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जिन्होंने बांसुरी को नया रूप देकर उसे शंख बांसुरी बना दिया, आज बात करते हैं सुर लहरियों के जादूगर रोनू मजूमदार की

Flautist Ronu Majumdar

Flautist Ronu Majumdar

नाज़िया बेग़म

Flautist Ronu Majumdar: आज हम बात करेंगे मैहर घराने से ताल्लुक़ रखने वाले और बनारस शास्त्रीय धुनों को भी अपनी सुर लहरियों में पिरोने वाले रोनू मजूमदार की जिन्होंने बांसुरी को नया रूप देकर उसे शंख बांसुरी बना दिया, हालांकि इसकी कमी उन्हें क्यों लगी, इसके बारे में वो कहते हैं कि बीनकारी अंग में मंद्र सप्तक में आलाप की जो गहराई होती है वो उन्हें बांसुरी में कहीं सुनने नहीं मिलती थी. बड़े बड़े बांसुरी वादकों को सुनकर भी उन्हें ये कमी हमेशा महसूस होती थी. और फिर पन्ना बाबू यानी (पं. पन्नालाल घोष) जिनसे रोनू के पिता ने बांसुरी बजाना सीखा था ,बांसुरी में कई बदलाव पहले ही कर गए थे. तो बस उन्होंने शंख बांसुरी के माध्यम से उनके ही काम को पूरा किया और एक नाम दे दिया है।

महज़ छह साल की उम्र में बांसुरी बजाना सीखा
उन्होंने महज़ छह साल की उम्र में बांसुरी बजाना सीखा और तेरह साल की उम्र तक अपनी कला का प्रदर्शन भी करने लगे थे फिर जैसे जैसे बड़े हुए कई महान कलाकारों के साथ संगत करने लगे । उनकी बांसुरी 3 फिट लंबी है जिसके निचले हिस्से में एक अतिरिक्त आयाम जोड़ा गया है। 1981 में, आपने ऑल इंडिया रेडियो प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीता और अपनी प्रतिभा के दम पर राष्ट्रपति से स्वर्ण पदक प्राप्त किया । उन्होंने पंडित रविशंकर के साथ मिलकर पैसेज और चैंट्स ऑफ इंडिया जैसे एल्बम बनाए साथ ही 30 से ज़्यादा ऑडियो रिलीज़ किए, संगीत के प्रति समर्पण के लिए उन्हें कई पुरस्कारों के साथ लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाज़ा गया और 2014 में प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और फिर बेला फ्लेक के साथ किए गए एल्बम तबुला रासा में वो ग्रैमी अवार्ड के लिए नामांकित हुए। आज, रोनू मजूमदार इस वाद्य यंत्र को बजाने वाले सबसे लोकप्रिय संगीतकारों में से एक हैं, और अपनी रचनात्मक तात्कालिकता के लिए युवा पीढ़ी के बीच भी विशेष रूप से पसंद किए जाते हैं। पंडित मजूमदार मैहर घराने से जुड़े हैं , जिसमें पंडित रविशंकर और उस्ताद अली अकबर खान जैसे प्रख्यात संगीतकार हैं।

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गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज
पूरे भारत में विभिन्न संगीत समारोहों में अपने संगीत कार्यक्रमों के अलावा, उन्होंने मॉस्को में भारत महोत्सव और नई दिल्ली में एशियाड ’82 में भी भाग लिया । आपको कई वाद्यवादकों के साथ जुगलबंदियों के लिए भी जाना जाता है । एक अभिनव संगीतकार के रूप में उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के साथ संगीत के अन्य रूपों, विशेष रूप से पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के मिश्रण में कई टुकड़े भी बनाए हैं , जिनमें कैरीइंग होप , ए ट्रैवलर्स टेल , सॉन्ग ऑफ नेचर , कल अकेला कहां बेहद पसंद किए गए पंडित जी ने ‘ आर्ट ऑफ लिविंग ‘ के बैनर तले वेणु नाद नामक एक मंच पर 5,378 बांसुरी वादकों का एक संगीत कार्यक्रम आयोजित किया था जिसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया ।

फिल्मों को नहीं दे पाए ज़्यादा वक्त
फिल्मों की बात करें तो उन्होंने वालनट डिस्कवरीज प्राइवेट लिमिटेड के तहत निखिल चांदवानी द्वारा निर्मित बॉलीवुड फिल्म नदी की बेटी सुंदरी के लिए संगीत निर्माण किया, आपने हॉलीवुड की फिल्म प्राइमरी कलर्स के लिए थीम संगीत रचा और एक मराठी फिल्म सलाम द सैल्यूट के लिए भी संगीत तैयार किया पर ज़्यादा वक्त फिल्मों को नहीं दे पाए ,वो बहुत-सी बंदिशों का संग्रह करते हैं ताकि एक किताब तैयार की जा सके. ध्रुपद की भी सुंदर रचनाएं की हैं , आपका पूरा नाम रणेंद्र नाथ मजुमदार है दरअसल रोनू उनका पुकारने का नाम हो गया क्योंकि पंडित रविशंकर जी उन्हें इसी नाम से पुकारते थे और उन्होंने ही कहा था कि उनका यही नाम लोकप्रिय होगा और हुआ भी ऐसा ही, आज उनकी बदौलत ही शंख बांसुरी बहुत लोकप्रिय हो गई है और बांसुरी बनाने वाले इसे भी बनाने लगे हैं। इसके प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने क़रीब क़रीब पूरी दुनिया में अपनी कला का प्रदर्शन किया , उनके गुरु मैहर घराने के थे लेकिन उनका जन्म 1963 को बनारस में हुआ इसलिए वहां के संगीत का उन पर गहरा प्रभाव था ख़ास कर उनके उपशास्त्रीय संगीत में तो ये झलक साफ दिखाई देती है जिसे आप उनके ठुमरी, चैती, कजरी, झूला में बखूबी सुन सकते हैं तो आइए आज फिर महसूस करते हैं इस जादू को जो बेशुमार दिलों को बहा ले जाता है अपनी रौ में।

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