EPISODE 15: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी की वस्तुए या बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में आज हम लाए हैं, कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी के उपकरण या बर्तन (15वी किस्त) बिगत 7–8 दिन से हम निरन्तर मिट्टी के बर्तन एवं उपकरणों की जानकारी देते रहे हैं आज मिट्टी शिल्पी के वस्तुओं की अंतिम प्रस्तुति है।

हुक्का

कहते हैं तम्बाकू पहली बार बादशाह जहांगीर के समय अंग्रेजों द्वारा भारत लाई गई और उनने जहांगीर को हुक्का समेत पीने के लिए तम्बाकू भेट किया। पर वह हुक्का बाद में राज दरबार और सामंतों से होता हुआ किसानों के चौपालों तक पहुँच गया । फिर क्या था? लोगों की जरूरत को महसूस करते हुए मिट्टी शिल्पियों ने ग्रामों में भी लोगों के लिए एक अलग तरह का हुक्का बनाकर तम्बाकू पीने के लिए आसान कर दिया जो उस हुक्के से छोटा एवं चिलम से कुछ मोटा होता है।

चिलम


जैसा कि हमने पहले ही बताया है कि तम्बाकू और हुक्का अंग्रेज ब्यापारियों ने लाकर बादशाह जहांगीर को दिया। बाद में वह ग्रामीण क्षेत्रों तक फैली और लोग उसे आम अथवा तेंदू आदि के पत्ते की चोगी बनाकर भी पीने लगे। पर उसमें यह दिक्कत थी कि उसके लिए बार – बार चोगी बनाना पड़ता रहा होगा जिसका सरली करण करते हुए मिट्टी शिल्पियों ने एक ऐसा मिट्टी का उपकरण बना दिया जिसमें भर कर बार-बार तम्बाकू को पिया जा सकता था।और उसका नाम चिलम रख दिया। चिलम लगभग तीन इन्च लम्बी आधा इन्च मोटी गोल बनती है। उसमें तम्बाकू रखने वाला स्थान चौड़ा नीचे सकरा और आर पार एक छिद्र होता है। इसके ऊपर आग रखने से हवा खीचने पर मुँह में धुंआ आता रहता है। प्राचीन समय में जब गांजा प्रतिबंधित नही था तो लोग इसी में रखकर गाँजा भी पीते थे। पर अब धीरे – धीरे चिलम का प्रचलन भी कम होता जाता है

घरिया-खपरा


घरिया और खपरे दोनों का उद्देश्य एक ही होता है जिनकी छबाई कर देने से छप्पर क पानी घर के अन्दर न जाय। पर बनावट भिन्न-भिन्न होती है। खपरों की पंक्ति छप्पर में पहले छाई जाती है फिर दो खपरों के पंक्ति को ढकने के लिए उनके ऊपर घरिये की एक पंक्ति रहती है। बनाते समय भी घरिये को पहले सपाट पारा जाता है। बाद में कुछ सूख जाने पर मिट्टी के एक साँचे में रख नली नुमा बना दिया जाता जिससे वर्षा का पानी पहले घरिये में आए बाद में खपरे में होकर बाहर चला जाय। परन्तु खपरा एक फीट लम्बा चार इंच चौड़ा एक छोर में चौड़ा तथा आंगें की ओर कुछ पतला बनाया जाता है। साथ ही अगल बगल से पानी बह कर न जाय अस्तु आधा इंच की बाट भी रहती है।

मकान का कलश

प्राचीन समय में जब कच्चे खपरे वाले मकान बनते थे तब छप्पर के ज्वाइंट में दोनों ओर कलसे रखे जाते थे । इनके रखने से तीन ओर से की गई छबाई के मध्य से जहां घर के अन्दर पानी रिस- रिस कर नही आता था वही घर के छप्पर की खूबसूरती भी बढ़ जाती थी। यह कलश मुकुट की तरह गुम्मद दार बनते थे। मिट्टी शिल्पी इन्हें बगैर चाक हाथ से ही बनाते थे।और फिर सुखा कर आबा में पका लेते थे पर अब चलन से बाहर हैं।

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