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‘उमराव जान’ केवल एक फ़िल्म नहीं है, खूबसूरत एहसास है, जिसे देखा नहीं, महसूस किया जा सकता है।

Umrao Jaan Film: निर्देशक मुजफ्फर अली की रेखा अभिनीत फिल्म ‘उमराव जान’ 27 जून को फिर से रि रिलीज हुई। दरसल 1981 में रिलीज हुई, रेखा अभिनीत फिल्म “उमराव जान” बहुत ही सुपरहिट फिल्म थी। फिल्म में रेखा का जीवंत अभिनय और उनके संवादों की अदायगी, शायराना अंदाज़, नज़ाकत और कथक नृत्य ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस फिल्म का खूबसूरत संगीत, दर्शकों को आज भी सहज ही याद आ ही जाता है।

मिर्ज़ा हादी रुस्वा के उपन्यास पर आधारित है फिल्म

उमराव जान न केवल एक फ़िल्म है, बल्कि यह अवध की गंगा-जमुनी तहज़ीब, लखनऊ की नज़ाकत, नफासत और शायरी से भरी दुनिया की एक शानदार झलक भी है। यह फ़िल्म मशहूर उर्दू उपन्यास “उमराव जान अदा” पर आधारित है, जिसे मिर्ज़ा हादी रुस्वा ने 1899 में लिखा था। इस उपन्यास और उस पर आधारित फ़िल्म ने भारतीय साहित्य और सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी है।

फ़िल्म का निर्माण और निर्देशन

सन् 1981 में प्रदर्शित “उमराव जान” का निर्देशन मुजफ़्फर अली ने किया। फिल्म में रेखा ने शीर्ष भूमिका निभाई, जिनकी अभिनय क्षमता, नृत्य, और अदायगी ने इस किरदार को अमर बना दिया। साथ ही फ़ारुख़ शेख, शौकत आज़मी, राज बब्बर और नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों ने भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं।

कहानी का सारांश

फ़िल्म की कहानी एक युवा लड़की, अमीना जो बाद में ‘उमराव जान’ बनती है। उसकी त्रासदी से शुरू होती है, जिसे बचपन में अपहरण कर लखनऊ के एक कोठे में बेच दिया जाता है। वहां वह नृत्य, शायरी और अदब में प्रशिक्षित होती है और एक प्रसिद्ध तवायफ़ बन जाती है। उसका जीवन प्यार, अस्वीकृति, प्रतिष्ठा और पीड़ा का संगम बन जाता है।

उमराव को नवाब सुल्तान से मोहब्बत होती है, लेकिन उनका रिश्ता समाज और रुतबे की दीवारों से टकराकर टूट जाता है। उमराव की ज़िन्दगी की सबसे बड़ी त्रासदी यही होती है। वह तालीमयाफ्ता, सुन्दर और समझदार होते हुए भी समाज द्वारा केवल एक ‘तवायफ़’ समझी जाती है।

फिल्म का खूबसूरत संगीत

इस फिल्म का संगीत खय्याम ने दिया और गीत कैफ़ी आज़मी ने लिखे। फिल्म के कई गाने सुपरहिट रहे, जो सहज ही लोगों को आज भी याद आ ही जाते हैं। “इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं”, “दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए”,”जुस्तजू जिसकी थी”, “ये क्या जगह है दोस्तों”। फिल्म में ग़ज़लों का प्रयोग बहुत सुंदरता से किया गया है, इन ग़ज़लों को आशा भोंसले ने गाया है और इनकी बदौलत उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। संगीत फ़िल्म की आत्मा है, जो उमराव की भावनाओं को शब्दों और सुरों के माध्यम से जीवंत करता है।

रेखा का जीवंत अभिनय

रेखा का उमराव जान के रूप में अभिनय उनके करियर का सबसे खूबसूरत और चुनौतीपूर्ण किरदार रहा। यह किरदार निभाना रेखा के अभिनय यात्रा का शिखर था। फिल्म में उनकी संवाद अदायगी के साथ ही, उनकी आँखें भी बोलती हैं, जिनमें दर्द और तड़प को देखा जा सकता है। उन्होंने अभिनय में उमराव के हाव-भाव और नृत्य ही नहीं, बल्कि उर्दू के उच्चारण, शायरी के लहज़े और आंखों की ज़ुबान भी आत्मसात की। उनका हर संवाद जैसे एक कविता की तरह महसूस होता है, और उनका हर भाव जैसे एक अधूरी प्रेम कहानी का बयान। उन्हें इस भूमिका के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। दरसल उनके अभिनय ने यह स्पष्ट कर दिया कि एक तवायफ़ केवल शरीर भर मात्र नहीं होती, बल्कि वह आत्मा की वह मूरत होती है, जिसे दुनिया देखना नहीं चाहती।

‘उमराव जान’ फिल्म नहीं एक एहसास

“उमराव जान” न केवल एक तवायफ़ की कहानी है, बल्कि यह उस समाज पर सवाल उठाती है जो कला, नृत्य और साहित्य को तो सराहता है, परन्तु उसी कला की वाहिका को अपवित्र मानता है। यह फ़िल्म महिलाओं की स्थिति, वर्गीय विभाजन और मानवीय संवेदना की पड़ताल करती है। दरसल “उमराव जान” वह फ़िल्म है, जो एक तवायफ़ को सिर्फ़ कोठे तक सीमित नहीं करती, बल्कि उसे एक ‘शायर’, एक ‘कलाकार’, और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण एक ‘नारी’ के रूप में प्रस्तुत करती है, जिसकी आत्मा भी उतनी ही गहरी है जितनी उसकी ग़ज़लें।

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