रीवा। सेन्ट्रल जेल रीवा में बंदी सुधाकर सिंह की मौत बीमारी के कारण संजय गांधी चिकित्सालय में हो गई। इस पर बंदी के परिजनों ने अस्पताल में विरोध जताते हुए पीएम कराने से इंकार कर दिया। परिजन प्रभाकर सिंह ने आरोप लगाया था कि केन्द्रीय जेल अधीक्षक व स्टॉफ को पैसा नहीं मिलने के कारण उन्होनें समय पर उपचार नहीं कराया, जिसके चलते उनके भाई की मौत हो गई। जिसके चलते वह जेल अधीक्षक पर कार्रवाई की मांग को लेकर अड़े रहे। इस पर शनिवार शाम कलेक्टर ने जेल अधीक्षक पर लगे आरोपोंं की पृथक से जांच कराने और पूरे मामले की न्यायिक जांच कराने का आश्वासन दिया है। जिसके पश्चात परिजनों ने पीएम की सहमति दी। इस तरह से करीब 22 घंटे बाद शाम 5 बजे कड़ी सुरक्षा के बीच बंदी का पीएम हुआ।
बता दें कि जेल में बंद सुधाकर सिंह की शुक्रवार शाम को संजय गांधी में उपचार के दौरान मौत हो गई थी, जिसकी जानकारी मिलने पर पहुंचे बंदी के भाई प्रभाकर सिंह ने जेल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए पीएम कराने के इंकार कर दिया था। जिसके बाद शनिवार को पूरे दिन अस्पताल में विरोध प्रदर्शन जारी रहा। इस दौरान कांग्रेस के पूर्व विधायक सुखेन्द्र सिंह बन्ना भी मौके पर पहुंचकर परिजनों से मुलाकात करते हुये प्रशासनिक अधिकारियों से चर्चा की। जिसके बाद कलेक्टर से आश्वासन मिलने के बाद परिजन पोस्टमार्टम के लिये मान गए।
परिजन बोले पांच हजार रूपए देते थे महीना
परिजनों ने आरोप लगाया कि जेल में बंद अपने बंदी भाई की सुरक्षा एवं इलाज के अतिरिक्त जरूरी सामग्री पहुंचाने के लिए पांच हजार रूपए महीना देते थे। इसके एवज उनके पास दवाइयां, फल सहित खाने-पीने की सामग्री पहुंचवाते थे। इसके बाद जब उनकी तबीयत खराब हुई तो उनका इलाज कराने जेल प्रबंधन से निवेदन किया। बावजूद जेल प्रबंधन ने अस्पताल में भर्ती नहीं कराया। इस पर उन्होंने न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत किया। न्यायालय के आदेश पर उनका उपचार चला रहा था, इसी बीच उनके स्वस्थ्य होने की रिपोर्ट पेश कर उसके आधार पर जेल भेज दिया। लेकिन जेल फिर उन्हें उपचार के नहीं मिला और उनकी मृत्यु हो गई। परिजनों ने बताया कि इस संबंध में उन्होनें पुलिस के रक्षित निरीक्षक को भी जानकारी दी थी, तो उन्होंने सिस्टम के तहत काम करने की बात कही है। परिजनों की माने तो जेल अधीक्षक के इशारे पर यह हुआ है।
जेल में बंदियों की मौत पर उठ रहे सवाल
बता दें कि सेंट्रल जेल में इस तरह पहले भी बंदियों की मौत हो चुकी है। ऐसे में अब जेल अधीक्षक पर सवाल उठ रहे है। परिजनों की माने तो जेल में क्षमता से अधिक बंदी है। ऐसे में जो परिजन पैसे देते हैं ताकि उनके बंदी को अलग व्यवस्था मिल सके। नहीं तो बंदी सामूहिक बैरक में रख दिए जाते है जहां उन्हें विश्राम के करने की जगह नहीं मिलती है।
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