Rajasthan Jal Mahal: राजस्थान की झील में तैरता जलमहल

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Features of Jal Mahal: यूँ तो राजस्थान की तपती रेत में पानी की कल्पना ही चेहरे पे मुस्कान ला देती है और ऐसे में झील में तैरते महल का नज़ारा कितना सुकून देगा ये अंदाज़ा आपको लगाना हो तो आप राजस्थान की राजधानी जयपुर के मानसागर झील के मध्‍य स्थित प्रसिद्ध ऐतिहासिक महल ,जलमहल को देखने ज़रूर जाइए भले ही बहाना , सिटी पैलेस, हवा महल, आमेर फोर्ट ,नाहर गढ़ क़िला जंतर-मंतर या जयगढ़ फोर्ट को देखने का हो।

कई नाम हैं इसके :-

अरावली पहाडिय़ों के गर्भ में स्थित जल महल को झील के बीचों बीच होने के कारण एक तरफ ‘आई बॉल’ कहा जाता है तो वहीं ‘रोमांटिक महल’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि राजा इस महल में अपनी रानी के साथ ख़ास वक्‍त बिताते थे और वे इसका प्रयोग राजसी उत्सवों पर भी बड़ी शान ओ शौकत के साथ करते थे और आम जनता इसकी पाल पर आनंद लेती । राजपूत राजा सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित ये महल ,मध्‍यकालीन महलों की तरह मेहराबों, बुर्जो, छतरियों एवं सीढीदार ज़ीनों से युक्‍त ,वर्गाकार रूप में निर्मित है।

पक्षियों का है बसेरा :-

जलमहल अब पक्षी अभ्यारण्य के रूप में भी विकसित हो रहा है जहाँ तरह तरह के पक्षी कलरव करते हैं क्योंकि उन्हें बहोत घने और ऊँचे पेड़ों की छाँव मिलती है यहाँ ,महल की ऊपरी मंज़िल में पेड़ों को लगाना आसान नहीं था इसके बावजूद नर्सरी में 1 लाख से अधिक वृक्ष लगे हैं और इसमें राजस्थान के सबसे ऊँचे पेड़ पाए जाते हैं। दिन रात 40 माली पेड़ पौधों की देखभाल में लगे रहते हैं। इस नर्सरी को राजस्थान के सबसे उंचे पेड़ों वाला नर्सरी माना जाता है जिसमें अरावली प्‍लांट, ऑरनामेंटल प्‍लांट, शर्ब, हेज और क्रिपर की हज़ारों क़िस्म मौजूद हैं। यहाँ के १५0 वर्ष पुराने पेड़ों को ट्रांसप्‍लांट कर नया जीवन दिया गया है और हर साल यहां डेट पाम, चाइना पाम और बुगनबेलिया जैसे शो प्‍लांट को ट्रांसप्‍लांट किया जाता है।

किसने कराया निर्माण और क्यों :-

जयपुर-आमेर मार्ग पर मानसागर झील के मध्‍य स्थित इस महल का निर्माण सवाई जय सिंह ने अश्वमेध यज्ञ के बाद यहीं स्‍नान करने के लिए करवाया था। इसलिए महल के निर्माण से पहले मानसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति हेतु गर्भावती नदी पर बांध बनवाकर मानसागर झील का निर्माण करवाया। इसका निर्माण 1699 में हुआ था और इसमें आने जाने के लिए राजपूत शैली से तैयार की गई नौकाओं की मदद ली गई थी। मध्‍यकालीन महलों की तरह मेहराबों, बुर्जो, छतरियों एवं सीढीदार ज़ीनों से युक्‍त कई मंज़िला और वर्गाकार रूप में निर्मित ये महल है। इसकी उपरी मंज़िल की चारों कोनों पर बुर्जो की छतरियाँ व बीच की बरादरिया, संगमरमर के स्‍तम्‍भों पर आधारित हैं। ये भी कहा जाता है कि इस महल को माधो सिंह ने 1750 के दशक में अपनी शिकारगाह के लिए बनवाया था। उनके पुत्र माधो सिंह द्वितीय ने 18वीं शताब्दी में जल महल के आंतरिक सज्जा को बेहतर बनाने में भी अहम भूमिका निभाई थी, उनका बनवाया प्रांगण आज भी इस महल का एक हिस्सा है।

इस महल में गर्मी नहीं लगती :-

तपते रैगिस्तान के बीच बसे इस महल में गरमी नहीं लगती, क्‍योंकि इसके कई तल पानी के अंदर बनाए गए हैं। जिससे इसकी ज़मीन पानी की ठंडक का एहसास कराती है ,हालाँकि ये पाँच मंज़िला है, लेकिन आज इसकी केवल एक ही मंज़िल पूरी दिखाई देती है, बाकी चार मंजिलें पानी में डूबी हुई हैं। इस झील की गहराई 15 फीट है और इसके निचले इलाकों की गहराई 4.9 फीट है , इसके प्लास्टर में भी जैविक सामग्री का इस्तेमाल किया गया है जो गर्मी को बढ़ने नहीं देता और आँखों की ठंडक के लिए आप दूर से ही सही पहाड़ों से घिरे झील के बीच में तैरते इस ख़ूबसूरत महल के दिलकश नज़ारे को देख ही सकते हैं जो हर शाम के साथ अपने पूरे शबाब पर होता है और चांदनी रात में झील के पानी की वजह से और भी पुरकशिश और खूबसूरत हो जाता है। तो एक बार ज़रूर जाइये गुलाबी शहर में गुलाबी पत्थर से बनीं इमारतों को देखिये और जल महल को भी दूर से निहारिये और महसूस करिये इसकी भव्यता को।

राजपूत और मुग़ल स्थापत्य कला का है मिश्रण :

अठारहवीं शताब्दी में आमेर के महाराजा जय सिंह द्वितीय ने जल महल और उसके आसपास की झील का जीर्णोद्धार करवाया था। इस समय तक भारत में कई जगह मुग़लों का शासन हो जाने के कारण जल महल में राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली का मिश्रण दिखाई देता है जिसमें गुम्बद और इसके मध्य में बंगाली शैली की एक बड़ी आयताकार छतरी छत की शोभा बढ़ाती है।जयपुर यानि गुलाबी शहर में ये लाल बलुआ पत्थर से बना महल है।

क़िले की विशेषता :-

जल महल की झील के उत्तर-पूर्व की ओर से घिरी नाहरगढ़ पहाड़ियों में क्वार्टजाइट चट्टानें हैं और इन पर साल भर हरियाली की चादर बिछी रहती है ,महल के प्लास्टर की बात करें तो इसमें पारंपरिक सामग्रियों जैसे – जैविक सामग्री , चूने, सुर्खी और रेत के साथ गुड़, गुग्गल और मेथी पाउडर के गारे का मिश्रण बनाकर प्रयोग किया गया है , जिनका आजकल उपयोग नहीं किया जाता लेकिन इसकी वजह से ही आज भी ये टिकाऊ है और नए जैसी भव्यता लिए शान से पानी पे तैर रहा है जिसे देखकर नाहरगढ़ क़िले या आसपास आने वाले लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

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