Anjaan Death Anniversary :आइए आज बात करते हैं लालजी पांडे की ,जी हां वही जिन्हें हम अनजान के नाम से जानते हैं या कहलें कि जो गीतों की पहचान अपने नाम ‘अनजान’ से बन गये और क़रीब 300 से ज़्यादा फ़िल्मों के लिए 1,500 से ज़्यादा नग़्मों को क़लमबद्ध किया अब ये आलम है कि अनजान के गीत को हर संगीत प्रेमी के दिल की धड़कन पहचानती है ।
गीत लिखने का सिलसिला :-
पर ये सिलसिला शुरू कैसे हुआ? तो, हुआ यूं कि 28 अक्टूबर 1930 को बनारस मे जन्में अंजान को बचपन के दिनों से हीं शेरो शायरी के प्रति गहरा लगाव था इसी शौक को पूरा करने के लिए वो बनारस के
कवि सम्मेलन और मुशायरों में हिस्सा लेते थे ऐसे में उनकी मुलाकात ‘ रुद्र काशिकेय’ से हो गई, जिसके बाद वो काव्य गोष्ठियों में शामिल होने लगे फिर अपनी शायरी को तरन्नुम में पढ़ते – पढ़ते काफ़ी मशहूर भी हो गए लेकिन फिल्मों के बारे में तब सोचा जब गायक मुकेश का गृह नगर बनारस आना हुआ और अनजान के दोस्त शशि बाबू ने मुकेश से फिल्म निर्माताओं से उनकी सिफ़ारिश करने को कहा मुकेश मान भी गए लेकिन इसके बावजूद भी अंजान मुंबई नहीं गए और कुछ वक़्त बाद बीमार पड़ गए उन्हें अस्थमा हो गया था और डॉक्टर्स ने ही उन्हें सलाह दी कि वो कहीं सागर किनारे जाकर रहें और तब कहीं जाकर उन्होंने मुंबई जाने का फैसला लिया। इस तरह क़िस्मत ने उन्हें मुंबई पहुंचा ही दिया ,उन्हें मुंबई में देखकर मुकेश बहुत खुश हुए और अपना वादा निभाया ।
पहला हिट गाना :–
मुकेश जी की सिफ़ारिश से अंजान को पहला ब्रेक 1953 में प्रेमनाथ प्रोडक्शन की फिल्म “गोलकुंडा का क़ैदी ” में मिला , जिसमें उन्होंने ‘लहर ये डोले कोयल बोले …. ‘और ‘शहीदों अमर है तुम्हारी कहानी ….’ गीत लिखे थे।
लेकिन ये फिल्म नहीं चली और अंजान का संघर्ष फिर शुरू हो गया जो सत्रह सालों तक चला । इस बीच उन्हें इतनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा कि जीविका चलाने के लिए बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाई , पत्रिकाओं में लेख भी लिखते ताकि महीने का खर्चा किसी तरह से चलता रहे कई फिल्में भी मिली पर आप कुछ ख़ास कमाल न दिखा पाए उनका उस वक़्त बेहद मशहूर नग़्मा था “मत पूछ मेरा है ,मेरा कौन वतन” फिल्म “लंबे हाथ” से , जिसमें जीएस कोहली का संगीत था
फिर उन्हें रविशंकर जी ने अपनी फिल्म ” गोदान” में मौका दिया।
उन्हें इस फिल्म से वो कमियाबी मिली जिसके वो हक़दार थे ये प्रेमचंद की कहानी पर आधारित क्लासिक फिल्म थी, जिसमें रविशंकर का संगीत था, इसका एक गीत तो हर किसी कि ज़ुबान पर चढ़ गया ,’पिपरा के पतवा सरीखे डोले मनवा….. ‘
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत के थे मुरीद
गोदान की कमियाबी के बाद आपको कई फिल्मो के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गये। जिनमे “बहारे फिर भी आयेगी”, “बंधन”, “कब क्यों और कहां”, “उमंग”,” रिवाज” ,”एक नारी एक बह्चारी” और “हंगामा” जैसी फिल्में शामिल थीं ।
जिनके गीतों ने आपको फिल्म जगत में बतौर गीतकार स्थापित कर दिया ,कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में आपके लिखे बोलों का ताना बाना तो आज भी एक अलग छाप छोड़ता है हमारे दिलों में । वह लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी के संगीत बहुत बड़े प्रशंसक या कहलें दीवाने थे। समीर कहते हैं कि पिता जी अक्सर कहते थे कि अगर तुमने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और आर डी बर्मन के साथ काम नहीं किया तो समझ लो कि ज़िंदगी में बहुत कुछ मिस कर गए।
ग़ैर फ़िल्मी और भोजपुरी गाने भी लिखे :-
1960 के दशक में, अंजान ने श्याम सागर द्वारा रचित , कई ग़ैर -फ़िल्मी एल्बम के भी गाने लिखे जिन्हें मोहम्मद रफ़ी , मन्ना डे और सुमन कल्याणपुर ने अपनी आवाज़ दी, इसमें रफ़ी साहब का गाना ‘ मैं कब गाता…’ उस समय काफ़ी हिट हुआ था। अंजान ने 1970 के दशक के अंत में “बलम परदेसिया ” जैसी हिट फ़िल्म के साथ भोजपुरी फ़िल्मों की दुनिया में भी प्रवेश किया जिनमें ‘ गोरकी पतरकी के मारे गुलेलवा..’ गाना काफ़ी चर्चित हुआ और यहीं से उनके बेटे समीर और आनंद-मिलिंद भी उनके साथ फिल्मों में जुड़े, अनजान को अपनी मातृभाषा भोजपुरी से और बनारस से बहोत लगाव था
भी ।
स्वच्छता अभियान का हिस्सा बना उनका गीत :-
अंजान लगभग 20 साल तक हिंदी फिल्मों को अपने गीतों से पुर असर अंदाज़ देते रहे उनकी कविताओं में भोजपुरी भाषा और हिंदी के गढ़ उत्तर प्रदेश के लोकाचार और संस्कृति का रंग था। अपने पिता जी के बारे में बात करते हुए समीर ने बताया था कि …वो “खइके पान…”, “बिना बदरा के बिजुरिया…” और इसी तरह के और गीतों को बड़ी आसानी से लिखते थे, उनके अपने पसंदीदा गानों में, “अपने रंग हज़ार…”,”बदलते रिश्ते” फिल्म के गीत और “गंगा की सौगंध” का ‘ मानो तो मैं गंगा मां हूं मानो तो बहता पानी… ‘ और ‘ चल मुसाफ़िर…’ शामिल थे।
आपको ये भी बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के स्वच्छता अभियान में ‘ मानो तो मैं गंगा मां हूँ …,’ गाना शामिल किया गया था।
लालजी पांडे से अनजान क्यों हो गए :-
उन्होंने अपना तख़ल्लुस अनजान क्यों रखा ये सवाल अक्सर सबके मन में आता है इसलिए एक इंटरव्यू भी पूछा गया तो उन्होंने बताया था कि अनजान दो तरह के होते हैं एक जो खुद कुछ नहीं जानता दुनिया से बेख़बर होता है और दूसरा जिसे दुनियाँ नहीं जानती। मै दुनिया को बताना चाहता हूं कि मैं वो अनजान हूं जो चाहता है कि लोग मुझे जाने और मैं दुनिया को कुछ जानूं, और मैं सबके लिए जान पहचाना बन जाऊं ,इसलिए मैंने अपना नाम “अनजान” रखा।’
अपने गीतों से अमिताभ और मिथुन के करियर को दी उड़ान :-
अनजान के गीतों को ग़ौर से सुनने पे लगता है मानों उनकी कविता लय में बंधकर और आकर्षक हो गई हो , अमिताभ बच्चन पे फिल्माए गए कुछ गाने तो ऐसे हैं ,जिनका हर शब्द एक अनमोल मोती की तरह पिरोया गया हो ,
1976 में “दो अनजाने ” फिल्म गीत ‘ लुक छिप लुक छिप जाओ न…’ को सुनकर आप भी ये महसूस कर सकते हैं या फिर” हेरा फेरी” फिल्म का गीत ‘ बरसों पुराना ये याराना …’ या “खून पसीना “फिल्म का शीर्षक गीत और ‘ बनी रहे जोड़ी राजा रानी की …’ कुछ और आगे बढ़े तो फिल्म “मुकद्दर का सिकंदर ” में ‘ रोते हुए आते हैं सब…’ ,’ओ साथी रे…’, ‘ प्यार ज़िंदगी है…’, ‘ दिल तो है दिल..’, और फिल्म “डॉन ” के गाने तो उनके लिए मील का वो पत्थर बन गए जिन्हे भुलाया ही नहीं जा सकता पर जो सबसे ज़्यादा हिट हुए उनमें महानायक अमिताभ बच्चन पर फिल्माए गए ज़्यादा गीत रहे , जो आपको भी याद होंगे जी हां ‘ खइके पान बनारस वाला…’, ‘ ई है बंबई नगरिया…’, ‘ जिसका मुझे था इंतज़ार…’, “लावारिस “फिल्म के गीत ‘ जिसका कोई नहीं …’, ‘ कब के बिछड़े…’. उनके गीतों से सजी कुछ और फिल्मों को हम याद करें तो हमारे ज़हन में दस्तक देती हैं ,”दो और दो पांच” , “याराना”, “नमक हलाल” और “शराबी” । ये वो गीत हैं जिन्होंने अनजान के साथ अमिताभ बच्चन की कमियाबी में भी चार चांद लगा दिया। 1980 का दशक उनके लिए कुछ और खास था क्योंकि इस वक्त, मिथुन चक्रवर्ती की “डिस्को डांसर” और ” डांस डांस “जैसी फिल्मों के गाने लिखने के लिए वो सबके पसंदीदा गीतकार बन गए थे इस दशक में उनके गानों से संवरी फिल्में थीं – आंधी तूफान, इल्ज़ाम, आग ही आग, पाप की दुनिया और टार्ज़न के गाने आज भी याद किए जाते हैं।
आख़री वक़्त तक नहीं छोड़ा क़लम का साथ :-
90 के दशक की शुरुआत से ही उनकी तबियत खराब रहने लगी थी इसके बावजूद उन्होंने “ज़िंदगी एक जुआ “,” दलाल” , “घायल ” के कुछ गाने लिखे और 1990 का चार्टबस्टर गाना “गोरी हैं कलाइयां” फिल्म “आज का अर्जुन” के लिए लिखा तो वहीं अपनी इस दिलनशीं नग़्मों की फेहरिस्त को पूरा करते हुए अपने गीतों से सजी आखिरी हिट फिल्म दी ,”शोला और शबनम “।
1990 के दशक में उनके गीतों से सजी कुछ और फिल्में हैं जिन्होंने अपने गीतों से उनकी अमिट छाप छोड़ी है जैसे इंसानियत , पुलिस और मुजरिम , फर्स्ट लव लेटर , आंधियां , फूल बने अंगारे ।
यूं तो अंजान 1997 को वो इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए पर अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा गीतों में बस कर ज़िदा रहेंगे ।
यहां आपको ये भी बताते चलें कि उनकी कविताओं का संकलन , गंगा तट का बंजारा (गंगा के किनारे से एक जिप्सी) अमिताभ बच्चन के हाथों रिलीज़ हुई है जिसे आप पढ़ सकते हैं या फिर आज उनकी याद में फिल्म
“याराना” का एक गीत गुनगुना के देखिए और महसूस करिए क़लम के इस जादूगर का जादू :-
” छूकर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा …… “