के बाद प्रति दिन उसे धो कर गर्म चूल्हे में औंधा रखके रखा जाता था। इस क्रिया को हंड़िया का सिझाया जाता कहा जाता था। उसमें ढकने केलिए एक परई होती थी और पके हुए चावल निकालने के लिए लकड़ी का करछुला जिसे ( डउआ) कहा जाता था। परन्तु अब वह-

(टके कि हंडी फूट गई, पर कुत्ते की पहचान मिलगई? ) अथबा –
(हंड़िया के मुँहे परइया देय, मनई के मुँह म का देय) आदि कहावतों में ही शेष है।

तेलइया

हंड़िया की तरह ही मटमैले काले रंग का एक बर्तन दाल रांधने के लिए भी होता था जिसे ‘तेलइया’ कहा जाता था। पर आकार में कुछ छोटी होती थी। इसके मुँह को ढकने के लिए भी परइया का उपयोग था।पर अब हंड़िया के साथ यह भी चलन से बाहर है।

मिट्टी का तबा

मिट्टी शिल्पी नें यदि दाल चावल रांधने केलिए हंड़िया, तेलइया आदि बनाया था तो रोटी पकाने केलिए मिट्टी का एक तबा भी जो काले और लाल दोनों रंगों के बनते थे। पर अब चलन से बाहर हैं।

मिट्टी की कड़हिया

कड़हिया की बनावट उथली ताई की तरह होती थी जिसे उठाने के लिए अगल बगल दो कान से होते थे। इसका दल भी मोटा एवं रंग काला रहता था। इसका उपयोग सब्जी, कढ़ी आदि बनाने में होता था। लगता है मिट्टी शिल्पियों की अवधारणा पर ही बाद में लौह शिल्पियों ने अपनी लोहे की कड़ाही बनाया होगा। पर अब यह पूर्णतः चलन से बाहर है। पहले इस मिट्टी की कड़ाही में लकड़ी की करछुली काभी प्रयोग था। आज बस इतना ही फिर मिलेंगे इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।

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