पूर्वोत्तर भारत में बारिश के लोक त्योहारों की मान्यताएं : Folk Festivals of Northeast India and Beliefs Related to Monsoon

Folk Festivals of Northeast India and Beliefs Related to Monsoon – पूर्वोत्तर भारत (Northeast India) न केवल अपनी जैव विविधता और भौगोलिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, बल्कि यह क्षेत्र सांस्कृतिक विविधता और लोक परंपराओं का भी समृद्ध भंडार है। यहाँ की जनजातियाँ और समुदाय न केवल ऋतुओं के बदलाव को उत्सव के रूप में मनाते हैं, बल्कि इनका जीवन मौसम के साथ गहराई से जुड़ा होता है। मानसून, जो इस क्षेत्र में जून से सितंबर तक सक्रिय रहता है, न केवल खेती का आधार है बल्कि इससे जुड़ी कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं भी हैं। इस लेख में हम जानेंगे पूर्वोत्तर भारत के प्रमुख लोक त्योहारों और उन मान्यताओं को, जो बरसात और प्रकृति के प्रति श्रद्धा और सह-अस्तित्व को दर्शाती हैं।

बारिश में असम का बिहू
Bihu and Monsoon (Assam)

बिहू असम का सबसे प्रमुख पर्व है जो तीन प्रकार के होते हैं, जिसमें रोंगाली बिहू, कंगाली बिहू, और भोगाली बिहू।


रोंगाली बिहू (बैसाख) –
वर्षा ऋतु की शुरुआत का संकेत है। यहां किसान मानसून से पहले धरती को जागृत करने के लिए नृत्य और गीत के साथ यह त्योहार मनाते हैं। मान्यता है कि इस समय की बिहू नृत्य और गीत बारिश को आकर्षित करते हैं और फसलों के लिए शुभ संकेत होते हैं।


कंगाली बिहू – Kongali Bihu
संयम और साधना का पर्व – यह अक्टूबर के मध्य यानी अश्विन या कातिक माह में धान की फसल की वृद्धि अवस्था में मनाया जाता है। यह वो समय होता है जब धान की फसल खेतों में बढ़ रही होती है लेकिन घर के भंडार खाली होते हैं, इसलिए इसे “कंगाली” यानी दरिद्रता वाला बिहू कहा जाता है । इस समय आर्थिक तंगी, संसाधनों की कमी और वर्षा के बाद की नमी का प्रभाव होता है।


भोगाली बिहू – Bhogali Bihu
उत्सव और भोग का पर्व – जनवरी के मध्य माघ माह की संक्रांति पर मनाते हैं । यह वह समय होता है जब धान की फसल कट चुकी होती है, घरों में अन्न भंडार भर चुके होते हैं। यह खुशहाली, साझा भोजन, और सामाजिक मेल-मिलाप का पर्व है।
इसलिए इसे “भोगाली”, यानी भोग (आनंद) से भरा बिहू कहते हैं। इसमें “उरूका” की रात (संक्रांति से एक दिन पहले) को लोग खुले मैदान में या नदी किनारे लकड़ी और घास-फूस से “मेजी” बनाते हैं। रात भर अग्नि के चारों ओर सामूहिक भोज (मछली, चिड़िया, मांस, लड्डू, पीठा आदि) होता है। अगली सुबह मेजी में आग लगाकर अग्नि-पूजन किया जाता है। युवा लोग खेल-कूद, पारंपरिक गान-बाजन, और मुर्गा लड़ाई जैसी गतिविधियों में भाग लेते हैं।

चेरापूंजी और मेघालय की वर्षा पूजा
Rain Worship in Meghalaya

मेघालय में खासी और जयंतिया जनजातियों की मान्यता है कि बारिश “उ-परमेश्वर की कृपा” का रूप है। सिजुंग पूजा और नोंगक्रेम जैसे त्योहारों में प्रकृति देवी को बलि और प्रसाद चढ़ाया जाता है, जिससे अच्छी वर्षा और फसल की प्राप्ति हो। खासी लोगों का मानना है कि इंद्र या “उ बैद” अगर प्रसन्न हो जाएं तो समय पर बारिश होती है।

मिज़ोरम का चपचार कुट
Chapchar Kut (Mizoram

मिज़ो समुदाय का यह पारंपरिक त्योहार आमतौर पर बारिश शुरू होने से ठीक पहले मनाया जाता है। यह फसल रोपाई से पहले का उत्सव है जिसमें झूम खेती करने वाले किसान प्रकृति से सामंजस्य की कामना करते हैं। चपचार कुट में नृत्य, शिकार, पारंपरिक गीत के माध्यम से ईश्वर से समय पर वर्षा की प्रार्थना की जाती है।

अरुणाचल प्रदेश के आदिवासी उत्सव और मानसून -Tribal Festivals & Rain Beliefs
यहां की प्रमुख जनजातियां जैसे अपतानी, मिश्मी, न्यिशी, मोनपा आदि वर्षा को एक आध्यात्मिक प्रक्रिया मानते हैं। म्योकू और लोसार जैसे पर्वों में पर्वत देवी, नदियों और आकाश की पूजा होती है। इन समुदायों का मानना है कि यदि पृथ्वी और जल को संतुलित रखा जाए, तो सही समय पर वर्षा होती है।

त्रिपुरा का गारिया पूजा
Garia Puja (Tripura)

त्रिपुरी जनजातियों द्वारा अप्रैल-मई में मनाई जाने वाली गारिया पूजा वर्षा और फसल के लिए होती है।
इसमें बांस, चिकन, चावल बीयर आदि का बलिदान प्रकृति देवी को चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि इससे देवता प्रसन्न होकर उचित वर्षा प्रदान करते हैं।

बारिश और संगीत – लोक परंपरा की धरोहर
Rain and Folk Songs

पूर्वोत्तर भारत के कई क्षेत्रों में लोकगीतों और पारंपरिक संगीत के माध्यम से बारिश की वंदना की जाती है।
बिहू गीत, खासी लोक गीत, नागा युद्ध गीत में वर्षा को देवी रूप में वंदित किया जाता है। आदिवासी समुदायों का मानना है कि संगीत और नृत्य से प्रकृति जागृत होती है।

विशेष – Conclusion
पूर्वोत्तर भारत की लोकसंस्कृति में बरसात केवल मौसमी घटना नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक और सामाजिक अनुभव है। यहां के पर्व, नृत्य, गीत, पूजा और जीवनशैली इस बात का प्रमाण हैं कि कैसे मानव और प्रकृति का संबंध पारंपरिक रूप से संतुलित रहा है। इन लोक मान्यताओं और त्योहारों से हम यह सीख सकते हैं कि प्रकृति के साथ तालमेल और श्रद्धा ही सतत विकास और खुशहाली की कुंजी है।

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