Farmers Day: भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण भूमिका है. कृषि हमारे आर्थिक, सामाजिक, एवं आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 54.6 प्रतिशत आबादी कृषि और उससे सम्बंधित कार्यों में लगी हुई है. वर्तमान कीमतों के अनुसार 1950-51 में भारत की GDP में कृषि का योगदान 51.81 प्रतिशत था, जो वर्ष 2013-14 में 18.20 प्रतिशत रह गया. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार (CSO) वर्ष 2016-17 में कृषि और सम्बंधित क्षेत्रों का योगदान गिरकर 17.4 प्रतिशत रह गया.
नेशनल अकाउंट्स डाटा के अनुसार कृषि अपने बुरे दौर से गुजर रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष औसतन 15,168 किसान आत्महत्या को मजबूर हो रहे हैं। इनमें लगभग 72 प्रतिशत किसान ऐसे छोटे किसानों की है, जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। आज देश में खेती का योगदान कुल अर्थव्यवस्था में 14 प्रतिशत के लगभग होने पर भी इससे 60 गरीब प्रतिशत लोगों को रोजगार मिल रहा है। लेकिन भारत में अभी तक खेती और किसान को अर्थनीति में जितना महत्व मिलना चाहिए था, वह नही मिल पाया है. इसके अतरिक्त छोटे और सीमांत किसानों के पास मोलभाव की शक्ति कम है कयोंकि उनके पास बिक्री योग्य अधिशेष कम है और वे बाजार की कीमत स्वीकार करने वाले होते हैं।
भारत में 60प्रतिशत खेती बारिश पर आधारित है। केवल 40 प्रतिशत खेती के लिए सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। काफी समय से फसलों के सही दाम की मांग की जा रही है। किसानों की को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलना चाहिए। इसलिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली शुरु की गई।
पंजाब, हरियाणा, पूर्वी व उत्तरी राजस्थान, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदर्श और पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि को छोड़कर कहीं भी एमएसपी पर फसल खरीदने की कोई व्यवस्था नहीं है। इस कारण किसान साल भर मेहनत करके फसलें तैयार करता है लेकिन उसे लागत भी नहीं मिल पाती। जिन फसलों का एमएसपी निर्धारित होता है, वह भी किसानों को नहीं मिल पता है।
वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किला के प्राचीर से कहा कि 2022 के अंत तक देश के किसानों की आय दोगुनी हो जायेगी। लेकिन, आज 2022 नहीं 2023 का अंत होने को है। ऐसे में सवाल उठता है कि किसानों की आय दोगुनी हुई? छोटे किसान देश की शान बने क्या?
भारत की एक एजेंसी NSO द्वारा 2012-13 में किसानों की आय को लेकर एक रिपोर्ट जारी किया गया जिसमें किसानों की कुल मासिक आय 6,426 रुपए थी, जिसमे से कृषि द्वारा उसकी कमाई मात्र 3,081 रुपए हुआ करती थी जबकि उस समय एक किसान के ऊपर 47000 रुपए का कर्ज हुआ करता था।
फिर उसी एजेंसी ने 2018-19 में किसानों को लेकर एक और रिपोर्ट जारी किया जो और चौंकाने वाली थी, इसमें बताया गया की अब किसानों की मासिक आय पहले से बढ़ कर 8,337 रुपए हो गई है लेकिन अचरज की बात ये है की अब किसानों की केवल खेती से होने वाली मासिक आय 3081 से 23 रुपए घटकर 3,058 रुपए हो गई है और एक किसान पर 74,121 रुपए कर्ज है। मात्र 6 साल में किसानो के ऊपर 57% कर्ज का रकम बढ़ गया।
ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि क्या देश के अन्नदाता को बस चुनावी जुमलों का गुलाम बना लिया गया है। जब मर्जी हो, जितना मर्जी हो अपने स्वार्थ अनुसार प्रयोग में लाओ और फिर कड़कड़ाते धूप में, ठिठुरती रात में, बाढ़ के लहरों में, भूख के मारे चिल्लाते चीख में और फिर किसी दिन किसी पेड़ के किसी डाल पर एक रस्सी के सहारे लटका हुआ छोड़ दो। परंतु इन सब के बावजूद भी जो लोग आज अपना कान और आंख मूंदे बैठे हुए है, वो सुने-
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।
इस तत्व पर ही कौरवों से पाण्डवों का रण हुआ,
जो भव्य भारतवर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ।।