देश लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. पक्ष और विपक्ष दोनों ही ओर से समीकरण साधे जा रहे हैं, ताकि लोकसभा की जंग में जीत का स्वाद चखा जा सके. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे रहा इंडिया गठबंधन उत्तर से लेकर दक्षिण तक समीकरण दुरुस्त करने में लगा हुआ है, लेकिन उनकी राह इतनी आसान दिखाई नहीं दे रही. वहीं भारतीय जनता पार्टी अपने हर फैसले में सभी समीकरण को साधने का प्रयास कर रही है, जिससे मोदी की जीत की हैट्रिक लगाई जा सके. कुछ ऐसा ही दिखा मध्य प्रदेश में मोहन सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में जहां विपक्ष के ओबीसी वाले दांव की काट भी दिखी, सबके साथ वाली रणनीति भी.
अब वरिष्ठता पद की गारंटी नहीं:
शिवराज सरकार में मंत्री रहे 19 चेहरे विधानसभा चुनाव जीते। इनमें मोहन यादव, जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ल भी शामिल हैं। यादव मुख्यमंत्री हैं। देवड़ा व शुक्ल उप मुख्यमंत्री। बाकी 16 में से 6 को ही कैबिनेट में जगह मिली। 10 मंत्री पद की शपथ के लिए कॉल का इंतजार ही करते रह गए। ये सभी 10, चुनाव और राजनीति के ‘वरिष्ठ’ खिलाड़ी हैं। इनमें एक भी ऐसा नहीं है जो कम से कम चार चुनाव नहीं जीता हो। मतलब साफ है- सीनियरिटी अब पद की गारंटी नहीं रही है। नए को मौका देने के लिए पुरानों को पीछे हटा दिया जाएगा।
CM के दावेदार थे, मंत्री बना दिया
‘मैं सिर्फ विधायक बनने नहीं आया। पार्टी मुझे इससे भी बड़ी जिम्मेदारी देगी।’ भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर-1 में चुनाव प्रचार में यह कहकर अपनी ‘भावनाएं’ बता दी थीं। पद और कद के हिसाब से वे मुख्यमंत्री के पद के स्वाभाविक दावेदार थे। डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री और जगदीश देवड़ा व राजेंद्र शुक्ल के उप मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे ज्यादा चर्चा विजयवर्गीय की नई जिम्मेदारी को लेकर ही हो रही थी, क्योंकि यह भी सवाल उठ रहा था क्या वे राजनीति में अपने से जूनियर मोहन यादव की टीम में काम करेंगे? पार्टी ने उन्हें मंत्री बनाकर मैसेज दिया कि कद की बजाय पार्टी की जरूरत के मुताबिक ही काम दिया जाएगा। केंद्रीय मंत्री रहे और अब मोहन सरकार में मंत्री प्रहलाद पटेल के साथ भी यही हुआ।
पहली बार के मंत्री थे, फिर भी हटाया
परफॉर्मेंस देना जरूरी है मंदसौर जिले के जावद से विधायक ओमप्रकाश सकलेचा पिछली शिवराज सरकार में पहली बार मंत्री बने। उनके पास सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग था, लेकिन ओमप्रकाश सकलेचा का कार्य प्रकाश बिखेरने में कामयाब नहीं हो पाया। स्टार्टअप को बढ़ाने के लिए कुछ काम हुए लेकिन सब ‘सूक्ष्म’ ही साबित हुए। स्टेट स्टार्टअप 2021 की रेटिंग में गुजरात, कर्नाटक और मेघालय बेस्ट परफॉर्मर थे। UP की कैटेगरी भी MP से ऊपर थी। नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा व पर्यावरण मंत्री हरदीप सिंह डंग का विभाग भी उनके नाम के अनुरूप ‘नवीन’ नहीं कर पाया, जबकि सोलर एनर्जी के क्षेत्र में काफी स्कोप था। दोनों अब मंत्री नहीं हैं।
आदिवासी कोटे से आए, फिर भी इस बार जगह नहीं
’दाग’ कैसे भी हो मंजूर नही शिवराज सरकार में आदिवासी महिला चेहरा मीना सिंह पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। आरोप भी आदिवासियों की ओर से ही लगे। लोग सड़क पर उतरे। डटे रहे। मंत्री के खिलाफ आंदोलन था, इसलिए पुलिस ने सख्ती की सीमाएं लांघीं। नतीजा- प्रदर्शन काबू में आने की जगह और हिंसक हो गया। झड़प ऐसी हुई कि 21 पुलिसकर्मी घायल हो गए। बिसाहूलाल भी आदिवासी कोटे से आते हैं। कांग्रेस से आए थे। महिलाओं के बारे में उनकी आपत्तिजनक टिप्पणियों से पार्टी को बैकफुट पर आना पड़ा था। दोनों इस बार आउट हो गए।
पहली बार विधायक, मंत्री बना दिया
पुरानी धारणाएं खत्म, पर्सनल प्रोफाइल भी देखेंगे पहली बार के विधायक मंत्री बन सकते हैं। छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल के गठन में दिए गए संदेश के बाद मप्र के पहली बार के विधायकों में भी उम्मीद जग गई थी। सस्पेंस सिर्फ इस बात का था कि किसकी किस्मत खुलेगी? नई-नई विधायक बनी राधा सिंह, संपतिया उइके और प्रतिमा बागरी, नरेंद्र शिवाजी पटेल और दिलीप अहिरवार मंत्री बन गए। प्रतिमा सबसे कम उम्र (35 साल) की मंत्री हैं। इनके चयन में जातिगत समीकरण के साथ ही पर्सनल प्रोफाइल भी देखी गई है। पांच में दो पोस्ट ग्रेजुएट, एक ग्रेजुएट और एक इंजीनियर है। संदेश साफ है नए को मौका मिलेगा, लेकिन योग्यता भी देंखेगे।
विजयवर्गीय और प्रहलाद को मंत्रिमंडल में क्यों मिली जगह?
दोनों मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने के बाद दोनों के लिए मंत्री पद के अलावा फिलहाल और कोई विकल्प नहीं था। यह भी तय है कि दोनों को महत्वपूर्ण विभाग मिलेंगे। विजयवर्गीय को अब जल्द ही राष्ट्रीय महासचिव के दायित्व से मुक्त किया जाएगा। मंत्री पद की शपथ लेने के बाद वे कह भी चुके हैं- इस्तीफा तैयार है।
कैबिनेट में क्षेत्रीय संतुलन कितना है?
इस बार सभी क्षेत्रों का बराबर ध्यान रखा गया है। मालवा-निमाड़ से मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के अलावा सात मंत्री हैं। भोपाल-नर्मदापुरम को इस बार छह मंत्री मिले हैं। पिछली बार पांच ही थे। बघेलखंड न नुकसान में रहा, न फायदे में। पिछली बार चार मंत्री थे, इस बार भी चार को ही मौका मिला है- राजेंद्र शुक्ल, राधा सिंह, प्रतिमा बागरी और दिलीप जायसवाल। महाकौशल को जरूर इस बार फायदा हुआ है। शिवराज सरकार में एक ही मंत्री थे राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रामकिशोर कांवरे। इस बार प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह, संपतिया उइके और राव उदय प्रताप सिंह। बुंदेलखंड से गोविंद सिंह राजपूत, लखन पटेल, दिलीप अहिरवार और धर्मेंद्र लोधी को मंत्री बनाया है।
लोकसभा चुनाव का कितना ध्यान रखा गया?
मंत्रिमंडल को लेकर इस फॉर्मूले पर भी चर्चा हो रही थी कि लोकसभा की सीटों के हिसाब से मंत्री बनाए जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं दिखा। मुख्यमंत्री, दो उपमुख्यमंत्री और 28 मंत्री जिन विधानसभा क्षेत्रों से आते हैं, उनसे 22 लोकसभा सीटें ही कवर हो रही हैं। वहीं रतलाम तथा होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र से तीन-तीन मंत्री बनाए गए हैं। ग्वालियर, दमोह, राजगढ़ व इंदौर संसदीय क्षेत्र से दो-दो मंत्री बनाए हैं, जाहिर है लोकसभा सीटों के फॉर्मूले को तवज्जो नहीं दी गई। वजह – लोकसभा चुनाव में तो एकमात्र चेहरा मोदी होंगे।
कैबिनेट में महिलाओं की कितनी हिस्सेदारी?
इस बार पांच महिलाओं को मंत्री बनाया है। दो उपमुख्यमंत्री समेत 30 मंत्री हैं। इस हिसाब से कैबिनेट में महिलाओं की हिस्सेदारी 17 फीसदी है। शिवराज सरकार में तीन महिला मंत्री थीं, जबकि 33 मंत्री थे। यानी कुल नौ फीसदी ही हिस्सेदारी थी।
मंत्रिमंडल में सबसे चौंकाने वाली बात क्या रही?
शिवराज सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह का नाम नहीं होना। उनके अलावा गोपाल भार्गव को मंत्री नहीं बनाना भी चौंकाने वाला फैसला रहा है। दोनों सागर जिले से आते हैं। दोनों की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता जाहिर है.
तमाम समीकरणों को साधने के साथ ही नये चेहरे और उम्र का भी मोहन सरकार में खासा ध्यान रखा गया है, 35 से 55 साल के बीच 11 मंत्रियों को मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री बनाया गया है. वहीं 17 मोहन सरकार के सिपहसालारों की उम्र 55 से 70 के बीच में हैं.