Eran Sati Inscription: भारतीय इतिहास में सती प्रथा का जिक्र अत्यंत प्राचीनकाल से रहा है, मध्यकाल में इस प्रथा का बहुत जोर था, 1829 में भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक के प्रयासों से इस कुप्रथा का अंत हुआ। लेकिन भारत का सबसे पहला और प्राचीन शिलालेखीय साक्ष्य, जिसमें सती प्रथा का जिक्र है, वह मध्यप्रदेश के सागर जिले में बीना नदी के निकट एरण से प्राप्त हुआ है। जिसकी खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी।
एरण का इतिहास | History of Eran
एरण भारतीय इतिहास में एक अत्यंत प्राचीन नगर रहा है, जिसका जिक्र कई प्राचीन ग्रंथों में भी हुआ है। इसे एराकिन, एरकिन और स्वभोगनगर भी कहा गया है। गुप्तकाल में यह अत्यंत प्रमुख नगर था, क्योंकि यह मालवा और बुंदेलखंड के मध्य में होने के कारण, इसका राजनैतिक और रणनैतिक महत्व भी रहा होगा। इसीलिए कुछ इतिहासकारों ने तो एरण को गुप्त साम्राज्य की राजधानी भी कहा है। इतिहासकारों के अनुसार संभवतः इसका नाम एरा नाम के नाग के कारण पड़ा था।
कनिंघम ने की थी खोज | Who discovered Eran
एरण की खोज का श्रेय भारतीय पुरातत्व के जनक सर अलेक्जेंडर कनिंघम को जाता है, उन्होंने 1874-75 में इस स्थल की खोज की थी और इसकी पहचान एरण से की थी। कनिंघम की खोज के बाद यहाँ का पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व पता चल पाया और निरंतर यहाँ शोधकार्य हो रहे हैं।
एरण का ऐतिहासिक महत्व | Historical Importance of Eran
हालांकि एरण गुप्त साम्राज्य की राज्यधानी भले ही न रहा हो, लेकिन इतिहासकारों के अनुसार यह एराकिन विषय की राजधानी जरूर था। इसके अलावा यहाँ की खोज के बाद मिले विभिन्न कालखंड के सिक्कों के अनुसार, अनुमान है यह टकसाल भी रही होगी। इसके साथ ही एरण से कई अभिलेख भी प्राप्त हुए हैं, जो भारतीय इतिहास के कालखंड और घटनाक्रम के आकलन में बहुत सहायक हैं।
एरण का पुरातात्विक महत्व | Archaeological importance of Eran
यहाँ से प्राप्त अवशेषों में भगवान विष्णु का ध्वस्त मंदिर और उसके दोनों तरफ वाराह और नृसिंह की प्रतिमा प्रमुख है। वाराह की इतनी विशाल प्रतिमा और कहीं भी नहीं है, इसके समस्त भागों में देवप्रतिमाएं अंकित हैं। इसके सामने ही बुधगुप्त द्वारा स्थापित एक 47 फुट ऊंचा गरुड़ स्तम्भ भी है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यहाँ से कई भग्न शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं, जिनमें प्रमुख हैं-
- शक शासक, श्रीधर वर्मा का अभिलेख
- गुप्त सम्राट, समुद्रगुप्त का अभिलेख
- गुप्त सम्राट, बुधगुप्त का अभिलेख
- हूण शासक, तोरमाण का लेख
- गुप्त सम्राट, भानुगुप्त का अभिलेख (एरण का सतीलेख)
भानुगुप्त का एरण अभिलेख | Eran inscription of Bhanugupta
इन्हीं में से एक है भानुगुप्त का अभिलेख, जिसे एरण का सतीलेख भी कहते हैं। सती प्रथा को बताता, यह सबसे प्राचीन शिलालेख है। इस लेख की खोज का श्रेय भी कनिंघम को ही जाता है, जिन्होंने अपनी 1874-75 या 1876-77 के यात्रा के दौरान इस स्तम्भ लेख को खोजा और 1880 में प्रकाशित करवाया था। बाद में फ्लीट ने इसे संपादित कर पुनः प्रकाशित करवाया था।
एरण का सतीलेख | Sati inscription of Eran
यह अभिलेख गोपराज नाम के एक योद्धा को समर्पित है, जो गुप्त शासक भानुगुप्त का सामंत था और वह उसके साथ शत्रुओं से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हो गया था। जिसके बाद उसकी प्रिय पत्नी अपने पति की अनुगत होते हुए अग्नि प्रवेश करके सती हो गई। इस लेख में बड़े काव्यात्मक रूप से “भक्ता अनुरक्ता च प्रिय च कांता” विशेषण का प्रयोग किया गया है।
अभिलेख की विशेषता | Features of Bhanugupta’s inscription
सात पंक्तियों का यह लेख संस्कृत भाषा में लिखा गया। जबकि इसकी लिपि उत्तरगुप्त काल में प्रचलित ब्राम्ही लिपि है। इस लेख का समय गुप्त समय 191 अंकित है, जिसके अनुसार विद्वानों ने इस लेख को 510 ईस्वी का बताया है, यह लेख गुप्त सम्राट भानुगुप्त का है, और इसमें उसके गोपराज नाम एक सामंत का युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त होने और उसकी भार्या के सती होने का जिक्र है।
शिलालेख का विवरण | Detail of Bhanugupta’s inscription
शिलालेख के अनुसार सुलख वंश में एक राजा (नाम मिटा है, केवल राज समझ में आता है) हुआ, उसका अत्यंत विक्रांत माधव नाम का पुत्र हुआ। उसका प्रख्यात पौरुषवाला गोपराज नाम का पुत्र था, जो शरभराज का दौहित्र (पुत्री का पुत्र)और अपने वंश का तिलक था। जगत-प्रसिद्ध अर्जुन के समान पराक्रमी राजा भानुगुप्त हैं, गोपराज भी उनके साथ आया और मैत्रों को पराभूत किया। युद्ध में लड़ते हुए वह स्वर्ग गया और इंद्र के समान सर्वोत्तम पद पाया। उनकी भक्त, अनुरक्त, प्रिय और सुंदर पत्नी उनकी अनुगत होकर अग्नि प्रवेश कीं।
सती लेख का महत्व | Importance of Sati Inscription of Eran
इस लेख के प्राप्त होने से हमें गुप्तयुग के समाज में स्त्रियों की भूमिका और सामाजिक स्थित को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। इस अभिलेख से सिद्ध होता है उस समय भारत के उच्च सामंतवर्ग में सती प्रथा का प्रचलन रहा होगा।
शिलालेख की ऐतिहासिकता | Historicity of Bhanugupta’s inscription
हालांकि अभिलेख में यह स्पष्ट वर्णित नहीं है, कि गोपराज किसके विरुद्ध लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ लेकिन इतिहासकारों का अनुमान है, संभवतः यह हूणों का आक्रमण रहा होगा जिसका नेतृत्व तोरमाण कर रहा था। हूणों ने उस समय उत्तर और मध्यभारत के बड़े हिस्से में अपना अधिकार कर लिया था। एरण की वाराह मूर्ति और ग्वालियर से उसका शिलालेख भी प्राप्त हुआ है।