Anand Ji Birth Anniversary | न्याज़िया बेग़म: एक ऐसा सुरीला सफर जिसकी रौ में हम कल भी बह रहे थे और आज भी बह रहे हैं, जिसे कई बार अलग अंदाज में भी पेश किया गया हमारी युवा पीढ़ी के लिए, और वो जादू उनके भी सर चढ़ कर बोला ये एक ऐसा संगीत था जिसने कई नायक नायिकाओं को सच में हीरो और हीरोइन बना दिया उनके गीतों या म्यूज़िकल एंट्री के ज़रिए और वो सफलता के नए आयाम तय करते गए, ये गीत किसी के भी रहें हों पर संगीत था एक जोड़ी का जो एक दूसरे के ज़िक्र के बिना अधूरे थे, उनके संगीत से सजी कुछ ख़ास फिल्मों को हम आपको याद दिलाए देते हैं तो आपको उनका नाम याद आ जाएगा डॉन, बैराग, सरस्वतीचंद्र, कुर्बानी, मुकद्दर का सिकंदर, लावारिस, त्रिदेव और सफर इसके अलावा उन्होंने कोरा कागज़ के लिए सन 1975 का सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता।
जी हां हम बात कर रहे हैं दो भाइयों और संगीतकार जोड़ी,कल्याण जी आनंद जी की, जिनमें कल्याण जी विरजी शाह का जन्म 30 जून को हुआ था और आनन्द जी विरजी शाह का 2 मार्च को, शुरुआत में आप दोनों भाइयों ने जिन गुरु जी से संगीत सीखना शुरू किया, वो उनके पिता के बिल न चुकाने के बदले में संगीत की शिक्षा देना चाहते थे हालांकि संगीत के गुण आप दोनों में पहले से विद्यमान थे, क्योंकि उनके परदादा लोक संगीतकार थे और उन्होंने अपनी ज़िंदगी का ज़्यादा वक्त मुंबई के गिरगांव इलाके में मराठी और गुजराती माहौल में आसपास रहने वाली कुछ प्रतिष्ठित संगीत प्रतिभाओं के बीच बिताया था। आपके पिता कच्छ के एक व्यवसायी थे और इसी सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए आप दोनों भी कुंडरोदी गांव से मुंबई चले आए जहां क़िस्मत ने करवट बदली और आप दोनों चल दिए संगीत साधक बनने की राह पर।
कल्याणजी आनंदजी जी के संगीत की जुगलबंदी
कल्याणजी ने एक संगीतकार के रूप में अपना करियर क्लैवियोलिन नामक एक नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के साथ शुरू किया। जिसका उपयोग प्रसिद्ध “नागिन बीन” के लिए किया गया था, जिसका इस्तेमाल 1954 की फिल्म नागिन में किया गया था, जिसमें हेमंत कुमार का संगीत था। इसके बाद कल्याणजी ने अपने भाई आनंदजी के साथ मिलकर कल्याणजी वीरजी एंड पार्टी नामक एक आर्केस्ट्रा समूह शुरू किया, जो मुंबई के अलावा बाहर भी संगीत कार्यक्रम आयोजित करता था। ये भारत में लाइव म्यूज़िकल शो आयोजित करने की पहली कोशिश थी। संगीतकार के रूप में कल्याणजी आनंदजी का मुंबई फिल्म उद्योग में आगमन उनकी ज़िंदगी का एक ख़ास और जोखिम भरा मोड़ था क्योंकि ये वो दौर था जब एसडी बर्मन, हेमंत कुमार, मदन मोहन, नौशाद, शंकर-जयकिशन और ओपी नैय्यर जैसे बड़े संगीत निर्देशक हिंदी फिल्म संगीत पर न केवल राज कर रहे थे बल्कि इसे स्वर्णिम काल भी बना के रखा था इसलिए आप दोनों के लिए अपनी जगह बनाना बहुत कठिन था पर इसके बावजूद भी न केवल वो इस प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनें बल्कि सफलता भी प्राप्त की।
1959 की फिल्म सम्राट चंद्रगुप्त कल्याणजी वीरजी शाह की बतौर संगीतकार पहली फिल्म थी, उनके संगीत से सजे “चाहे पास हो” जैसे गाने तो आज भी याद किए जाते हैं, इसके बाद उन्होंने पोस्ट बॉक्स 999 जैसी और भी फिल्मों के लिए संगीत रचना की, इसके बाद ही आनंद जी, सट्टा बाज़ार और मदारी में कल्याण जी के साथ एक जोड़ी के रूप में जुड़ गए। 1960 की फिल्म छलिया उनकी सबसे पहली बड़ी हिट थी। 1965 में, दो और फिल्मों ने पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए जो थी हिमालय की गोद और जब जब फूल खिले और शायद यही वो फिल्में थीं जिन्होंने बतौर संगीतकार जोड़ी आप दोनों को फिल्म जगत में स्थापित कर दिया। कल्याणजी और आनंदजी दोनों ने 250 से अधिक फिल्मों के लिए संगीतकार के रूप में काम किया, जिनमें से 17 स्वर्ण जयंती और 39 रजत जयंती थीं। फिल्मों के अलावा भी कल्याण जी आनंद जी ने कई संगीत कार्यक्रमों के आयोजन में भागीदारी की।
1972 की फिल्म अपराध से “ऐ नौजवान ” और 1978 की फिल्म डॉन से “ये मेरा दिल” वो गीत बने, जिसने अमेरिकी हिप-हॉप समूह को ग्रैमी पुरस्कार जिताया। ये कारवां पूरे जोश से चल रहा था कि 24 अगस्त 2000 को कल्याणजी का निधन हो गया और आनंद जी अकेले रह गए और मायूस भी, फिल्मों में योगदान के लिए बतौर जोड़ी आप दोनों को, भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया, तो वहीं लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी नवाज़ा गया। हर संगीत प्रेमी के लिए उनका सात सुरों से सजा ये दिलनशीं कारवां किसी बेशकीमती तोहफ़े जैसा है जो हमेशा हमारे दिलों के क़रीब रहेगा।