EPISODE 52: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी की वस्तुए या बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

babu lal dahiya

खेती किसानी में पहले कई जगह रस्सी का प्रयोग होता था। गाय बैलों को गेरमा से बांधा जाता। उनके मुंह में मोहरा और सींग में सिंगौटी बांधी जाती। गहाई आदि में भी रस्सी गड़ाइन लगती थी। उधर कुँए में मोट चलाने एवं ढेकली से पानी निकालने में भी रस्सी का ही उपयोग था। यह समस्त रस्सियां सन ,अम्बारी, महरोइन , महुला के छाल की बनती थीं तो मोहरा सिगौटी आदि कुछ बैलों के पूँछ के बालों से भी बनाई जाती थीं। पर इन सब को किसान खुद ही ढेरा से सुतली कात ऐंठ भांज कर बना लेता था। वर्तमान में यदि कुछ हैं भी तो सन अम्बारी के बजाय कृत्तिम रस्सी नाइलोन की। पहले किसानों द्वारा स्वतः बनाने वाली यह तमाम वस्तुएँ इस प्रकार हुआ करती थीं।

गड़ाइन

इसे बनाने के लिए अम्बारी, सन अथवा बैलों के पूँछ के बालों को लेकर पहले ढेरा से कातकर सुतली बनाई जाती। फिर उसे भांज मोटी रस्सी नुमा बना तीन य चार गेरमा के आकार की फूंदी लगा दी जाती थीं। इस गड़ाइन में तीन य चार बैलों को एक साथ नध कर खलिहान में घुमाया जाता था।
गेरमा के उन अलग- अलग जुड़े तीन य चार भाग को( कानी ) कहा जाता था कि ” हमारी गड़ाइन तीन या चार कानी की है।”

नारा “रसरी “

नारा य रस्सी कई तरह की मोटी य पतली बनती थीं। पतले किन्तु मजबूत बने नारे में बैलों को बांध कर खेत खलिहान ले जाया जाता । नारे को ही हल जुएं में फंसा कर हल चलाया जाता । उस नारे को (जोतनहा) नारा कहा जाता था। साथ ही यह बहु उद्देशीय नारा लॉक बांध कर लेजाने और खरिया में बांधने के काम भी आता था। नारा 7-8 हाथ लम्बा और लगभग एक इंच मोटा होता था जिसे तैयार करने के लिए पहले अम्बारी य सन की सुतली ढेरा द्वारा काती जाती फिर दो पर्त में बर कर भांजी जाती तब यह काम के लायक तैयार होता । पर अब पूर्णतः चलन से बाहर है।

गेरमा

इसे बनाने के लिए पहले सन य अम्बारी को सुतली के रूप में ढेरा से काता जाता था।फिर दो पर्त में बर कर तीन पर्त में भांजा जाता और गाँठ लगा गाय बैलों के गले में बांधने के लिए फूंदी बनाई जाती । इसे सन अम्बारी के साथ – साथ महुला एवं महलोइन के छाल की सुतली से भी बनाया जाता था। पर अब बाजार में कृत्तिम रस्सी के गेरमा ही उपलब्ध हैं।

भारकस

यह बैल गाड़ी आदि में भरी गई अनाज की लाँक बांधने का मोटा रस्सा होता था जो काफी मजबूत बनाया जाता था। इसे बनाने के लिए सर्व प्रथम सन य अम्बारी की ढेरा में मोटी सुतली काती जाती थी।फिर 3 पर्त सुतली को बर ऐंठ कर तीन पर्त में उसे भांजा भी जाता था। इस तरह 9 पर्त की सुतली से यह भरकस नामक मोटा रस्सा बनता जो बैल गाड़ी आदि में लादी गई वस्तुओं के कसाव के काम आता था।

गोफना

यह हाथ से बरी गई अम्बारी की सुतली को बुनकर बनाया जाता था जो ज्वार, गेहूं ,मक्का, काकुन आदि अनाजों के दाने चुगने आई चिड़ियों एवं अनाज या आम अमरूद खाने आए बन्दरों को मिट्टी की डली रख कर भगाने के काम आता था। उस गोफने में रख कर पत्थर के छोटे टुकड़े एवं मिट्टी की डली दूर तक फेंकी जा सकती थी।

तरसा या मोट की रस्सी

यह एक मोटा रस्सा होता था जो मोट तरसा आदि चलाने के लिए काफी मजबूत बनाया जाता था। इसे बनाने के लिए सर्व प्रथम सन या अम्बारी की ढेरा में मोटी सुतली काती जाती। फिर उस सुतली को 3 पर्त बर ऐंठ कर भांजा जाता। इस तरह 9 पर्त की सुतली से यह पानी खींचने वाला मोटा रस्सा बनकर तैयार होता था। पर अब चलन से बाहर है।

आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।

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