EPISODE 55: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी की वस्तुए या बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

पद्मश्री बाबूलाल दहिया

कल हमने पनही, जोतावर, तरसा,चमोधी आदि चर्म वस्तुओं की जानकारी दी थी। आज उसी क्रम में कुछ अन्य वस्तुओं की जानकारी भी दे रहे हैं।

नाई के छुरा परताने की चर्म पट्टिका
यह एक बालिन्स लम्बी और 4 इंच चौड़ी चर्म पट्टिका होती थी जिसमें छुरे को परता कर नाई उसकी धार ठीक करते और फिर किसानों की दाढ़ी आदि बनाते थे। इसे नाई समुदाय ( बाधी) कहता था। पर अब पुराने उस्तरे समाप्त होजाने के कारण यह भी चलन से बाहर है।

बकरी के चर्म की आटा चालने की चलनी

प्राचीन समय में जब आज जैसी स्टील की चलनी नही थीं तब 50 के दशक तक बकरी के चमड़े की आटा चालने के लिए एक चलनी हुआ करती थी। पर इसे बकरे को मार कर उसका मांस बेचने वाला चिकबा समुदाय बनाकर किसानों को उपलब्ध कराता था। उस चलनी को अक्सर घरमें घुस कुत्ते लेजाकर चबा जाते थे। शायद इसी से यह लोकगीत प्रचलित था कि —

काहे म चालव पिसान,
कुकुर चलनी मोर लइगा।

बाद में 50 के दशक में टीन की चलनी आजाने से वह पूर्णतः चलन से बाहर हो गई थी। पर अब तो वह कल्पना से भी बाहर है।

बैल गाड़ी हांकने का चपका

यह दो हाथ की हकनी लाठी में लगा तीन पर्त का चमड़े का एक चाबुक होता है जिससे बैल गाड़ी में जुते बैलों को हांका जाता है। पर अब यह भी चलन से बाहर होता जा रहा है।

ढोलक मढ़ने का चमड़े का पूरा


यह ढोलक को मढ़ने के लिए एक फीट लम्बे चौड़े बकरे के चमड़े के पूरे होते हैं जिनसे ढोलक को दोनों ओर मढ़ा जाता है। यह अब भी चलन में हैं।

नगड़िया मढ़ने का पूरा


इसके लिए भैंस य बैल के मजबूत चमड़े को पकाकर चर्म शिल्पी नगड़िया में मढ़ते हैं। परन्तु नगड़िया को कलात्मक ढंग से मढ़ने वाले अब इने गिने कलाकार ही रह गए हैं।

चमड़े का झोला

यह चमड़े का लौह वस्तुओं के रखने का एक झोला होता था जिसमें कारीगर अपने लोहे के औजार आदि रखते थे। क्योकि कपड़े के झोले में रखने से वह जल्दी ही फट जाते थे।
पर अब चलन से बाहर हैं।

आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ,इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।
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