Babu lal Dahiya: कल हमने सबरी,तोता का पिजड़ा, मुसभन्ना ,अंकुश व बड़ा चिमटा आदि लौह उपकरणों की जानकारी दी थी। आज उसी श्रंखला में अन्य उपकरणों की जानकारी दे रहे हैं
खल ( खरल)
यूं तो खल दवा कूटने का एक पत्थर का उपकरण होता है। बाद में एक खल मोटे लोहे के चद्दर से भी बनने लगा था पर इसमें प्रायः मिर्च मसाले धनिया आदि कूटी जाती हैं जो आज भी चलन में है।
अनाज छानने की छन्नी
गेहूं चने अरहर आदि में कुछ दाने पतले या विकृत किस्म के हो जाते हैं एवं गेहूं के साथ कुछ खरपतवार आदि के दाने भी शामिल हो जाते हैं। ऐसे दानों के अलग करने के लिए यह छन्नी उपयुक्त होतीं हैं। यह कई अलग -अलग आकार के छिद्र की बनती हैं जिसमें मिश्रित अनाज छन कर अलग हो जाते हैं। यह अभी भी चलन में है।
नगाड़ा का लौह कूँड़
नगाड़ा युद्ध आदि के समय अनिवार्य वाद्य था। यूं तो नगड़िया तथा मध्यम आकार के नगाड़ों की कूँड़ कुम्हारों के आबा में पकी हुई मिट्टी की ही होती थी। पर जो नगाड़ा सामंतों इलाकेदरों के नगार खाने में रखे जाते थे उनका आकार कुछ अधिक बड़ा होता था। अस्तु उनकी कूँड़ बहुत बड़ी होने के कारण लोहे के पतले चद्दर से बनती थी और इनमें भी चमड़ा मढ़ा रहता था। अब यह पूर्णतः चलन से बाहर है।
बिलइया
यह एक फीट लम्बा आधा फीट चौड़ा दांतेदार एक उपकरण होता है जिससे बरी बनाने हेतु भूरे कद्दू को गोड़ कर करी निकाली जाती है और फिर उड़द मूंग की फूली हुई बटी दाल को मिलाकर बरी बनाई जाती है।
बैल गाड़ी की हल
यह बैल गाड़ी के चक्के में चढ़ा हुआ एक गोल छल्लेनुमा बालय होती है जो लकड़ी के चक्के को सुरक्षा प्रदान करती है। परन्तु जैसे -जैसे गाड़ी का प्रचलन समाप्त होता जा रहा है यह पहिया और हल भी लगभग समाप्ति की ओर है।
आज बस इतना ही कल फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ, इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।