प्रथम गणतंत्र दिवस समारोह और उसकी झलकियाँ –

भारत को गणतंत्र बने 75 साल हो चुके हैं, इस बार देश में 76वां गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। 26 जनवरी 1950 को भारत ने संविधान अपनाया और गणतांत्रिक देश बना और औपचारिक रूप से ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ। वैसे तो गणतंत्र दिवस पूरे देश में ही मनाया जाता है। पर राजधानी दिल्ली की बात ही कुछ और होती है, रक्षा मंत्रालय द्वारा बहुत धूमधाम से इसका आयोजन किया जाता है, देश के राष्ट्रपति इस दिन राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और राजपथ पर सेना और सशस्त्रबलों के परेड की सलामी भी लेते हैं। इस दिन विभिन्न मंत्रालयों और राज्यों की झांकियां भी निकलती हैं और कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। इस दिन का एक और आकर्षण होता है समारोह का मुख्य अतिथि जो दूसरे देश का राष्ट्राध्यक्ष या सरकार का प्रमुख होता है। इस बार के समारोह के मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतों हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं, पहली बार परेड का गणतंत्र दिवस का आयोजन कहाँ हुआ था, कहाँ परेड निकली थी और प्रथम गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि कौन थे? आइये जानते हैं।

पहली बार गणतंत्र दिवस का आयोजन 26 जनवरी 1950 को हुआ था। इसी दिन डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। उन्होंने संसद भवन के दरबार हाल में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी, इसके बाद पुराने किले से सामने बने इरविन स्टेडियम में साढ़े दस बजे उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और उन्हें 21 तोपों की सलामी भी दी गई। इसके साथ ही उन्होंने देश के पूर्ण गणतंत्र होने की घोसणा की और इसके साथ ही 26 जनवरी 1950 को ही देश का पहला राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया।

राष्ट्रपति का कारवां वायसराय हॉउस से राजसी ठाट-बाट से सजे बग्घी में, घुड़सवार अंगरक्षकों के दल के साथ कनॉट प्लेस और उसके करीबी इलाकों से गुजरते हुए इर्विन स्टेडियम पहुंचा, उस दिन इस कार्यक्रम को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आए थे, करीब 15 हजार लोगों के सामने आधुनिक गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति ने तिरंगा फहराकर परेड की सलामी ली। कैसा दृश्य रहा होगा वो, जिस वॉयसराय हाउस और उसके आस-पास के क्षेत्रों में कभी आम भारतियों का प्रवेश भी वर्जित था, वहां सड़क के किनारे हजारों भारतीय, राष्ट्रपति और उनके निकलने वाले जुलूस को देखने के लिए इकट्ठा थे।

उस वर्ष पहली बार आयोजित हो रहे गणतंत्र दिवस समारोह में सेना और सशस्त्र बलों की परेड राजपथ पर नहीं बल्कि इर्विन स्टेडियम पर निकली थी, इरविन स्टेडियम जिसे अब मेजर ध्यानचंद स्टेडियम के नाम से जाना जाता है। सैन्य परेड निकालने की परंपरा ब्रिटिशकाल से ही थी, लेकिन इसे आज़ादी के बाद भी, आगे जारी रखने का फैसला किया गया। लोकतांत्रिक देश में सैन्य परेड निकालने के पीछे का उद्देश्य अपने प्रतिद्वंदियों को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करवाना था। उस दिन हुई परेड में सशस्त्र सेना के तीनों बलों ने भाग लिया था, इसमें नौसेना, इन्फेंट्री, कैवेलरी रेजीमेंट, सर्विसेज रेजीमेंट के अलावा सेना के सात बैंड भी शामिल हुए थे, 1950 की परेड में 3000 सैनिक शामिल हुए थे। हवाई करतब दिखाने वाले जहाज़ों में तब जेट या थंडरबोल्ट शामिल नहीं थे, बल्कि इनकी जगह डकोटा और स्पिटफ़ायर जैसे छोटे विमानों ने यह कार्य किया था। वाजिब है भारतीय सेनाओं में उस समय बहुत जोश था, तब के सेना प्रमुख फ़ील्ड मार्शल जनरल करियप्पा थे, जब उन्होंने फौजियों से कहा था –”आज हम भी आज़ाद, तुम भी आज़ाद और हमारा कुत्ता भी आज़ाद” उनकी इस बात ने फौजियों में और भी जोश भर दिया था।

हालांकि सेनाओं में तब मोटर साइकिल पर स्टंट की परम्परा नहीं थी और ना ही वो झांकियां थीं, जिनके जरिए देश के अलग-अलग राज्य अपनी विरासत और संस्कृति प्रदर्शित करते हैं, पहली बार 1953 के समारोह में कुछ सैन्य बलों की झांकियाँ निकली थीं, उसके बाद राज्यों की झांकियों को भी परेड में स्थान दिया जाने लगे।

भारत के पहले गणतंत्रदिवस समारोह के मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो थे। सुकर्णो गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव रखने वाले नेताओं में से एक थे। भारत भी गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रमुख सदस्य था, इसीलिए उन्हें आमंत्रित किया गया था, जो भारत और इंडोनेशिया के बीच मैत्री और परस्पर सहयोग का प्रतीक था।

राजपथ पर गणतंत्र दिवस के आयोजन 1954 में प्रारंभ हुआ।


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