EPISODE 39: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी की वस्तुए या बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

Babulal Dahiya

पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में हम आज आपके लिए लेकर आए हैं, कृषि आश्रित समाज के भूले विशरे लौह उपकरण (39 किस्त) कल हमने फरुहा,कुल्हाड़ी, खुरपा आदि कुछ लौह उपकरणों की जानकारी दी थी।आज उसी श्रंखला में कुछ अन्य उपकरणों की जानकारी प्रस्तुत करेंगे।

कुल्हाड़ा

इसका आकार कुल्हाड़ी की तरह ही होता है पर बनावट उससे बड़ी होती है। क्योकि किसान इसे आँधी आदि में गिरे मोटे पेड़ों के काटने में उपयोग करता है। इसमें बाँस कारी आदि मजबूत लकड़ी का ढाई फीट लम्बा बेंट डाला जाता है। कुल्हाड़ा प्रचलन में तो अभी भी है पर बैटरी चलित आरा मसीन ने उपयोग में कमी ला दी है।

अमकटना सरौता

यह बड़े सरौता के बराबर ही होता है । पर इसके ऊपर का भाग लोहे का एवं नीचे का लकड़ी के बेंट युक्त होता है जिससे उस खाँचा दार लकड़ी में रख आम को अचार बनाने के लिए काटा जा सके। यह अभी भी प्रचलन में है।

कुदारी

यह सूखी जमीन की खुदाई, मेंड़ चढ़वाई आदि कार्य के लिए बना एक लोह उपकरण है। इसकी लम्बाई लगभग 1फीट होती है पर ऊपर का भाग मोटा एवं बेंट डालने के लिए वहीं एक छिद्र होता है। जबकि नीचे की नोक जिससे जमीन की खुदाई होती है वह 2 इंच की ही होती है। इसमें काम करने के लिए 3-4 फीट लम्बा कारी,धबई य बाँस का एक मोटा सा बेंट डाला जाता है। पर अब चलन से बाहर होता जा रहा है.

गड़ासा

इसकी धार फरसा की तरह ही होती है।पर इसके पीछे के गड़ास की तरह बने दो पतले भागों को पतला चोंखा बना एक मोटी सी 6 फीट की लाठी में गड़ा दिए जाते हैं जिससे दूर से ही वार किया जा सके। इसे प्राचीन समय में जब अकेले दुकेले चलते हमेशा चोर लुटेरों और जंगली जानवरों का खतरा बना रहता था तब लोग खेत खलिहान जाते समय अपनी सुरक्षा के लिए इसे हाँथ में लेकर चलते थे। पर अब चलन से बाहर है।

फरसा

प्राचीन समय में गांव के पास से ही घने जंगल हुआ करते थे अस्तु लोग अपनी सुरक्षा के लिए कुछ न कुछ अस्त्र हाथ में अवश्य रखते थे।इसके लिए फरसा बहुत उपयोगी माना जाता था। फरसा कुल्हाड़ी की तरह बनता है पर उसकी धार लगभग 9 इंच चौड़ी होती है। साथ ही कुल्हाड़ी से कुछ अधिक लम्बा बेंट भी रहता है।

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