बंगाल हाईकोर्ट का OBC पर बड़ा फैसला, 5 लाख सर्टिफिकेट रद्द

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Bengal High Court’s decision: हाईकोर्ट के फैसले को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वे हाईकोर्ट और भाजपा के आदेश को नहीं मानेंगी। राज्य में ओबीसी आरक्षण जारी रहेगा। एक रैली में ममता ने कहा कि जरा इन लोगों की हिम्मत तो देखिए। ये हमारे देश का एक कलंकित अध्याय है।

Bengal High Court’s decision on OBC: कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार 22 मई को पश्चिम बंगाल में 2010 के बाद जारी सभी अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) सर्टिफिकेट रद्द करने के आदेश दिए हैं। जस्टिस तपोब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर मंथर की बेंच ने कहा कि 2011 से प्रशासन ने किसी नियम का पालन किए बिना ओबीसी सर्टिफिकेट जारी कर दिए। बेंच ने कहा कि इस तरह से ओबीसी सर्टिफिकेट देना गैर-संवैधानिक है। यह सर्टिफिकेट पिछड़ा वर्ग आयोग की कोई भी सलाह माने बिना ही जारी किए गए हैं। इसलिए इन सभी सर्टिफिकेट्स को कैंसिल कर दिया गया है। हालांकि, यह आदेश उन ओबीसी पत्रों पर लागू नहीं होगा, जो पहले से नौकरी में हैं या जिन्हें नौकरी मिलने वाली है। OBC लिस्ट के रद्द होने से लगभग 5 लाख प्रमाणपत्र रद्द होंगे। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 के आधार पर OBC की नई सूची पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा तैयार की जाएगी।

ममता ने हाईकोर्ट का आदेश मानने से मना किया

Bengal High Court’s decision on OBC: हाईकोर्ट के फैसले को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वे हाईकोर्ट और भाजपा के आदेश को नहीं मानेंगी। राज्य में ओबीसी आरक्षण जारी रहेगा। एक रैली में ममता ने कहा कि जरा इन लोगों की हिम्मत तो देखिए। ये हमारे देश का एक कलंकित अध्याय है। ममता बनर्जी ने कहा कि ओबीसी आरक्षण लागू करने से पहले कई सर्वे कराए गए थे। इस मामले में पहले भी कई केस दर्ज कराए गए हैं, पर उनका कोई नतीजा नहीं निकला। ये लोग भाजपा शासित प्रदेशों में लागू नीतियों पर बात क्यों नहीं करते हैं। ममता ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री मोदी लगातार बात करते आए हैं कि कैसे माइनॉरिटीज तापाशिली आरक्षण को छीन लेंगी और इससे संविधान ध्वस्त हो जाएगा। माइनॉरिटीज कभी तापाशिली या आदिवासी रिजर्वेशन को हाथ भी नहीं लगा सकती हैं। लेकिन भाजपा के शातिर लोग एजेंसियों के जरिए अपने काम करवाते हैं।

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2011 में दाखिल की गई थी याचिका

ममता सरकार के ओबीसी आरक्षण देने के फैसले के खिलाफ 2011 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई थी। इसमें दावा किया गया था कि 2010 के बाद दिए गए सभी ओबीसी सर्टिफिकेट 1993 के पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम को दरकिनार कर दिए गए। याचिका में ये भी कहा गया कि जो लोग वास्तव में पिछड़े वर्ग से थे, उन्हें सही सर्टिफिकेट नहीं दिए गए। इसे लेकर अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को 1993 के कानून के मुताबिक आयोग की सिफारिश विधानसभा को सौंपनी होगी। इसी के आधार पर ओबीसी की नई लिस्ट बनाई जाएगी। तपोब्रत चक्रवर्ती की बेंच ने कहा कि ओबीसी किसे माना जाएगा इसका फैसला विधानसभा करेगी। बंगाल पिछड़ा वर्ग कल्याण को इसकी सूची तैयार करनी होगी। राज्य सरकार उस लिस्ट को विधानसभा में पेश करेगी। जिनके नाम इस लिस्ट में होंगे उन्हीं को ओबीसी माना जाएगा।

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