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Pune’s Gram Panchayats: बाहरी मुसलमानों की मस्जिदों में एंट्री पर रोक, बढ़ी चिंता

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Pune’s Gram Panchayats: महाराष्ट्र के पुणे जिले की कुछ ग्राम पंचायतों ने मिलकर एक विवादित लेकिन अहम फैसला लिया है। इन पंचायतों के अनुसार, अब बाहरी मुसलमानों को गांव की मस्जिदों में नमाज अदा करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। यह निर्णय मुंशी तहसील के अंतर्गत आने वाले कई गांवों—जैसे कि घोटावडे, पिरंगुट और वडकी की पंचायतों द्वारा लिया गया है। इस फैसले के समर्थन में गांवों में होर्डिंग्स और बैनर भी लगाए गए हैं, जिनमें यह साफ तौर पर लिखा गया है कि गांव की मस्जिदों में केवल स्थायी निवासी मुसलमान ही नमाज पढ़ सकते हैं।

ग्राम पंचायतों का कहना है कि यह फैसला स्थानीय भीड़ को नियंत्रित करने और गांव में शांति व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है। विशेष रूप से शुक्रवार के दिन मस्जिदों में बाहरी लोगों की भीड़ बढ़ जाती है, जिससे कानून व्यवस्था को खतरा हो सकता है। इसी को देखते हुए ग्राम सभा ने तय किया कि अब गांव की मस्जिदों में सिर्फ स्थानीय निवासी ही नमाज अदा कर सकेंगे।

पिरंगुट के पुलिस पाटिल प्रकाश पावले ने ग्राम सभा के इस फैसले की पुष्टि की और बताया कि यह फैसला क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है। उनका कहना है कि यह सामूहिक निर्णय है, जिसे ग्राम सभाओं के सहमति से लागू किया गया है।

हालांकि इस फैसले ने मुस्लिम समुदाय में असंतोष और डर पैदा कर दिया है। लावले गांव के रहने वाले शाइस्ताखान इनामदार ने कहा, “हम पहले से ही गांव की मस्जिद से दूर एक शेड में नमाज पढ़ते थे क्योंकि मस्जिद मंदिर के पास थी। अब इस नए फैसले के बाद डर और बढ़ गया है, खासकर पहलगाम आतंकी हमले के बाद।”

सुन्नी मस्जिद ट्रस्ट, पिरंगुट के अध्यक्ष नबीलाल शेख ने इस फैसले पर निराशा जताई। उन्होंने बताया कि यह मस्जिद पूरे तालुका की सबसे बड़ी मस्जिद है, जहां जुमे की नमाज के लिए आस-पास के गांवों से बड़ी संख्या में मुसलमान आते हैं। उन्होंने कहा, “हमारे रिश्तेदार और दोस्त भी जुमे के दिन यहां आते हैं। अब उन्हें मस्जिद में आने से रोका जाएगा, जो बहुत दुखद है। 76 साल की उम्र में मैंने ऐसा ध्रुवीकरण पहले कभी नहीं देखा।”

नबीलाल शेख ने यह भी कहा कि उनका परिवार इस क्षेत्र में दशकों से रह रहा है और हमेशा सभी धार्मिक एवं सामाजिक आयोजनों—जैसे गणपति मीरावनुक—में भाग लेता रहा है। इस फैसले से ना केवल समुदाय के रिश्ते कमजोर होंगे, बल्कि सामाजिक ताना-बाना भी प्रभावित हो सकता है।

इस मामले में पुलिस निरीक्षक अनिल विभूति ने बयान दिया है कि अब तक किसी मुस्लिम नागरिक की तरफ से इस फैसले को लेकर कोई औपचारिक शिकायत नहीं की गई है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह फैसला ग्राम पंचायत और स्थानीय समाज का सामूहिक निर्णय है, तो पुलिस को इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं दिखती।

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