MP: 40 साल बाद पिता-पुत्र का मिलन, DSP की सोशल मीडिया पोस्ट ने बदली किस्मत

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DSP Santosh Patel Blog News: डीएसपी संतोष पटेल अपनी पत्नी का जन्मदिन मनाने भोपाल के आसरा वृद्धाश्रम पहुंचे थे। वहां उनकी मुलाकात एक बुजुर्ग व्यक्ति से हुई, जो बाकी लोगों से अलग नजर आए। बातचीत में बुजुर्ग ने अपना नाम पूरन सिंह ठाकुर बताया और दावा किया कि वे पूर्व पुलिस सब-इंस्पेक्टर हैं, जिनकी उम्र लगभग 85 साल है।

15 जुलाई 2025 को भोपाल के आसरा वृद्धाश्रम में एक अनोखी कहानी सामने आई, जब डीएसपी संतोष पटेल की एक सोशल मीडिया पोस्ट ने 40 साल से लापता पिता को उनके बेटे से मिला दिया। बेटा, जो दशकों तक यह मानता रहा कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं, आखिरकार अपने जीवित पिता से मिल पाया।

आश्रम में एक अनोखी मुलाकात

डीएसपी संतोष पटेल अपनी पत्नी का जन्मदिन मनाने भोपाल के आसरा वृद्धाश्रम पहुंचे थे। वहां उनकी मुलाकात एक बुजुर्ग व्यक्ति से हुई, जो बाकी लोगों से अलग नजर आए। बातचीत में बुजुर्ग ने अपना नाम पूरन सिंह ठाकुर बताया और दावा किया कि वे पूर्व पुलिस सब-इंस्पेक्टर हैं, जिनकी उम्र लगभग 85 साल है। आश्रम के संचालक मोहन सोनी और व्यवस्थापक समीना मसीह ने बताया कि पूरन सिंह करीब आठ महीने पहले मानसिक रूप से अस्थिर अवस्था में आश्रम आए थे। धीरे-धीरे पता चला कि वे ग्वालियर, सागर और भिंड में पुलिस अधिकारी रह चुके हैं। पटेल ने इस मुलाकात का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा किया, जिसने एक ऐसी कहानी को जन्म दिया, जिसने कई जिंदगियों को छू लिया।

सोशल मीडिया से शुरू हुई खोज

डीएसपी की पोस्ट बैतूल के जागरूक नागरिकों तक पहुंची। रवि त्रिपाठी, कोठी बाजार, बैतूल के निवासी, ने इस वीडियो को गंभीरता से लिया और पूरन सिंह की पहचान के लिए मुहिम शुरू की। रवि ने अपने मित्र गजानन सूर्यवंशी से चर्चा की, जिन्होंने रात 10 बजे वीडियो देखकर एक संदिग्ध पहचान की बात बताई। रवि ने तुरंत इलाके के बुजुर्गों से संपर्क किया। कोठी बाजार के सुरेंद्र सिंह ठाकुर ने बताया कि पूरन नाम का एक फुटबॉल खिलाड़ी उनके क्षेत्र में रहता था, जिसके पिता पुलिस में थे।

इसके बाद रवि ने बैतूल के मशहूर फुटबॉलर इकबाल भाई से संपर्क किया। इकबाल ने पुष्टि की कि यह पूरन सिंह धुर्वे उर्फ पूरन गोंड हैं, जो टेमनी गांव के निवासी थे। रवि टेमनी गांव पहुंचे और वहां प्रेम वर्मा व सेवानिवृत्त एसआई जॉनसन हेराल्ड से मिले। तस्वीर देखते ही जॉनसन ने कहा, “हां, ये पूरन हैं। हम 18-20 साल की उम्र में उनके साथ फुटबॉल खेलते थे।”

पूरन सिंह की जिंदगी का दर्दनाक सफर

जॉनसन ने बताया कि पूरन सिंह का चयन सब-इंस्पेक्टर के रूप में हुआ था। उनकी ट्रेनिंग सागर में हुई, फिर ग्वालियर और भिंड में पोस्टिंग। भोपाल में सरकारी डाक लेकर आए थे, जहां उन्होंने मोटरसाइकिल लोन के लिए आवेदन किया। उसी दौरान उनकी पुश्तैनी जमीन बैतूल में एक डैम परियोजना के डूब क्षेत्र में चली गई। मुआवजा लेने बैतूल लौटे पूरन शराब की लत में फंस गए। उनकी पत्नी की एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गई, जिसके बाद वे मानसिक रूप से टूट गए और लापता हो गए।

आश्रम के लोगों और बैतूल के परिचितों के अनुसार, पूरन सिंह भोपाल के पास एक मुस्लिम परिवार के खेत में 30-35 साल तक रहे। परिवार के मुखिया के निधन के बाद उनके बेटे ने पूरन को आसरा आश्रम में छोड़ दिया। हालांकि, इस अवधि के बारे में पूरन ज्यादा कुछ नहीं बता पाए।

बेटे से मिलन: एक भावुक पुनर्मिलन

पूरन सिंह के लापता होने के समय उनका बेटा राज सिंह केवल डेढ़ साल का था। चाचा ने उसकी परवरिश की, और परिवार ने पूरन को मृत मान लिया। राज सिंह की परवरिश भोपाल और महाराष्ट्र के मुलताई में हुई। अब वह एक मेडिकल स्टोर में काम करते हैं। जब उन्हें पता चला कि उनके पिता जीवित हैं, वे भावनाओं में डूब गए। राज सिंह ने कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि पिताजी मिलेंगे। मुझे बस इतना पता था कि वे कहीं खो गए थे।”

आश्रम का योगदान

आसरा वृद्धाश्रम की व्यवस्थापक समीना मसीह ने बताया कि पूरन सिंह लावारिस हालत में आश्रम लाए गए थे। वे बार-बार कहते थे कि वे पुलिस में थे और ग्वालियर के किसी गांव से हैं, लेकिन ज्यादा जानकारी नहीं दे पाते थे। आठ महीनों तक आश्रम में उनकी देखभाल और डॉक्टरों की मदद से उनकी स्थिति सुधरी, जिसके बाद उनकी कहानी सामने आई।

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