Event on Birsa Munda Jayanti in Rewa: शासकीय कन्या महाविद्यालय, रीवा में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल बतौर अतिथि शामिल हुए और उन्होंने भगवान बिरसा मुंडा की तस्वीर पर पुष्प अर्पित करते हुए कार्यक्रम का शुभारंभ किया। उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने अपने संबोधन में भगवान बिरसा मुंडा के बलिदान को याद करते हुए युवाओं से आंतरिक और सामाजिक विकृतियों के खिलाफ लड़ने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आज़ादी की लड़ाई के लिए मैदान में उतरने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन हमें विकृतियों जैसे नशाखोरी और मानवीय अवगुणों के खिलाफ लड़ना होगा। उन्होंने कहा कि, “हमें बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, बहुत जल्दी हम ईर्ष्या करने लगते हैं और लोगों का नुकसान करने के लिए चल पड़ते हैं। हमें इसे समाप्त कर मानवीय गुणों को विकसित करना होगा।” उन्होंने प्रश्न किया, “क्या हमारे अंदर दया है? परोपकार की भावना है? किसी ने गलती कर दी तो क्या उसको क्षमा करने की हमारे अंदर क्षमता है? उसे सही रास्ते में ले जाने के लिए क्या हम अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं? यह आज के समय की सबसे बड़ी चुनौती है।”
बिरसा मुंडा का ऐतिहासिक योगदान
उपमुख्यमंत्री ने भगवान बिरसा मुंडा के कार्यों और संदेशों को याद करते हुए उन्हें भारतीय आदिवासी सूचना संग्राम सेनानी बताया, जिन्होंने देश को एक नई ऊर्जा दी। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को झारखंड के उलिहातू गांव में हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया, आदिवासी समाज को एकजुट किया, उनके अधिकारों की रक्षा की और धार्मिक सुधारों को बढ़ावा दिया। उन्होंने बताया कि अंग्रेज हुकूमत भारतीय समाज को ईसाई धर्म में बदलने का एक सुनियोजित अभियान चला रही थी, जिसे भगवान बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के बीच अलग जगाकर कुचल दिया। यह अंग्रेजों की कमर तोड़ने के लिए बहुत कारगर साबित हुआ।
शुक्ल ने कहा कि मात्र 25 वर्ष की आयु में इस दुनिया को छोड़कर जाने के बावजूद उन्होंने इतना कुछ कर दिया कि देश को आज़ाद करना हमारे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए आसान हो गया। इसलिए देश उनके चरणों में नतमस्तक है। कार्यक्रम के दौरान, उपमुख्यमंत्री ने महाविद्यालय में चल रहे सिलाई प्रशिक्षण केंद्र की सराहना की। उन्होंने बताया कि यह बहुत अच्छी योजना है, जिसके तहत प्रशिक्षण पाने वाली बच्चियों को बेंगलुरु और भोपाल की बड़ी गारमेंट फैक्ट्रियों में सीधे नौकरी मिल रही है, जिसमें ₹15,000 और खाना-पीना, आना-जाना अलग से शामिल है। आठवीं-नौवीं पास करके घर बैठी बच्चियों के लिए यह केंद्र आत्मविश्वास और उत्साह का नया स्रोत बना है। उन्होंने स्किल डेवलपमेंट से जुड़े ऐसे सेंटरों को आज के समय की बड़ी आवश्यकता बताया।
