पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में आज हम लेकर आए हैं ,कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी के उपकरण या बर्तन. कल हमने मिट्टी शिल्पियों द्वारा बनाए जाने वाली वस्तुओं हूंम गोरसी, करवा करई एवं चुकरी की जानकारी दी थी। आज उसी श्रंखला में उन्ही द्वारा निर्मित कुछ अन्य बर्तनों की जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।
बुड़की
प्राचीन समय में भले ही यह कहा जाता रहा हो कि,
पढ़े लिखे कुछू न होय,
हर जोते कुठिला भर होय।
पर 30-40 के दशक तक ग्रामों में भी पढ़ाई लिखाई का प्रचलन शुरू हो चला था। उस पढ़ाई में दो चीजें महत्वपूर्ण हुआ करती थी।
1– पाटी
2– बुड़की
पाटी तो काष्ठ शिल्पी द्वारा बनाई गई एक फीट लम्बी आधा फीट चौड़ी एक लकड़ी की पट्टिका होती थी। पर उसमें लिखने लायक बनाने के लिए दो वस्तुएं काम में लाई जाती थी। पहली छुही और दूसरी वस्तु थी डब्बी( ढेबरी) से निकला कोयला।
पहले कोयला को पोत और कांच की चूड़ी से घोट पाटी को खूब चिकना कर लिया जाता और फिर छुही से अक्षर लिखे जाते थे।इसलिए छुही कोयला रखने के लिए दो चुकड़ियों की आवश्यक्ता पड़ती थी जिन्हें लकड़ी एवं सुतली से बांध कर बनाया जाता था। पर बाद में मिट्टी शिल्पियों ने इस समस्या का निदान खोज दो चुकुड़ियों को जोड़ ऐसी बुड़की (बोरका) तैयार करदी थी जिसमें बकायदे सुतली लगाने के लिए छेंद भी होते और दोनों चुकड़ी आबा में पकने के पहले ही जुड़ी रहतीं। फिर पढ़ने वाला एक में कोयला घोल लेता और दूसरी में छुही। परन्तु स्लेट बत्ती आजाने से इसका प्रचलन पूर्णतः समाप्त है।
घोड़ा हाथी
प्राचीन समय में मिट्टी शिल्पी घोड़ा, हाथी, असवार समेत कुछ खिलौने भी बनाते थे। पर बाजार में आकर्षक खिलौने आ जाने के कारण उनका बव्यवसाय अब बन्द सा है। फिर भी कहीं-कहीं आज भी प्रचलन में हैं। आज के लिए बस इतना ही कल फिर लेकर आएंगे कुछ और जानकारी इसी श्रृंखला की अगली कड़ी में।